ज्योतिष गणना अनुसार 19 वर्षों बाद आ रही है सावन मास में पद्मिनी एकादशी।

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बहुत महत्वपूर्ण है अधिक मास की पद्मिनी एकादशी।जो फल हजारों वर्ष तपस्या करने से नहीं मिलता है सो फल अधिक मास में आने वाली पद्मिनी एकादशी व्रत(कमला एकादशी व्रत)से मिलता है।

तीसरे वर्ष आने के कारण इस एकादशी व्रत की महत्ता कुछ और बढ़ जाती है। यदि सावन मास में पद्मिनी एकादशी व्रत हो तो सर्वोत्तम माना जाता है। क्योंकि सावन मास में हम सभी को विदित है कि भगवान विष्णु शयन कर रहे होते हैं और श्रृष्टि का भार भगवान शिव के अधीन होता है और सावन मास शिवजी का प्रिय मास है।यदि ज्योतिष गणना के आधार पर देखें तो इस बार सावन मास में पद्मिनी एकादशी 19वर्षों बाद आ रही है। इससे पूर्व दिनांक 28 जुलाई 2004, दिन बुधवार को पद्मिनी एकादशी व्रत मनाया गया था। यदि 2004 में एकादशी तिथि की बात करें तो दिनांक 27 जुलाई 2004 दिन मंगलवार को एकादशी तिथि साम 4:11 बजे से प्रारंभ होकर दिनांक 28 जुलाई 2004 को दोपहर 1:19 बजे तक थी। अतः दिनांक 28 जुलाई 2004 दिन बुधवार को पद्मिनी एकादशी व्रत मनाया गया।
शुभ मुहूर्त—ू
इस बार सन् 2023 में पद्मिनी एकादशी व्रत या कमला एकादशी व्रत दिनांक 29 जुलाई 2023 दिन शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि एकादशी तिथि की बात करें तो एकादशी तिथि अट्ठारह घड़ी 50 पल अर्थात दोपहर 1:05 बजे तक है। यदि इस दिन नक्षत्र की बात करें तो जेष्ठा नामक नक्षत्र 44 घड़ी 55 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:31 बजे तक है। इस दिन विष्टि नामक करण अर्थात भद्रा अट्ठारह घड़ी 50 पल अर्थात दोपहर 1:05 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव मध्य रात्रि 11:31 बजे तक वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे।
इस कथा के अनुसार पांडू पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं की है नंद नंदन! अधिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा इसका क्या फल है? तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की हे धर्मराज युधिष्ठिर! अधिक मास की शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है उसे पद्मिनी एकादशी या कमला एकादशी कहते हैं। वैसे तो प्रत्येक वर्ष 24 एकादशी होती हैं जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। अधिक मास या मलमास को जोड़कर वर्ष में 26 एकादशी होती हैं। अधिक मास में दो एकादशी होती हैं जो पद्मिनी या कमला एकादशी शुक्ल पक्ष में और परमा एकादशी कृष्ण पक्ष में आती है। ऐसा भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को इस व्रत की कथा बताई थी। भगवान श्रीकृष्ण बोले मलमास में अनेक गुणों को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इसका व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण बोले मलमास में अनेक पुण्य को देने वाली एकादशी का नाम पद्मिनी है। इस एकादशी का व्रत करने पर मनुष्य कीर्ति प्राप्त करके बैकुंठ को जाता है। इस कथा के अनुसार-
प्राचीन समय में त्रेता युग की बात है की एक राजा कीर्ति वीर्य की कई रानियां थी परंतु उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। संतान हीन होने के कारण राजा और रानियां बहुत दुखी रहते थे। फिर एक दिन संतान की कामना से राजा अपनी रानियों के साथ जंगल में तपस्या करने निकल गए। कहते हैं कि तपस्या करने से राजा की हड्डियां ही शेष रह गई परंतु तपस्या का कोई परिणाम नहीं निकला। तब रानी ने अनुसूया मां से इसका उपाय पूछा। माता अनुसूया ने रानियों से अधिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। रानी पद्मिनी ने एकादशी का व्रत रखा इसी लिए इस एकादशी का नाम पद्मिनी एकादशी भी है। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा कि हे प्रभु !यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। तब भगवान ने राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने प्रणाम करने के बाद कहा कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण संपन्न हो। आप के अतिरिक्त किसी से पराजित ना हो और जो तीनों लोगों में आदरणीय हो। यह सुनकर भगवान ने तथास्तु! कह दिया।
कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्यार्जुन के नाम से जाना गया। कालांतर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिस ने रावण को भी बंदी बना लिया था। इसकी तीनों लोकों में कीर्ति हो चली थी। बाद में इसे श्री हरि विष्णु से अवतार परशुराम जी ने किसका वध किया था।
अतः जो फल हजारों वर्ष तपस्या करने से नहीं मिलता है सो फल अधिक मास में आने वाली पद्मिनी एकादशी व्रत लेने से मिलता है।
पूजा विधि—
पद्मिनी एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौच आदि से निवृत्त होकर समीप के किसी नदी या जल स्रोत में स्नान करें। यदि ऐसा संभव ना हो तो घर पर ही स्नान के जल में गंगा जल मिलाकर स्नान करें।
तदुपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण कर तुलसी वृंदावन के सम्मुख बैठकर व्रत संकल्प लें–
हरि ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि अमुक गोत्र उत्पन्न ( अपने गोत्र का उच्चारण) कर अमुक नाम्ने( अपने नाम का उच्चारण) सहित। अधिक मासे शुक्ल पक्षे पद्मिनी एकादशी उत्तम व्रतं करिक्षे। के साथ संकल्प लें।
तुलसी वृंदावन के समक्ष भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की मूर्ति को स्नान कराएं तदुपरांत पंचामृत स्नान कराएं इसके बाद गंध रोली कुमकुम आदि चढ़ाएं। ताम्बुलं पुंगी फलम समर्प्यामि। सुपारी एवं पान का पत्ता चढ़ाएं।फलम समर्प्यामि फल समर्पित करें।द्रव्यं समर्प्यामि।द्रव्य चढ़ाएं। तदुपरांत उपवास रखें। ध्यान रहे इस दिन चावलों का बिल्कुल उपयोग ना करें अक्षत के स्थान पर जौं का प्रयोग करें। संकल्प में भी जौं पुष्प और गंगा जल प्रयोग करें। घर पर भी एकादशी के दिन कोई भी सदस्य चावल का प्रयोग ना करें।

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