शिक्षक दिवस पर अवसर पर क्या है शिक्षक का क्या है अर्थ
शिक्षक दिवस पर विशेष,,,,,,,, शिक्षक का अर्थ है गुरु माता और पिता सबसे पहले गुरु हैं। सर्वप्रथम उनसे शिक्षा मिलती है। जिससे हमें शिक्षा मिलती है। अर्थात जिस किसी से हम कुछ सीख लेते हैं वही गुरु होता है। पेड़ पौधे भी हमारे गुरु हैं संपूर्ण प्रकृति मात्र जिससे हमें शिक्षा मिलती है वह हमारी गुरु है। ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरु का होना नितांत आवश्यक है। माता पिता के बाद प्रकृति को हम गुरु मानते हैं। पेड़ पौधे नदियां पर्वत सागर आदि सजीव निर्जीव हर किसी से कोई न कोई शिक्षा हमें प्राप्त होती है। हां इन से शिक्षा लें या न लें यह हम पर निर्भर है। मुझे बचपन में पड़ी एक कविता याद आ रही है। कविता के कुछ अंश इस प्रकार से हैं। पर्वत कहता शीश उठाकर तुम भी ऊंचे बन जाओ। सागर कहता लहरा कर मन में गहराई लाओ। समझ रही हो क्या कहती है उठ उठ गिर गिर तरल तरंग भरलो भरलो अपने मन में मीठी-मीठी मृदुल उमंग। यहां पर पर्वत नदियां सागर आदि हमें शिक्षा दे रहे हैं अतः यह हमारे प्राकृतिक गुरु हुए हैं। अब यदि बात करें शिक्षक दिवस मनाने की तो इसकी शुरुआत वर्ष 1962 से शुरू हुई थी। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन मनाने के लिए उनके छात्रों ने ही उनसे इस बात को लेकर स्वीकृति ली थी। तब डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण ने कहा था कि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय इस दिन शिक्षकों के सम्मान में मनाना चाहिए। तब उन्होंने खुद इस दिन को शिक्षकों के सम्मान में शिक्षक दिवस आयोजित करने का सुझाव दिया था। डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण कहते थे की पूरी दुनिया एक विद्यालय है जहां हमें कुछ ना कुछ सीखने को मिलता है। डॉक्टर राधाकृष्ण का जन्म वर्ष 1888 में तमिलनाडु के तिरुपति नामक एक गांव में हुआ था डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण का बचपन बेहद गरीबी में बीता था। यह बचपन से ही पढ़ाई में काफी तेज थे। गरीबी में भी वह पढ़ाई में पीछे नहीं रहे। और फिलॉसफी में m.a. किया फिर इसके बाद सन 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में फिलॉसफी के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य किया फिर कुछ साल बाद प्रोफेसर बने। देश के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाने के साथ ही कोलंबो एवं लंदन यूनिवर्सिटी ने भी डॉक्टर राधाकृष्ण को मानक उपाधियों से सम्मानित किया। सन 1949 से 1952 तक वह मास्को में भारत के राजदूत रहे और सन 1952 में स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति बनाए गए। बाद में डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्ण को भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था। शिक्षक दिवस पर छात्र अपने शिक्षकों का सम्मान करने के लिए बड़े आतुर रहते हैं। आज छात्रों के लिए यह खास दिन है। इस खास दिन पर छात्र शिक्षकों द्वारा उनके भविष्य को संवारने के लिए किए गए प्रयासों के लिए धन्यवाद अर्पित करते हैं। गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।। सब धरती कागज करूं लेखनी सब वनराई सात समुद्र की मसि करूं गुरु गुण लिखा न जाए।। अनेक कवियों ने गुरु की महिमा पर अनेकों कविताएं लिखी हुई है। गुरु आदि काल से ही पूजनीय रहे हैं। त्रेता युग में गुरु विश्वामित्र द्वापर युग में गुरु द्रोणाचार्य जिन्होंने कौरव और पांडवों को शिक्षा दी थी। गुरु को मानना सबसे महत्वपूर्ण है। गुरु अगर शिक्षा न देना चाहे तब भी चोरी करके उससे शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए और गुरु का सम्मान करना चाहिए। एकलव्य ने तो गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसे गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण कर ली थी। इसलिए प्रकृति मात्र से कुछ न कुछ शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। धन्यवाद लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल