क्यों होता है अधिक मास? क्या है पौराणिक कथा क्या है खगोलीय गणना? एवं क्या उपाय करने से होगा लाभ आइए जानते हैं ?

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क्यों होता है अधिक मास? क्या है पौराणिक कथा क्या है खगोलीय गणना? एवं क्या उपाय करने से होगा लाभ आइए जानते हैं।
18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा पुरुषोत्तम मास।

यदि पौराणिक आधार से देखें भक्त प्रहलाद और दैत्य राज हिरण्यकश्यप की कहानी हम सभी को विदित है। यह कथा दैत्य राज हिरण्यकश्यप के वध से जुड़ी है। जिसका मूल रूप अधिक मास से जुड़ा है।
दैत्य राज हिरण्यकश्यप ने ब्रह्मा जी से अमरता के लिए वर मांगने हेतु कठोर तपस्या की थी तप के प्रभाव से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और मनवांछित वर मांगने को बोले तो हिरण्यकश्यप ने अमरता का वरदान मांगा। अमरता का वरदान देना निषिद्ध है इसलिए ब्रह्मा जी ने उसे कोई अन्य वर मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वर मांगा कि उसे संसार का कोई नर नारी पशु देव व असुर मार ना सके। ना दिन में मरे ना रात को मरे। ना घर के बाहर मरे। ना घर के अन्दर,अस्त्र से मरे ना शस्त्र से मरे। आदि आदि अनेक शर्तें रखी। और अपने तर्कों को मजबूत करने के लिए अंत में यह कह दिया कि 12 महीने में कभी ना मरे। इसलिए भगवान को हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए यह 13 वां महिना बनाना पड़ा।
क्यों होता है अधिक मास —- खगोलीय गणना के अनुसार—
भारतीय पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। यह सौरमास और चंद्रमास को एक समान लाने की गणितीय प्रक्रिया है। शास्त्रों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गए जप, तप, दान से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। सूर्य की 12 संक्रांति होती है और इसी आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित 12 मास होते हैं। हर 3 वर्ष के अंतराल पर अधिक मास आता है। इसे पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं।
शास्त्रानुसार—
यस्मिन चान्द्रे न संक्रांति: सो अधिमासो निगह्यते,तत्र मंगल कार्यानि नैव कुर्यात कदाचन्।
यस्मिन मासे द्विसंक्रान्तिक्षय: मास: स कथ्यते,तस्मिन शुभाणि कार्याणि यत्नत: परिवर्जयेत।।
ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में किए गए धार्मिक कार्यों का किसी भी अन्य माह में किए गए पूजा पाठ से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही वजह है कि श्रद्धालु जन अपनी पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस मास में भगवान की पूजा अर्चना करते हैं।

क्यों कहते हैं इसे पुरुषोत्तम मास?—–
अधिक मास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। इस विषय में कहा जाता है कि भारतीय ज्योतिषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्रमास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि अधिमास सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन बनाने के लिए हुआ तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई भी देवता तैयार ना हुआ । ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर ले। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और भगवान विष्णु का एक नाम पुरुषोत्तम भी है। इसलिए अधिक मास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।

कैसे बनता है अधिक मास?—-
वशिष्ठ सिद्धांत के अनुसार भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्रमास की गणना के अनुसार चलता है। खगोलीय गणना से सूर्य एक राशि को पार करने में 30.44 दिन का समय लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे 12 राशियों को पार करने यानी सौर वर्ष का समय जो 365.25 दिन का होता है। अब इसी प्रकार चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में कुल मिलाकर 354.36 दिन ही होते हैं। एक वर्ष में लगभग 11 दिनों का अन्तर आता है। इसलिए लगभग हर तीसरे वर्ष अर्थात 32 माह 16 दिन 8 घड़ी बाद यहां एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है इस समय को समायोजित करने और ज्योतिषी गणना को सही रखने के लिए प्रत्येक तीसरे वर्ष में एक अधिक मास होता है।
सीधे शब्दों में इसे समझें तो जिस प्रकार अंग्रेजी कलैंडर में प्रत्येक चौथे वर्ष में एक लीप ईयर (लौद वर्ष)आता है जो 366 दिनों का होता है जिसमें फरवरी माह 29 दिनों का होता है। जबकि हमारी प्रथ्वी को सूर्य देव की एक परिक्रमा करने में 365.25दिन अर्थात 365दिन 6घंटे लगभग का समय लगता है। अर्थात एक वर्ष 365दिन 6 घंटे का होता है।अब 365दिन 6घंटे वाला कलैंडर तो बनता नहीं। इसलिए इन6घंटों को संयोजित कर 4वर्ष में एक दिन बढ़ जाता है ।जो लीप ईयर या लौद वर्ष 366दिनों का होता है।
क्या क्या उपाय है महत्वपूर्ण—
उपाय 1—देवी भागवत पुराण के अनुसार अधिक मास की अवधि में भागवत कथा का श्रवण करने वालों को मोक्ष प्राप्त होता है। उनकी अनेकों इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इस मास में शालिग्राम की मूर्ति के समक्ष घर के मंदिर में घी का अखंड दीपक पूरे महीने जलाएं घर में सुख शांति के लिए उपाय बहुत ही लाभकारी है।
उपाय 2–अधिक मास की पंचमी तिथि पर तुलसी में गन्ने का रस चढ़ाना बहुत शुभ माना जाता है। मान्यता है इससे देवी लक्ष्मी पूरे परिवार को अपार सुख संपत्ति और समृद्धि का आशीर्वाद देती है। ऐसा भी माना जाता है कि ऐसा करने पर जीवन भर कभी भी धन की कमी नहीं होती है।
उपाय 3–यदि नौकरी में या अन्य कार्यों में अनेकों प्रकार की अड़चनें आ रही है तो अधिक मास में श्रीमद्भागवत गीता के 14वें अध्याय पुरुषोत्तम नाम का अध्याय का पाठ अर्थ सहित करना चाहिए। भगवत गीता की पुस्तक सनातन धर्म के मानने वाले सभी घरों में लगभग उपलब्ध रहती है। उसमें से पुरुषोत्तम नाम के 14 वें अध्याय का अर्थ सहित पाठ अवश्य करें आपके सभी बिगड़े हुए काम तुरंत बनने प्रारंभ हो जाएंगे।
उपाय 4—घर में अनेक प्रकार की व्याधियां उत्पन्न हो रही है या पारिवारिक कलह आदि दूर करने हों तो विष्णु सहस्रनाम पाठ प्रतिदिन करें। संभव हो तो विष्णु सहस्रनाम पाठ सुयोग्य ब्राह्मण द्वारा कराएं और अन्त में विष्णु नाम हवन करें। ये सभी कारगर एवं प्रमाणित उपाय हैं। आजमाकर देख लें।

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