सावन के दिनों में शिव जी की पार्थिव पूजा में शिव वास देखना है सबसे महत्वपूर्ण

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आजकल पवित्र सावन मास में भगवान शिव जी के पार्थिव पूजा का सर्वाधिक महत्व है। रुद्राभिषेक से संबंधित एक बहुत महत्वपूर्ण बात आज मैं प्रिय भक्तों को बताना चाहूंगा। हमारी देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में रहने वाले भक्त पार्थिव पूजन की शुरुआत पवित्र जागेश्वर धाम से करते हैं। अनेक श्रद्धालु भक्त पार्थिव पूजन की शुरुआत के लिए सही समय शुद्ध दिन व तिथि मुहूर्त निकलवाने हेतु विद्वान पंडितों से संपर्क कर जानकारी प्राप्त करते हैं कि कौन सा दिन पार्थिव पूजन शुरू करने के लिए सर्वोत्तम होगा। विद्वान जन पैट- अपैट( चन्द्र बल) आदि देखकर यजमान भक्तों को सही मार्गदर्शन कर आते हैं। वैसे तो सावन के सभी दिन भगवान शिव जी के पार्थिव पूजन के लिए उचित माने गए हैं। परंतु चंद्र बल के अतिरिक्त शिव वास को देखना सबसे महत्वपूर्ण है। मेरा विद्वान जनों से भी विनम्र निवेदन है कि यजमान भक्तों को चंद्रावल के अतिरिक्त शिव वास की जानकारी भी देनी चाहिए। यह शिव वास क्या है? आज मैं सुधी पाठकों को शिव वास के संबंध में बताना चाहूंगा। शिव वास का अर्थ कुछ इस तरह से समझें की वर्ष के प्रत्येक चंद्रमा 30 दिनों का होता है। इन 30 तिथियों में भगवान शिव अनेक स्थानों में वास करते हैं कौन सी तिथि को कहां वास करते हैं और उस स्थान का क्या शुभ अशुभ फल होता है? इसी जानकारी को शिव वास देखना कहते हैं। शिव पूजा अनुष्ठान महामृत्युंजय मंत्र जाप आदि करने के लिए शिव वास देखना अत्यंत आवश्यक है। अब मैं सुधी पाठकों को कुछ पौराणिक श्लोकों के आधार पर शिव वास जानने की विधि समझाने का प्रयत्न करना चाहूंगा। जो निम्न प्रकार से है।तिथिं च द्विगुणित कृत्वा पुन: पंच समन्वितम । मुनिभिस्तु हरेद्भागं शेषं च शिववासनम् ।। अर्थात 30 तिथियों में से वर्तमान दिन जो तिथि हो उसका दोगुना करें फिर उसमें पांच और जोड़ें तथा अंत में 7 का भाग दे दे जो शेष बचे वही उस दिन शिव वास होगा । तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करें। उदाहरण अर्थात माना वर्तमान दिन शुक्ल पक्ष की पंचमी है पंचमी अर्थात 5 का दोगुना किया दस हुआ उसमें फिर 5 और जोड़ा 15 हुए 15 में 7 का भाग दिया एक शेष बचा अतः वर्तमान दिन शिव जी का वास कैलाश में समझना चाहिए। एकेन वास: कैलाशे द्वितीये गौरीसन्निधौ तृतीये वृषभारुढ: सभायां च चतुर्थके ।। पंचमे भोजने चैव क्रीडायां च रसात्मके श्मशाने सप्तमे चैव शिववास: उदीरित: ।। कैलाशे लभते सौख्यं गौर्रया च सुख सम्पदौ वृषभेअ्भीष्ठ सिद्धि: स्यात् सभायां तापकारकौ ।। भोजने च भवेत् पीडा क्रीडायां कष्टमेव च, श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं च विचारयेत ।। अतः पूरे श्लोक का अर्थ कुछ इस प्रकार से है। यदि एक शेष बचे तो शिव जी का वास कैलाश में समझना चाहिए जो सुख कारक है। यदि शेष दो बचे तो शिव वास गौरी के पास जो सुख संपत्ति करने वाला होगा। शेष तीन बचे तो बैल पर सवार शेष चार बचे तो सभा में, जो तापकारक है, शेष पांच बचे तो शिव जी भोजन कर रहे होते हैं, जिसका फल पीड़ा कारक हैं, छ: शेष बचे तो भोले बाबा क्रीड़ा कर रहे होते हैं, जिसका फल कष्ट कारक है, यदि सात शेष बचे तो यह मृत्यु कारक होता है । रुद्राभिषेक महामृत्युंजय जप पार्थिव पूजन ज्योतिर्लिंग की यात्रा एवं अनुष्ठान के रूप में शिव पूजा प्रारंभ करने से पहले शिव वास का विचार अवश्य करना चाहिए। परंतु नित्य पूजन आदि में यह विचार नहीं है। अतः मेरा प्रिय भक्तों व विद्वान जनों से विनम्र निवेदन है कि आप शिव वास की जानकारी अवश्य रखें धन्यवाद। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ।

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