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मकर संक्रांति अथवा घुघुतिया की कथा,,,,,,,, मकर सक्रांति कुमाऊं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस बार यह त्यौहार शुक्रवार दिनांक 14 जनवरी को मनाया जाएगा। देवभूमि के कुमाऊं में इस त्यौहार को कहीं घुघूती त्यार तो कहीं पुषूडिया त्यार के नाम से भी जाना जाता है। यह एक स्थानीय पर्व है जिसको कुमाऊं में उत्सव के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार कुमाऊं में 2 दिन में मनाया जाता है। इन 2 दिनों का विभाजन अल्मोड़ा जनपद के बहने वाली पवित्र सरयू नदी से किया जाता है। सरयू नदी के पूर्वी भाग में उस पार इसका आयोजन पौष मास के अंतिम दिन अर्थात 13 जनवरी को किया जाता है अर्थात घुघुति पौष मास के अंतिम दिन बनाए जाते हैं और माघ मास के प्रथम दिन इसको कौवे को खिलाया जाता है। इसी कारण इसे पुषूडिया त्यार कहां जाता है। इसी प्रकार सरयू नदी के इस पार के समस्त कुमाऊं में यह मकर संक्रांति के दिन अर्थात माघ मास के प्रथम दिन मनाते हैं। और माघ महीने के दूसरे दिन इन्हें कौवे को दिया जाता है। यह त्यौहार भले ही अलग-अलग दिन मनाया जाता हो या फिर इस त्यौहार को कई अलग-अलग नामों से पुकारा जाता हो लेकिन त्यौहार में बनने वाले व्यंजन लगभग पूरे उत्तराखंड में एक समान होते हैं। इस त्यौहार में बनने वाले व्यंजनों में जो सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है वह है घुघुती। यह व्यंजन आटा और सूजी को मिलाकर उसको गुड़ युक्त पानी तथा दूध के साथ गोदा जाता है। फिर उसका आकार लगभग हिंदी के अंक ४ की तरह बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त उस आटे से और आकृतियां भी बनाई जाती है जैसे ढाल तलवार डमरु दाड़िम के फूल आदि अनेक तरह की आकृतियां बनाई जाती है। और साथ में कुछ खजूरे भी बनाए जाते हैं। खजऊरए बनाने के लिए आटे को बेलकर रोटी बनाई जाती है फिर उस मोटी रोटी को चाकू से छोटे-छोटे चौकोर टुकड़ों में काट दिया जाता है। और शाम को फिर इन सब को तेल में तल कर रख दिया जाता है। घुघूती त्यौहार के दिन घर में तरह-तरह के व्यंजन जैसे पूरी बड़े पुवे सिंगल चावल से बनी खीर आदि बनाए जाते हैं। इन घुघुतों को फिर एक माला में पिरोया जाता है। और उस माला के बीचो-बीच मध्य भाग में एक संतरा या नारंगी फल लगा दिया जाता है। अगले दिन सुबह होने पर बच्चे सुबह उठकर नहा धोकर इन मालाओं को पहन लेते हैं। और अपनी छत पर जाकर पूरी व कुछ घुघुतों को एक स्थान पर रखकर जोर-जोर से कौवे को बुलाना प्रारंभ कर देते हैं। और साथ ही साथ एक मधुर आवाज में कर्णप्रिय लगने वाला गाना भी गाते हैं जिसमें अपने लिए बहुत सारी मनोकामनाएं कौवे से पूरी करने के लिए कहते हैं। जो निम्न प्रकार से है।
काले कौवा काले ।
घुघुति माला खाले ।।
ल्हे कौवा बडो ।
मैं कैं दीजा सुनुक घडो ।।
ल्हे कौवा ढाल ।
मैं कैं दीजा सुनुक थाल ।।
ल्हे कौवा पुरी ।
मैं कैं दीजा सुनुक छुरी।।
ल्हे कौवा तलवार ।
मैं कैं दे ठुलो घरबार।।
काले कौवा काले ।
पूसै रोटी माघे खाले ।।
सुबह-सुबह संपूर्ण इलाकों में बच्चों की मधुर आवाजों से एक सुंदर एवं मनमोहक शोरगुल पैदा हो जाता है। जो सुनने में बेहद कर्णप्रिय लगता है। उनके इस जोर-जोर से चिल्लाकर कौवा को आमंत्रण देने से कौवे भी तुरंत आ जाते हैं। और उनके पूरी और घुघूती को ले जाकर कहीं दूर गगन में उड़ जाते हैं। बच्चे इस काम को बहुत ही उत्साह व खुशी से करते हैं। और अपनी माला से घुघुती निकाल निकाल कर कौवे को खिलाते हैं। जिसका घुघुती कौवा सबसे पहले लेकर उड़ जाता है उसे सबसे भाग्यशाली समझा जाता है।
