संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है आषाढ कृष्ण पक्ष संकष्टी चतुर्थी व्रत

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संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है आषाढ कृष्ण पक्ष संकष्टी चतुर्थी व्रत ।
शुभ मुहूर्त,,,, इस बार सन 2022 में आषाढ़ कृष्ण संकष्टी चतुर्थी दिनांक 17 जून 2022 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन दो घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 6:11 बजे तक तृतीया तिथि है तदुपरांत चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन उत्तराषाढ़ा नामक नक्षत्र 11 घड़ी 40 पल अर्थात प्रातः 9:55 बजे तक रहेगा तदुपरांत श्रवण नक्षत्र उदय होगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन ऐन्द्र नामक योग 29 घड़ी 57 पल अर्थात शाम 5:14 बजे तक रहेगा यदि इस दिन के करण की बात करें तो इस दिन विष्टी नामक करण अर्थात भद्रा दो घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 6:11 बजे तक रहेगा। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे।
आषाढ़ संकष्टी चतुर्थी व्रत
कथा,,,,,, द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा था वह बड़ा ही पुण्य शील और प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा का पालन पुत्रों की तरह करता था। किंतु संतान विहीन होने के कारण उसे राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था। वेदों में निसंतान का जीवन व्यर्थ माना गया है। यदि संतान विहीन व्यक्ति अपने पितरों को जल दान देता है तो उसके पित्र गण उस जल को गर्म जल के रूप में ग्रहण करते हैं। इसी उहापोह में राजा का बहुत समय व्यतीत हो गया। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत से दान यज्ञ आदि कराए । फिर भी राजा को पुत्र उत्पत्ति नहीं हुई। जवानी ढल गई और बुढ़ापा आ गया किंतु वंश वृद्धि न हुई। तदनंतर राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजा जनों से इस संदर्भ में परामर्श किया। राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणों प्रजा जनों हम तो संतान हीन हो गए। अब मेरी क्या गति होगी? मैंने जीवन में तो किंचित भी पाप कर्म नहीं किया। मैंने कभी अत्याचार द्वारा धन संग्रह नहीं किया। मैंने तो सदैव प्रजा का पुत्रों की तरह पालन किया तथा धर्म आचरण द्वारा ही पृथ्वी में शासन किया। मैंने चोर डाकू को दंडित किया। इष्ट मित्रों के भोजन की व्यवस्था की। गो ब्राह्मणों का हित चिंतन करते हुए शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार किया। फिर भी मुझे अब तक पुत्र न होने का क्या कारण है? विद्वान ब्राह्मणों ने कहा कि हे महाराज! हम लोग वैसा ही प्रयत्न करेंगे जिससे आपके वंश की वृद्धि हो। इस प्रकार कह कर सब लोग युक्ति सोचने लगे। सारी प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई। वन में उन लोगों को एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए। वे मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन थे। ब्रह्मा जी के सामने हुए आत्मजीत क्रोध जीत तथा सनातन पुरुष थे। संपूर्ण वेद विशारद एवं अनेक ब्रह्म ज्ञान संपन्न थे। उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था। प्रत्येक कल्पान्त में उनके एक एक रोम प्रतीत होते थे। इसलिए उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया। ऐसे त्रिकालदर्शी महर्षि लोमश के उन लोगों ने दर्शन किए। सब लोग उन तेजस्वी मुनि के पास गए। उन्हें प्रणाम आदि के अनंतर सभी लोग उनके समक्ष खड़े हो गए। मुनि के दर्शन से सभी लोग प्रसन्न होकर परस्पर कहने लगे कि हम लोगों को सौभाग्य से ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए। इनके उपदेश से हम सभी का मंगल होगा। ऐसा निश्चय कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा हे महर्षि हम लोगों के दुख का कारण सुनिए। अपने संदेह के निवारण के लिए हम लोग आपके पास आए हैं। हे भगवान! आप कोई उपाय बतलाइए। महर्षि लोमश ने पूछा सज्जनों आप लोग यहां किस अभिप्राय से आए हैं? मुझसे आप का क्या प्रयोजन है? स्पष्ट रूप से कहिए। मैं आपके सभी संदेहों का निवारण करूंगा। प्रजा जनों ने उत्तर दिया हे मुनिवर! हम महिष्मति नगरी के निवासी हैं। हमारे राजा का नाम महीजित है वह राजा ब्राह्मणों का रक्षक धर्मातमा दानवीर सूरवीर एवं मधुर भाषी हैं। उस राजा ने हम लोगों का पालन पोषण किया है। परंतु ऐसे राजा को आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। हे भगवान! माता-पिता तो केवल जन्मदाता ही होते हैं। किंतु राजा ही वास्तव में पोषक एवं संवर्धक होता है। उसी राजा के निमित्त हम लोग ऐसे गहन वन में आए हैं। हे महर्षि आप कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे राजा को संतान की प्राप्ति हो। क्योंकि ऐसे गुणवान राजा को कोई पुत्र ना हो यह बड़े दुर्भाग्य की बात है। हम लोग परस्पर विचार-विमर्श करके इस गंभीर वन में आए हैं। उनके सौभाग्य से ही हम लोगों ने आपका दर्शन किया है। हे मुनिवर! जिस व्रत दान पूजन आदि अनुष्ठान कराने से राजा को पुत्र होगा आप कृपा करके हम सभी को बतलाए। प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमश ने कहा हे भक्तजनों !आप लोग ध्यानपूर्वक सुनो। मैं संकटनाशन व्रत को बतला रहा हूं। यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धन को धन देता है। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को एकदंत गजानन नामक गणेश जी की पूजा करें राजा व्रत करके श्रद्धा युक्त हो ब्राह्मण भोजन करा लें और उन्हें वस्त्र दान करें। गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी। महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए। नतमस्तक होकर दंडवत प्रणाम करके सभी लोग नगर में लौट आए। वन में घटित सभी घटनाओं को प्रजा जनों ने राजा से बताया। प्रजा जनों की बात सुनकर राजा बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धा पूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र आदि का दान किया। रानी सुदर्शना को गणेश जी की कृपा से सुंदर और शुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ। श्री कृष्ण जी कहते हैं कि हे राजन इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव है। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करेंगे वे समस्त सांसारिक सुख के अधिकारी होंगे। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

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