चार पावन धामों में से एक है जगन्नाथ धाम प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है रथयात्रा

ख़बर शेयर करें

जगन्नाथ का अर्थ है जगत के नाथ यानी भगवान विष्णु। भारतवर्ष के उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। हिंदू मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाना चाहिए। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होती है ।रथ यात्रा के दौरान पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ तीनों की आराधना की जाती है और तीनों के भव्य एवं विशाल रथों को सड़कों में निकाला जाता है। बलभद्र के रथ को “ताल ध्वज”कहा जाता है जो यात्रा में सबसे आगे चलता है। सुभद्रा के रथ को “दर्प दलन “या “पद्म रथ” कहा जाता है जो मध्य में चलता है। जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को” नंदीघोष “या “गरुड़ध्वज” कहा जाता है जो सबसे अंत में चलता है। प्रतिवर्ष यह पर्व लाखों श्रद्धालु एवं सैलानियों एवं जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करता है।
शुभ मुहूर्त—
इस बार भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभ मुहूर्त दिनांक 20 जून 2023 दिन मंगलवार को है। इस दिन यदि द्वितीया तिथि की बात करें तो 19 घड़ी 40 पल अर्थात दोपहर 1:07 बजे तक है पुनर्वसु नामक नक्षत्र 43 घड़ी 20 पल अर्थात रात्रि 10:35 बजे तक है। यदि योग की बात करें तो ध्रुव नामक योग 51 घड़ी 13 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:44 बजे तक है। कौलव नामक करण 19 घड़ी 40 पल अर्थात दोपहर 1:07 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्रदेव दोपहर 3:59 बजे तक मिथुन राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।

रथ यात्रा के दौरान मनाई जाने वाली परंपराएं—
रथ यात्रा के दौरान “पहांड़ी “एक धार्मिक परंपरा है जिसमें भक्तों के द्वारा भगवान बलभद्र देवी सुभद्रा एवं भगवान श्री कृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक की रथ यात्रा कराई जाती है। कहा जाता है कि गुंडिचा भगवान श्रीकृष्ण की सच्ची भक्त थी। और उनकी इसी भक्ति का सम्मान करते हुए यह तीनों इनसे प्रतिवर्ष मिलने आते हैं।
“छेरा पहरा”–रथयात्रा के प्रथम दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है जिसके अंतर्गत पुरी के गणपति महाराज के द्वारा यात्रा मार्ग एवं रथों को सोने की झाड़ू से साफ किया जाता है। प्रभु के सामने प्रत्येक व्यक्ति समान है इसलिए एक राजा साफ सफाई का कार्य करता है। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है। प्रथम बार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है तब और दूसरी बार जब यात्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है तब। जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुंचती है तब भगवान जगन्नाथ सुभद्रा एवं बलभद्र जी को विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाए जाते हैं। यात्रा के पांचवे दिन हेरा पंचमी का महत्व है इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती है जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं।

रथ यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व–
इस यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों महत्व हैं। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पूरी यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जो कि भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। हिंदू धर्म की आस्था का मुख्य केंद्र होने के कारण इस यात्रा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। कहते हैं कि जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरांत मोक्ष प्राप्त होता है। वह इस जीवन मरण के चक्र से बाहर निकल जाते हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए संपूर्ण विश्व भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के सैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केंद्र मानी जाती है। इस यात्रा को “पुरी कार फेस्टिवल “के नाम से भी जाना जाता है यह सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती हैं।
भगवान बलभद्र देवी सुभद्रा एवं भगवान जगन्नाथ हम और आप सभी की मनोकामनाएं को पूर्ण करें तो बोलिए भगवान जगन्नाथ धाम की जय।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।

You cannot copy content of this page