चिरंजीवी उत्तराखंड के लिए आवश्यक है की समग्र विकास के विमर्श का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हिमालय का संरक्षण-डॉ केतकी तारा कुमैय्याँ

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चिरंजीवी उत्तराखंड के लिए आवश्यक है की समग्र विकास के विमर्श का महत्वपूर्ण हिस्सा बने हिमालय का संरक्षण
डॉ केतकी तारा कुमैय्याँ
विभाग प्रभारी एवं सहायक प्राध्यापक राजनीति शास्त्र
राजकीय महाविद्यालय, उच्च शिक्षा , अल्मोड़ा

आज 9 सितंबर 2021 को पूरे उत्साह के साथ हिमालय दिवस मनाया गया और आज से 11 वर्ष पूर्व में जो संकल्प लिए गए थे उन्हे पुनः पूरे जोश के साथ दोहराया गया । हिमालय शिखर श्रृंखला मात्र एक प्राकृतिक धरोहर नहीं है यदि भारत के परिप्रेक्ष्य में देखे तो यह उस सजीव सारथी एवं प्रहरी की तरह रहा है जिसने भारत की सीमाओं को सुरक्षा ही नहीं दी बल्कि भारत की समृद्ध राजनीतिक , सामाजिक , सांस्कृतिक , आर्थिक एवं परिस्थिकीय विरासत को सहेजा है। इस दिवस की प्रासंगिकता इसलिए भी बढ़ गई है क्योंकि इस पर्वतमाला ने मानवीय हस्तक्षेप से जन्मे जलवायु परिवर्तन, ब्लैक कार्बन , प्राकृतिक अपादाओ , भूस्खलन , पिघलते हिमनदो जैसे विकट परिस्थितियों के बावजूद अपनी कर्तव्यशीलता नहीं छोड़ी।
हिमालय दिवस महत्पूर्ण है और कई छोरो से मुखर आवाज उठी है की इसे एक पर्व के जैसे मनाया जाए किंतु प्रयास ये रहना चाहिए की यह मात्र औपचारिक शपथ दिवस बनकर न रह जाए । समय की मांग है कि उत्तराखंड का अपना पर्वतीय मंत्रालय होना चाहिए, आज जरूरत है उस ग्रीन बोनस की जिसका उत्तराखंड हकदार है क्योंकि सबसे अधिक इको -सेवाए देने वाला राज्य है हमारी देवभूमि उत्तराखंड। बकौल पर्यावरणविद प्रो अजय रावत विश्व की 40 प्रतिशत आबादी हिमालय राज्यों के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है।
आज इस पावन अवसर पर आवश्यकता है एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जहा आगामी 2022 विधानसभा के चुनावो में उस राजनीतिक दल को विजेता घोषित किया जाए जो हरित राजनीति को अपने घोषणा पत्र का हिस्सा बनाए और पर्यावरणीय एवं परिस्थितकीय आर्थिकी को तरजीह दे।
जैसा कि ज्ञात है विभिन्न देशों ने जैसे बांग्लादेश ने अपनी नदियों को ,इक्वाडोर ने अपने संविधान में प्रकृति को वैधानिक अधिकार दिए है, न्यूजीलैंड ने अपनी वांगनुई नदी को विशिष्ट कानूनी अधिकार प्रदान किए है इसी के साथ जिस प्रकार उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गंगा नदी को लंदन की थेम्स नदी के तर्ज पर पर्सनहुड का दर्जा या इंसान का कानूनी दर्जा दिया है उसी प्रकार हिमालय पर्वतमाला को भी पर्सनहुड का दर्जा या इंसान का कानूनी दर्जा दिया जाना चाहिए तभी जाकर यह दिवस एक सार्थक पहल मान जा सकेगा।
यदि सुंदरलाल बहुगुणा , हेस्को संस्थापक अनिल जोशी , या राधा बहन जैसे मजबूत जिजीविषा के नायक नही होते तो हिमालय के प्रति यह नागरिक सजगता ,सक्रियता एवं सजीवता इतने व्यापक स्तर पर संभव नहीं हो पाती जो आज हम देख सकते है।
देवभूमि उत्तराखंड चिपको , रक्षासूत्र , मैती , पाणी राखो आंदोलन जैसे सक्रिय आंदोलनो की जननी रही है जिसने न केवल हमारे प्रदेश का मार्गदर्शन किया है बल्कि पूरे विश्व को दिशा दी है। किंतु विडंबना देखे जिस हिमालय ने सदियों से उत्तराखंड का पालन पोषण अपनी गोद में किया वही आज इतनी श्रीहीन हो गई है की सहारे की मांग कर रही है । आज प्रकृति अपने देवपुत्र के लिए जीवन मांग रही है और ये हम भूमि पुत्रों का कर्तव्य बनता है की हम उसे संरक्षित करे ।
हिमालय बचाओ का उद्घोष तो किया जा रहा है किंतु हिमालय क्षेत्र में जो बसे गांव है वो पलायन के कारण जनविहीन हो चुके है और अगर उत्तराखंड पलायन आयोग के आंकड़े देखे तो 1702 गांव की जनसंख्या सिफर है जिसमे सबसे अधिक पलायन अल्मोड़ा एवं पौड़ी जिलों में हुआ है।त्रासदी देखे की जिस उत्तराखंड के लिए इतना संघर्ष किया गया था वहा राज्य बनने के बाद बत्तीस लास लोग पहाड़ छोड़ चुके है और पलायन की दर वर्ष 2000 से 2010 के बाद छत्तीस प्रतिशत बढ़ गई है और 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद पलायन में और खासा इजाफा हुआ हैं।
यदि आज हम हिमालय के प्रति समय से अपना दायित्व बोध नहीं दिखाएंगे तो हम सभी अपने विनाश के भागीदार स्वयं होंगे। आधुनिकता के छद्म विकास की मृगमरीचिका में कही हम अपना ही ह्रास न कर ले। इसलिए इस हिमालय दिवस पर प्राकृतिक संसाधनों का दुरपयोग कम कर एक आत्मिक एवम् सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास करना होगा और आशा करते है उत्तराखंड में भी एक ऐसे ही राजनीतिक दल का उदय होगा जो अपनी नीतियों में उत्तराखंड की जल जंगल जमीन के साथ हिमालय हित को महत्ता देगा जैसे विश्व भर के इन राजनीतिक दलों ने किया है जैसे ऑस्ट्रियाई ग्रीन पार्टी, स्कॉटिश ग्रीन पार्टी, लातविया ग्रीन पार्टी , ऑस्ट्रेलिया साग , ग्रीन पार्टी ऑफ़ आर्मेनिया ,इकोलॉजिकल ग्रीन पार्टी ,इजरायल इत्यादि ।इसे साकार रूप देने के लिए हम सभी को वैश्विक स्तर पर सोच और स्थानीय स्तर पर अभिनय को अपनाना होगा तभी जाकर इस ऐतिहासिक धरोहर हिमालय की रक्षा संपूर्ण रूप से हो पाएगी।

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