प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड ने अपना मानदेय बढ़ाने व भोजन माताओं को विद्यालयों से न हटाए जाने को लेकर एसडीएम को सौंपा ज्ञापन

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प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड ने अपना मानदेय बढ़ाने व किसी भी परिस्थितियों में भोजन माताओं को विद्यालय से न निकाले जाने के संबंध में बुद्ध पार्क में सभा कर मुख्यमंत्री को उपजिलाधिकारी के माध्यम से ज्ञापन सौंपा। सभा में युनियन महामंत्री रजनी जोशी ने कहा कि हम भोजनमाताएं 19-20 सालों से स्कूलों में खाना बनाने के अलावा चार-चार कर्मचारियों ( माली, चतुर्थ कर्मचारी, सफाई कर्मचारी व भोजनमाता) के बराबर काम कर रही है। हमें मात्र 11 माह का मानदेय दिया जाता हैं। इस बढ़ती महंगाई में हमें मिलने वाले मात्र ₹3000 के मानदेय में कैसे हमारा घर चलेगा जबकि हम पर अपने पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। शिक्षा सचिव द्वारा भोजन माताओं का मानदेय 5000 करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है । और खुद मुख्यमंत्री ने चुनाव के बाद भोजन माताओं के मानदेय को बढ़ाने की बात कही थी लेकिन आज तक भोजन माताओं के मानदेय में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों केरला, लव पांडुचेरी, तमिलनाडु, लक्ष्यदीप आदि में मिड डे मील वर्कर को न्यूनतम वेतन दिया जा रहा है। स्कूल विलयीकरण और बच्चे कम होने की स्थिति में भोजन माताओं को बड़ी संख्या में विद्यालयों से निकाला जा रहा है जिसका यूनियन विरोध करती है। प्रगतिशील भोजनमाता संगठन, उत्तराखंड ने मुख्यमंत्री से कहा कि शिक्षा सचिव द्वारा सरकार को प्रस्तावित 5000 रू/-का मानदेय बढ़ाये जाने, स्कूल विलयीकरण व बच्चे कम होने की स्थिति में भोजनमाताओं को विद्यालय से न निकालने पर विचार करें, न्यूनतम वेतन लागू करो, भोजन माताओं को 12 माह का मानदेय दिया जाए, भोजन माताओं को स्थाई करने, ईएसआई, पीएफ, प्रसूति अवकाश आदि सुविधाएं लागू करने की मांग की।

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