चार साल के लीसे की की गई नीलामी

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला दून विश्वविद्यालय देहरादून, उत्तराखंड
प्रदेश में चीड़ के वनों से निकलने वाली वनोपज लीसा राज्य सरकार के परेशानी का सबब बन गया है। दो साल से इसकी खरीद में कंपनियों के रुचि न लेने कारण वन विभाग के दोनों प्रमुख गोदामों में तीन लाख कुंतल लीसा इकट्ठा हो गया है। इसे देखते हुए सरकार ने अब इसकी खुली और ई-नीलामी कराने का फैसला लिया है। यानी अब कोई भी इसमें भागीदारी कर सकता है। इसके लिए महकमे ने कवायद शुरू कर दी है।राज्य में वन विभाग के अधीन वन क्षेत्रों में करीब 15 फीसद हिस्से में चीड़ के वनों का कब्जा है। चीड़ के इन पेड़ों से प्रतिवर्ष औसतन डेढ़ लाख कुंतल लीसा का टिपान होता है। काठगोदाम और ऋषिकेश स्थिति गोदामों में इसका भंडारण होता है और फिर इसकी नीलामी की जाती है। इसके लिए तय व्यवस्था के तहत 50 फीसद लीसा राज्य की कंपनियां, 25-25 फीसद खादी ग्रामोद्योग व राज्य से बाहर की कंपनियों को बिक्री करने का प्रावधान है।इस बीच दो साल से कंपनियों ने लीसा खरीदने में अचानक रुचि दिखानी बंद कर दी। इस पर सरकार ने पिछले साल लीसा का छह हजार रुपये प्रति कुंतल बेस प्राइस तय किया, फिर भी लीसा की बिक्री नहीं हुई। नतीजतन, वन विभाग के दोनों गोदामों में 3.29 लाख कुंतल लीसा जमा हो गया। जैसे-तैसे कर गुजरे पिछले पांच माह में 32 हजार कुंतल लीसा ही वन विभाग निकाल पाया। अभी भी दोनों गोदामों में 2.94 लाख कुंतल लीसा पड़ा हुआ है। अति ज्वलनशील होने के कारण इसके भंडारण ने पेशानी में बल डाले हुए हैं। इसे देखते हुए सरकार ने अब इस लीसे के निस्तारण के लिए पूर्व व्यवस्था की बंदिश हटाकर इसकी खुली नीलामी कराने का निर्णय लिया है। नोडल अधिकारी लीसा के अनुसार पूर्व में मुख्यमंत्री ने भी लीसा निस्तारण के निर्देश दिए थे। इस क्रम में कवायद शुरू कर दी गई है। अब कोई भी कंपनी यह लीसा खरीद कर सकेगी।चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले लीसे का मुख्य उपयोग तारपीन का तेल बनाने में होता है। इसके अलावा कॉस्मेटिक उत्पादों के साथ ही अन्य कई उत्पादों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।नरेंद्रनगर वन प्रभाग की ओर से चार साल के लीसे की नीलामी की गई। इस दौरान करीब 80.85 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। लीसे की नीलामी के लिए नरेंद्रनगर वन प्रभाग की ओर से इस बार स्थानीय के साथ ही ऑनलाइन भी टेंडर आमंत्रित किए गए थे।हिमाचल, दिल्ली, हल्द्वानी, अल्मोड़ा और नैनीताल के ठेकेदारों ने नीलामी में भाग लिया। यह लीसा टिहरी वन प्रभाग, अपर यमुना वन प्रभाग, टौंस, चकराता, मसूरी, नरेंद्रनगर, गढ़वाल, रुद्रप्रयाग, बदरीनाथ, केदारनाथ और उत्तरकाशी वन प्रभाग से लाया गया था। वित्त वर्ष 2018-19 का 33,364.33 किलोग्राम लीसा 15,65,82,601 रुपये। वित्त वर्ष 2019-20 का 42,452.91 किलोग्राम लीसा 26,51,41,197 रुपये। वित्त वर्ष 2020-21 का 23,374.26 किलोग्राम लीसा 16,35,80,624 रुपये। वित्त वर्ष 2021-22 का 35,385.36 किलोग्राम लीसा 22,32,84,845 रुपये में बिका। करीब 25,385.36 क्विंटल लीसा 8800 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिका। आदेश के मुताबिक ही उन्हें राहत दी जाएगी। वन विभाग लीसे की बिक्री करता है जबकि लकड़ी का जिम्मा वन निगम पर है।
उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर चुके हैं वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

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