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लाख रोगों की एक दवा है तुलसी। तुलसी हमारी देवभूमि में ही नहीं वरन संपूर्ण भारत वर्ष में प्रायः सर्वत्र पाई जाने वाली औषधि है। यही सभी हिंदुओं की पूजा भी है। इसी कारण घर-घर में इसका पौधा लगाया जाता है और पूजा भी की जाती है। वैसे तो तुलसी की लगभग 60 जातियां होती हैं। प्रायः चार प्रकार की तुलसी मुख्य है। एक रामा तुलसी दो श्यामा तुलसी तीन वन तुलसी चार मार बर्बद । हमारी देवभूमि में प्रायः यही चार जातियां प्राप्त होती हैं। अब मैं सुधि पाठकों को इसके उपयोग के बारे में बताना चाहूंगा। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है की जहां तुलसी के पौधे होते हैं वहां मलेरिया के कीटाणु नहीं आते। हमारे हिंदू पुराणों में बहुत पहले इसका जिक्र किया गया है की तुलसी से हजारों रोग दूर होते हैं। पद्म पुराण, चरक संहिता कोमा हरित संहिता योगरत्नाकर सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों में इसके गुणों का वर्णन मिलता है। सर्वप्रथम में इसके धार्मिक महत्व को बताना चाहूंगा। भगवान शालिग्राम साक्षात नारायण स्वरूप हैं और तुलसी के बिना उनकी कोई पूजा संपन्न नहीं होती। नैवेद्य आदि के अर्पण के समय मंत्रोच्चारण कौर शंख घंटा नाद के साथ तुलसी दल समर्पण भी उपासना का मुख्य अंग माना जाता है। मृत्यु के समय तुलसी दल युक्त जल मरणासन्न व्यक्ति के मुख में डाला जाता है। जिससे मरणासन्न व्यक्ति को सद्गति प्राप्त होती है। दाह संस्कार के समय तुलसी के कास्ट का उपयोग किया जाता है। इससे करोड़ों पापों से मुक्ति मिल जाती है। तुलसी के काष्ठ की माला सिद्ध माला कहलाती है। इसी प्रकार तुलसी मंजरी का भी विशेष महत्व है। तुलसी का पूजन वैसे तो वर्षभर किया जाता है। परंतु सावन में देव शयनी एकादशी से कार्तिक में हरी बोधनी एकादशी तक तुलसी की विशेष पूजा की जाती है। तुलसी के समीप किया गया अनुष्ठान बहुत ही फलदायक होता है। अब मैं सुधि पाठकों को औषधि के रूप में तुलसी का उपयोग बताना चाहूंगा। एक ज्वर तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा पीने से ज्वर का शमन होता है। नंबर दो आंतरिक ज्वर तुलसी दल 10 जावित्री 1 ग्राम शहद के साथ मिलाकर खिलाना चाहिए आंतरिक ज्वर में लाभ होता है। नंबर 3 खांसी तुलसी के पत्ते और अडूसा के पत्ते मिलाकर बराबर मात्रा में सेवन करने से खांसी में लाभ होता है। चार नासा रोग नाक के अंदर पिंडी का में तुलसी पत्र बांट कर सूघने से आराम होता है। नेत्र रोग तुलसी पत्र स्वरस में मधु मिलाकर आंख में लगाने से आंख में लाभ होता है। वीर्य संबंधी रोग तुलसी की जड़ को पीसकर पान में रखकर खाने से वीर्य पुष्ट होता है। तुलसी बीज का चूर्ण पानी के साथ खाने से स्वप्नदोष ठीक हो जाता है। मूत्र रोग एक पाव पानी एक पाव दूध मिलाकर उसमें 2 तोला तुलसी पत्र स्वरस मिलाकर पीने से मूत्र दाह ठीक होता है। उदर रोग तुलसी मंजरी और काला नमक मिलाकर खाने से अजीर्ण रोग में लाभ होता है। तुलसी पंचांग का काढ़ा पीने से दातों में आराम होता है। तुलसी एक चम्मच अदरक का रस एक चम्मच मिलाकर खाने से पेट दर्द में आराम होता है वात रोग तुलसी पत्र काली मिर्च पूर्ण ग्रुप के साथ सेवन करना चाहिए। रक्त विकार तुलसी और गिलोय 33 ग्राम का क्वाथ बनाकर मिश्री मिलाकर सेवन करें। यदि मुख से दुर्गंध आ रही हो भोजन के बाद पांच तुलसीदल खाने से मुख से दुर्गंध नहीं आती। रक्त प्रदर तुलसी बीज का चूर्ण और अशोक पत्र स्वरस के साथ सेवन करना चाहिए। यदि जहर उतारना हो तुलसी पत्र को गाय के घी में मिलाकर पिलाने से हर प्रकार का जहर उतर जाता है। सर्प विष तुलसी के बीज 2 ग्राम खाना चाहिए और बैठकर दंश वाली जगह पर लगाना चाहिए बेहोश होने पर रस नाक में भी डालें। बिच्छू का दंश तुलसी पत्र स्वरस चौगुनी जल में बांटकर 5:05 मिनट पर पिलाते जाए जहर उतर जाएगा। मधुमक्खी के काटने पर तुलसी पत्र स्वरस सेंधा नमक और गाय का घी मिलाकर लगाने से सूजन भी नहीं आती और दर्द में भी आराम होता है। खाज खुजली खाज खुजली में नीम के पत्ते एवं तुलसी पत्र मिलाकर खाए भी और लगाएं भी लाभ होगा। सफेद दाग गंगाजल के साथ तुलसी पत्र को मिलाकर लगाना चाहिए सफेद दाग ठीक होते हैं। बालतोड़ बालतोड़ होने पर तुलसी पत्र पीपल पत्ती मिलाकर लगाने से आराम होता है। मुहासे तुलसी स्वरस नींबू स्वरस बराबर मात्रा में मिलाकर लगाने से मुंहासे मिट जाते हैं। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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