कु.वि.वि.में ‘भारतीय इतिहास में नवीन प्रवृतियां, समाज,संस्कृति, अर्थव्यवस्था व राजनीति’विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का किया आयोजन
कुमाऊँ विश्वविद्यालय में ‘‘भारतीय इतिहास में नवीन प्रवृतियां, समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, एवं राजनीति’ विषय पर राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन
मानव संसाधन विकास केंद्र, कुमाऊँ विश्वविद्यालय तथा इतिहास विभाग द्वारा ‘‘भारतीय इतिहास में नवीन प्रवृतियां, समाज, संस्कृति, अर्थव्यवस्था, एवं राजनीति विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया। राष्ट्रीय वेबीनार में नॉर्थ ईस्टर्न हिल विश्वविद्यालय के इतिहासविद् प्रो0 ए0 के0 ठाकुर ने बतौर मुख्य अतिथि, प्रो0 अनिरूद्ध देशपाण्डे दिल्ली विश्वविद्यालय, मुख्य वक्ता तथा प्रो0 जे0 एन0 सिन्हा, सदस्य, शोध परिषद, नेशनल कमीशन फॉर हिस्ट्री ऑफ साइन्स अध्यक्ष के रूप में मौजूद रहे। वेबीनार का प्रारंभ प्रातः 10.00 बजे हुआ जिसमें आयोजन सचिव डॉ0 रीतेश साह ने वेबीनार में सम्मिलित विद्वानों का स्वागत किया गया तथा सेमीनार के विषय में विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए कहा कि मानव जीवन में इतिहास की उपयोगिता निर्विवाद है क्योंकि इसे मानव समाज के विकास का कथन माना जाता है, इतिहास मानव समाज में सत्य और न्याय की प्राप्ति के संघर्ष का वर्णन है। कहा जाता है कि इतिहास की उपेक्षा करने वाले राष्ट्र का कोई भविष्य नहीं होता, इसलिए किसी राष्ट्र की वृद्धि और विकास के लिए हाल के रुझानों का अध्ययन आवश्यक है। इस राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन विषय में हाल के रुझानों और प्रगति को समझने के लिए किया जा रहा है।
तत्पश्चात मानव संसाधन केंद्र कुमाऊँ वि0वि0 की निदेशक प्रो0 दिव्या उपाध्याय जोशी ने मुख्य अतिथि एवं विद्वानों का स्वागत किया। कुमाऊँ विश्वविद्यालय की इतिहास विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो0 सावित्री कैड़ा जन्तवाल ने आजादी के अमृत महोत्सव के गौरवपूर्ण अवसर पर उत्तराखंड की महिलाओं का स्वराज संघर्ष में योगदान विषय पर विचार रखें। होनें उत्तराखण्ड की महिलाओं का स्वतंत्रता संग्राम में दिये गये योगदान के विषय में विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया।
वेबीनार में मुख्य बीज वक्ता दिल्ली वि0वि0 के प्रसिद्ध इतिहासविद् डॉ0 अनिरुद्ध देशपांडे रहे। उन्होंने जोर देकर कहा कि हम वर्तमान को अतीत के अध्ययन से ही अच्छी तरह समझ सकते हैं इसलिए भाषाओं एवं शब्दकोश में आए परिवर्तनों पर भी शोध होना चाहिए।
मुख्य अतिथि प्रो0 अमरेन्द्र कुमार ठाकुर ने उत्तर पूर्व भारत के सांस्कृतिक एवं धार्मिक इतिहास के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला । उन्होनें कहा बौद्ध धर्म और बौद्ध धर्म और व्यापार, मिश्रित संस्कृति, विष्णु की पूजा, की परंपरा रामायण, आदि विषय में विस्तारपूर्वक व्याख्यान दिया और प्रतिभागियों से आह्वान किया कि उत्तर पूर्व भारत के इतिहास को केवल जनजातियों के इतिहास की दृष्टि से ना देखा जाए बल्कि प्राचीन एवं मध्यकाल तक इस क्षेत्र के ऐतिहासिक स्रोतों का वास्तविक अध्ययन होना चाहिए ताकि उत्तर पूर्व भारत के सही इतिहास को पाठ्यक्रम एवं इतिहास पुस्तकों में समुचित स्थान मिल सके।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो0 जे0 एन0 सिन्हा ने भारतीय दर्शन में वैज्ञानिक अवधारणा पर प्रकाश डाला और प्रमुखता से कहा कि पश्चिमी विज्ञान को भारतीय विज्ञान पद्धति के स्थान पर लादा गया जबकि भारतीय इतिहास में भी वैज्ञानिक विकास का विस्तृत विवरण मिलता है। उन्होनें कहा कि भारतीय विज्ञान का इतिहास पश्चिमी सभ्यता के साये में प्रभावित रहा है क्योंकि भारत को उपनिवेश बनाने के लिए उनके द्वारा भारतीय सभ्यता व वैज्ञानिकों को कम श्रेष्ठ आंका गया उन्होनें कहा कि इतिहास को मानवीय परिवेश के अतिरिक्त पर्यावरणीय परिप्रेक्ष्य में देखने से वृहत्तर आयाम शोध के लिए उपलब्ध होंगे।
राष्ट्रीय वेबीनार में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश. असम, पश्चिम बंगाल, केरल, राजस्थान राज्यों के सौ से अधिक प्रतिभागियों और विद्वानों ने भी भाग लिया। वेबीनार के समापन पर आयोजन सचिव डा0 रीतेश साह ने वेबीनार के मुख्य अतिथि, बीच वक्ता, अध्यक्ष एवं सभी प्रतिभागियों का सफल आयोजन में योगदान देने के लिए आभार व्यक्त किया।