महाशिवरात्रि पर्व पर क्या है विशेष,तीन रात्रि मानी जाती बहुत महत्वपूर्ण

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महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष हिन्दू धर्म के अनुसार तीन रात्रि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है, दुर्गा सप्तशती में भी कहा जाता है कालरात्रि महारात्रि मोहरात्रि च दारुणा शिव रात्रि कृष्ण जन्माष्टमी और दिवाली ये तीन रात्रि है, शिव रात्रि जो बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है भगवान भोले नाथ की पूजा आराधना की जाती है, इस बार ग्यारह मार्च को यह पर्व है, भोले नाथ की मिट्टी का लिंग बना कर दूध, दही घी शहद व गंगा जल से भोले नाथ का अभिषेक किया जाता है, वेल पत्र चढाये जातेहैं, शिव रात्रि से संबंधित एक पौराणिक कथा है कि एक बार पारवती जी ने भगवान शिव जी से पूछा ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत पूजा है जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, उत्तर में शिव जी ने पार्वती जी को शिव रात्रि के व्रत का विधान बता कर यह कथा सुनाई एक बार चित्र भानु नामक एक शिकारी था पशुओं की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था, वह एक साहुकार का ऋणी था लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका क्रोधी साहुकार ने शिकारी को शिव मठ में बंदी बना दिया संयोग से उस दिन शिव रात्रि थी शिकारी ध्यान मग्न हो कर शिव संबंधित धार्मिक बातें सुन रहा था, चतुर्दशी को उसने शिव रात्रि वरत की कथा भी सुनी संध्या होते ही साहुकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में बात की शिकारी ने अगले दिन सारा ऋण चुकाने का वचन देकर बंधन से छूट गया, अपनी दिन चर्या की भांति वह शिकार के लिए चला गया, लेकिन दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख प्यास से व्याकुल था शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे वेलव्रक्ष पर पडाव बनाने लगा वेलव्रक्ष के नीचे शिव लिंग था जो विल्लपत्रौसेढका था शिकारी को उसका पता नहीं था पडाव बनाने समय उसने जो टहनियों तोडी वो संयोग से शिव लिंग पर गिरी इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिव लिंग पर वेल पत्र भी चढ गये, अब एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भवती मृगी तालाब पर पानी पीने निकली शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ा कर ज्यूं ही प्रत्यंचा खीची मृगी बोली में गर्भवती हूँ सीघ्र ही प्रसव करुंगी, तुम एक साथ दो जीवौं की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है, मैं बच्चे को जन्म देकर सीघ्र ही तुम्हारे पास प्रस्तुत हो जाऊंगी तब मार लेना शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली करली और मृगी झाडियों में लुप्त हो गई, कुछ देर बाद एक और मृगी उधर से निकल ई शिकारी की प्रसंन्न ता का ठिकाना न र हा समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढाया तब उसे देख मृगी ने विनम्र ता से निवेदन किया हे पारधी में थोड़ी देर पहले ऋण से निवृत्त हुईं हूँ कामातुर विरहिणी हूँ अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ, मैं अपने पति से मिलकर सीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी शिकारी ने उसे भी जाने दिया दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका वह चिंता में पड गया रात्रि का आखरी पहर बीत रहा था तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर लगाने में देर नही लगाईं वह तीर छोडने ही वाला था कि मृगी बोली हे पारधी में इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी इस समय शिकारी हंसा और बोला सामने आये शिकार को छोड़ दूं इससे पहले दो बार शिकार खो चुका हूँ, मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे हुंगे, उत्तर में मृगी ने फिर कहा जैसे तुम्है अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए बच्चों के नाम पर थोड़ी देर जीवन दान मांग रही हूँ, मेरा विश्वास करो में तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ, मृगी का दीन स्वर सुन कर शिकारी को उस पर दया आ गयी उसने उस मृगी को भी जाने दिया शिकार के अभाव में वेल वृक्ष पर बैठा शिकारी वेल पत्र तोड तोड़ कर नीचे फैकते जा रहा था, पौ फटने को हुईं तो एक हष्ट पुष्ट मृगी रास्ते पर आया शिकारी ने सोचा इसका शिकार तो अवश्य करना है, शिकारी की तनी प्रत्यंचा देख कर मृगी विनीत स्वर में बोला हे पारधी भाई यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन मृगी यौ तथा छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे मारने में भी देर मत करो ताकि मुझे उनके वियोग मे एक क्षण भी दुख न सहना पडे में उन मृगी यौ का पति हूँ, यदि तुमने उनको जीवन दान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवन देने की कृपा करें में उन से मिल कर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊगा, मृगी की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूमता गया उसने सारी कथा मृगी को सुनाई तब मृगी ने कहा मेरी तीनों पत्नीयां जिस प्रकार पतिज्ञा व्रद्ध होकर गयी है मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पायंगे अत.. जैसे तुमने विश्वास पात्र मान कर छोडा है वैसे ही मुझे भी जाने दो में उनसब के साथ सीघ्र ही उपस्थित होता हूँ उपवास रात्रि जागरण तथा शिव लिंग पर वेल पत्र चढने से शिकारी का हिंसक ह्रदय निर्मल हो गया उसमें भगवत शक्ति का वास होगया, धनुष तथा वाणी उसके हाथ से छूट गये भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक ह्रदय कारुणिक भावो से भर गया वह अपने अतीत के क्रम को याद कर पश्र्चाताप की ज्वाला में जलने लगा थोड़ी देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया ताकि वह उनका शिकार कर सके किन्तु जंगली जानवरों की ऐसी सत्यता, सात्विक ता प्रेम भावना देख कर शिकारी को बडी ग्लानि हुई उसके ह्रदय ने जीव हिंसा को हटाकर कोमल ह्रदय बन गया, घटना की परिणति होते ही देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की तब शिकारी व मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुये, पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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