विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून
हम सभी प्राणी पृथ्वी पर रहने वाले हैं और इसके पर्यावरण की रक्षा करना हम सब की प्राथमिकता होनी चाहिए किंतु क्या हम कोविड काल के बाद भी इस विषय पर संवेदनशील होंगे कि नहीं यह तो समय ही बताएगा, क्योंकि सतत विकास हमारी आज की जरूरत है ताकि कल का भविष्य सुरक्षित रह सके। पर्यावरण की रक्षा यानिकि दुनिया की सुरक्षा करना है। संयुक्त राष्ट्र ने इस दिवस को पृथ्वी के पर्यावरण के प्रति सचेत एवं रचनात्मक रहने के लिए 5 जून का दिवस सुरक्षित रखा है ।वर्तमान 2021की थीम “इकोसिस्टम रेस्टोरेशन” के अंतर्गत प्रकृति एवम मानव के मध्य अच्छा रिश्ता स्थापित करना है ,जिसमे पौधे लगाने , हरे – भरें शहर, बागों का पुनद्धार ,नदी एवम समुद्र तटों की सफाई रखी गई है। वर्तमान में 50% कोटल रीफ़ खत्म हो चुकी है यदि 2050 तक 1.5 डिग्री तापमान वृद्धि हुई तो भविष्य और भी असुरक्षित होगा। संयुक्त राष्ट्र ने 2021 से 2030 के डिकेड को इकोसिस्टम रेस्टोरेशन का नाम दिया है, जिससे 3.5 मिलियन वर्ग किलोमीटर खत्म हो चुकी भूमि परिस्थितिक तंत्र का जीर्णोधार करना प्राथमिकता के साथ रखा गया है ,ताकि जलीय एवं थल परिस्थितिक तंत्र संरक्षण की पहल से सतत क्रम में रखा जा सके। वर्तमान में पृथ्वी के परिस्थितिक तंत्र के लिए इस वर्ष “रिईमेजिन, रिक्रिएट टुगेदर दिस” जिससे पुनर्विचार फिर से स्थापित करना तथा सभी को साथ लेकर चलने पर विचार समाहित है। पृथ्वी की ऊपरी सतह पर सबसे ऊंचा पर्वत माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर) है जो पर्वतराज हिमालय है तथा पर्यावरण को सुरक्षित करता है। विषाणुओं की कई लाखों किस्मों के साथ पृथ्वी की संरचना में लोहा 32% ,ऑक्सीजन 30%, सिलिकॉन 15%, मैग्नीज 14% तथा अन्य तत्व 8. 8% है। पृथ्वी के ऊपरी सतह पर ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट 7% है जिससे सबसे ज्यादा पेड़ों की प्रजातियां तथा जानवरों की संख्या है। विश्व में अमेजन ऑक्सीजन की 20% सप्लाई देता है तथा यह सबसे बड़ा रेनफॉरेस्ट है इसलिए कहा गया है माता भूमि: पुत्रोउहं पृथिव्या (धरती हमारी माता और हम सब इसके पुत्र/पुत्री हैं )पृथ्वी के जंगल प्रजातियों में बांज, चिनार ,अखरोट, पागड़ ,पीपल, एलोवेरा, नीम तथा आर्कडस सर्वाधिक ऑक्सीजन देने वाले वृक्ष पाएं जाते हैं। किंतु वर्तमान की समस्या पृथ्वी के प्राकृतिक तंत्र को संरक्षित करने की है। जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग ,प्रदूषण, पर्यावरण संसाधनों का ह्रास तेजी से बढ़ा है। मानवी क्रियाशीलता में पेड़ों का कटान ,वायु प्रदूषण, जनसंख्या वृद्धि कूड़ा करकट समुद्रों का अमली करण,जैव विविधता का नुकसान ओजोन छिद्र का बढ़ना ,अमली वर्षा एवं मानव का स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं तेजी से बढ़ी है।आवासक्षय के कारण आज गाय, भैंस, बकरियां चरती हुई कम नजर आती हैं ,तो परिवर्तन से कई प्रजातियां संकटग्रस्त हो गई है। चीता,गेंडे तथा हाथियों की संख्या घटी है, एक तिहाई परागण करने वाले कीट पतंग कम हुए हैं। हमें विकास एवं संसाधन को संरक्षित रखना होगा हिमालय पर्यावरण पर नजर डाले तो जलवायु परिवर्तन से प्रजातियां संकटग्रस्त हुई है। इस कारण पेयजल की कमी खेती, खेती जमीन की कमी, झरनों की क्षति एवं वन्य जीवन प्रभावित हुआ है। 3 बिलियन लोग म समुद्री परस्थितिक तंत्र में तो 1.6बिलियन लोग जंगलों पर अपनी आजीविका के लिए आत्मनिर्भर है। ऐसे में पहाड़ी तथा हिमालय राज्यों को ग्रीन बोनस अनिवार्य रूप से दिया जाना चाहिए। संरक्षित क्षेत्रों की प्रतिशतता बढ़ाने की जरूरत है ।सभी विश्व के नागरिकों को अपने जन्मदिन एवं त्योहारों पर एक पौधा लगाना अनिवार्य तो वैज्ञानिक एवं शोध अध्ययन को और अधिक बढ़ावा देना होगा जिससे हम सतत विकास की परिकल्पना को साकार कर सकेंगे।