इस त्यौहार के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक प्रचलित कथा यह है कि कुमाऊं के चंद्र शासक कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने एक बार मकर संक्रांति के पर्व पर बागेश्वर जा कर पवित्र सरयू और गोमती के पवित्र संगम पर स्नान कर भगवान बागनाथ बागनाथ यानी शिव जी का विशाल मंदिर बागेश्वर में सरयू एवं गोमती के संगम पर स्थित है की पूजा करते हुए उन से पुत्र प्राप्ति के लिए प्रार्थना की भगवान भोलेनाथ ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अगले मकर संक्रांति में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हो गई कल्याण चंद ने अपने पुत्र का नाम निर्भय चंद्र रखा। लेकिन माता उसे प्यार से घुघूती पुकारती थी। राजकुमार निर्भय के गले में मोती की एक माला हमेशा रहा करती थी। जिसमें घुंगरू लगे थे। जिसे देखकर वह बालक बहुत प्रसन्न होता था। और वह उस माला से बहुत स्नेह रखता था। किंतु जब कभी वह रोने लगता या जिद करने लगता तो माता उसे चुप कराने के लिए कहती चुप रह घुघूती चुप हो जा नहीं तो तेरी यह प्यारी सी माला कौवे को दे दूंगी और जोर से चिल्लाती ओ आजा कौवे आजा घुघूती की माला खाजा । इस प्रकार बालक डर से चुप हो जाता। और कभी कभी कौवे सचमुच में ही आ जाते थे। राजकुमार उनको देखकर खुश हो जाता और रानी उनको कुछ पकवान खाने को दे देती। लेकिन राजा का एक दुष्ट मंत्री इस राज्य को हड़पने की बुरी नियत से इस प्यारे से राजकुमार को मार डालना चाहता था। इसी वजह से वह एक दिन राजकुमार को उठाकर जंगल की तरफ चल दिया लेकिन इस घटना को उसके साथ खेलने वाले एक कौवे ने देख लिया और वह कौवा जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज सुनकर और भी कौवे वहां पर इकट्ठे हो गए और सभी जोर-जोर से चिल्लाने लगे राजकुमार ने अपने गले की माला उतार कर अपने हाथ में रखी थी और एक कौवे ने झपट कर उसकी माला उसके हाथ से ले ली और सीधे राजमहल की तरफ उड़ गया। कौवे के मुंह में राजकुमार की माला देखकर और राजकुमार को वहां न पाकर सभी लोग घबरा गए। कौवा माला को लेकर कभी इधर-उधर घूमता और कभी जोर जोर से चिल्लाने लगता। तब राजा की समझ में आया कि राजकुमार किसी संकट में है और वह कौवे के पीछे पीछे जंगल की तरफ चले गए। जहां मंत्री डर के मारे राजकुमार को छोड़कर भाग चुका था। रानी अपने पुत्र को पाकर बहुत प्रसन्न हुई और कौवे का एहसान मानकर उन्हें प्रत्येक मकर संक्रांति पर पकवान बना कर खिलाती थी। और राजकुमार के जन्मदिन के अवसर पर को को बुलाकर पकवान खिलाने की यह परंपरा उन्होंने राज्य भर में प्रारंभ कर दी। इस त्यौहार को मनाए जाने के पीछे एक और कारण यह है कि जनवरी के माह में देवभूमि के पर्वतीय इलाकों में अत्यधिक ठंड और हिमपात की वजह से सारे पक्षी मैदानी इलाकों में चले जाते हैं लेकिन कौवा ही वह प्राणी है जो अपने आवास को छोड़कर कहीं नहीं जाते हैं। संभवत इसी वजह से इन्हें आदर देने हेतु इन्हें यह पकवान बनाकर खिलाए जाते हैं।

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