काशी के कोतवाल कहे जाते हैं भगवान श्री काल भैरव जयंती का क्या है महत्व
काशी के कोतवाल कहे जाते हैं भगवान श्री काल भैरव।
काल भैरव भगवान शिव जी के ही अवतार हैं। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को काल भैरव जयंती का पावन पर्व मनाया जाता है। काल भैरव की आराधना करने से व्यक्ति भय मुक्त हो जाता है।
पुराणों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन यदि पुराणों पर आधारित कुछ महत्वपूर्ण उपायों को कर लिया जाए तो आपको जीवन में कई प्रकार की विघ्न बाधाओं एवं परेशानियों से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाएगी। और सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण हो जाएंगी। आज मैं सुधी पाठकों के कल्याण हेतु कुछ महत्वपूर्ण उपायों की जानकारी अपने आलेख के माध्यम से देना चाहूंगा। कि आप भली-भांति आलेख में लिखी जानकारियों को पढ़ें। ताकि इन महत्वपूर्ण उपायों में कोई चूक ना रहे यह उपाय निम्न प्रकार से हैं–
भगवान काल भैरव भगवान के शिव स्वरूप हैं अतः इस दिन भगवान शिव जी की पूजा करने से भगवान काल भैरव की कृपा एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। अतः इस दिन किसी शिवालय में जाकर अथवा नजदीक के किसी शिव मंदिर में जाकर 21 बेलपत्रों मैं चंदन से ओम लिखकर शिवजी को अर्पित करें। इसके उपरांत अपनी मनोकामनाएं जो भी हैं सिर्फ मन में सोचें बोले नहीं। ऐसा करने से आपकी मनोकामनाएं शीघ्र पूर्ण होती हैं। तदोपरांत काल भैरव चालीसा का पाठ करें। इससे भी महत्वपूर्ण काल भैरव जयंती के दिन ऐसे मंदिर में जाएं जहां कम लोग जाते हो या कई दिनों से वहां किसी ने पूजा ने करी हो। ऐसा माना जाता है कि जो भैरव कम पूजे जाते हैं उनका पूजन करने से भगवान काल भैरव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। काल भैरव जयंती के दिन मंदिर में दीपक प्रज्वलित करें और भगवान भैरव जी को पान सुपारी नारियल मिश्री या शुद्ध जलेबी का भोग लगाएं। भगवान भैरव का वाहन श्वान अर्थात कुत्ता माना गया है। इस दिन भगवान भैरव की पूजा के अतिरिक्त कुत्ते को भोजन कराएं।
हमारी देवभूमि की संस्कृति के अनुसार पौराणिक परंपरा रही है कि जहां भी कोई गांव या शहर बसता है सर्वप्रथम भूमि पूजन किया जाता है सर्वप्रथम पवित्र भूमि देवता मंदिर बनाया जाता है इन्हें ग्राम देवता के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। क्षेत्रपाल का नाम पौराणिक ग्रंथों में भी वर्णित है। जब भी गांव या नगर में कोई शुभ कार्य होता है सर्वप्रथम भूमि देवता की पूजा की जाती है ताकि गांव में सुख समृद्धि एवं शांति बनी रहे। ऐसा माना जाता है कि भूमि देवता की इजाजत के बिना कोई भी दैवीय शक्ति या बाहरी शक्ति गांव में प्रवेश नहीं कर सकती है। यहां खेतों में उपजे अनाज फल व सब्जियां सर्वप्रथम भूमि देवता को अर्पित की जाती है। यहां तक की जेष्ठ के महीने नए अनाज पैदा होने पर सर्वप्रथम नया अन्न यहां मंदिर में चढ़ाया जाता है और यहां भंडारा भी लगता है नए अनाज के गेहूं के आटे से बना प्रसाद सर्वप्रथम भूमिया देव के लिए भोग लगाने के लिए प्रसाद बनाया जाता है। तदोपरांत गांव के सभी लोग भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद मैं भैरव जी की उत्पत्ति से जुड़ा हुआ उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार एक समय भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से पूछा इस ब्रह्मांड का श्रेष्ठतम रचनाकार कौन है? इस प्रश्न के उत्तर में ब्रह्मा जी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्मा जी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए। और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने प्रश्न के उत्तर जानने के लिए बारी-बारी से पहुंचे। सर्वप्रथम ऋग्वेद के पास पहुंचे ऋग्वेद में जब उनका प्रश्न सुना तो कहा शिव ही श्रेष्ठ है। वह सर्वशक्तिमान है। संपूर्ण जीव जंतु उन्हीं में समाहित हैं। इसके बाद जब यजुर्वेद से यह प्रश्न पूछा गया तो यजुर्वेद ने जवाब दिया यज्ञ के द्वारा हम जिसे पूजते हैं वहीं सर्वश्रेष्ठ है भगवान शिव ही सर्वश्रेष्ठ है। शिव के अतिरिक्त ऐसा कोई दूसरा नहीं हो सकता है। तदुपरांत जब ब्रह्मा और विष्णु इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए सामवेद के पास गए तो सामवेद ने उत्तर दिया विभिन्न साधक और योगी जिस की आराधना करते हैं वही सर्वश्रेष्ठ है। जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है वह सर्वश्रेष्ठ है वह त्रयंबकम यानी शिव हैं। अंत में जब भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा अपने प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अथर्ववेद के पास गए तो इस प्रश्न के उत्तर में अथर्ववेद ने कहा भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त कर सकता है प्रत्येक मनुष्य की हर चिंताओं को हरता है वह शंकर ही सर्वश्रेष्ठ है। चारों वेदों का उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर जोर से हंसने लगे इतने में वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव जी ही आ पहुंचे शिवजी को देखकर ब्रह्मा जी का पांचवा सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा उसी समय भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे काल नाम दिया और कहा की यह काल यानी मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव जी का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते हुए पांचवे सिरको भैरव ने उनके धड से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव को सभी तीर्थ स्थानों पर जाने को कहा ताकि उन्हें ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिल सके। भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थाई रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए।
शुभ मुहूर्त,,,,, इस बार सन् 2022 में दिनांक 16 नवंबर 2022 दिन बुधवार को काल भैरव जयंती मनाई जाएगी। यदि इस दिन अष्टमी तिथि की बात करें तो इस दिन अहोरात्र तक अष्टमी तिथि है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन अश्लेषा नामक नक्षत्र 30 घड़ी 37 पल अर्थात शाम 6:55 बजे तक है यदि इस दिन करण की बात करें तो इस दिन बालव नामक करण 30 घड़ी 33 पल अर्थात शाम 6:53 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव शाम 6:55 बजे तक कर्क राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव सिंह राशि में प्रवेश करेंगे।
आप सभी को सपरिवार काल भैरव जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।