वन संघर्ष मोर्चा के द्वारा कुमाऊं स्तरीय एक दिवसीय बैठक का किया गया आयोजन

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वन पंचायत नियमावली संशोधन 2021 पर वन संघर्ष मोर्चा की बैठक। भवाली वन पंचायत नियमावली संसोधन 2021 को लेकर वन संघर्ष मोर्चा के द्वारा कुमाऊं स्तरीय एक दिवसीय बैठक का आयोजन किया गया ।बैठक की अध्यक्षता वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के उपाध्यक्ष दान सिंह कठायत के द्वारा की गई बैठक का संचालन गोपाल लोधियाल के द्वारा किया गया।
गोपाल लोधियाल के द्वारा सामुदायिक वन प्रबंधन की समृद्धशाली व्यवस्था वन पंचायतों के गठन का इतिहास ब्रिटिश समय में किस तरह से पहाड़ के लोगों के द्वारा अपने वन अधिकारों को लेकर संघर्ष को लोगों के बीच रखा ।

हर्ष सिंह नेगी वन पंचायत सरपंच किलोर और रामगढ़ के द्वारा बताया गया वन पंचायत में रॉयल्टी का पैसा अभी तक नहीं मिला है और लिसे की पेमेंट भी अभी नहीं हुई है। वन पंचायत सरपंच सिमायल रामगढ बलवंत सिंह रैकवार के द्वारा बताया गया वन पंचायत के पास नक्शा नहीं है और सीमांकन की दिक्कत बनी हुई है।
जनपद चंपावत के खुलाड़ी, उखेडा,खेतार, नरियाल में सीमांकन किया जाए सीमा पिलर मौजूद नहीं है
सतोली रामगढ़ में हक हक्कू की लकड़ी विगत 10 वर्षों से गांव को नहीं मिल रही है बाघ तेंदुओं के द्वारा पालतू जानवर को मारे जाने पर भी मुआवजा नहीं मिल रहा है और न हीं विभाग के द्वारा भौतिक निरीक्षण किया जा रहा है ।
बागेश्वर से बंशीधर पांडे ने बताया लिसे की रॉयल्टी वर्ष 2014 से वन पंचायत को नहीं मिली है और नहीं उसका पेमेंट किया गया है।
कमल सुनाल जिलाध्यक्ष वन पंचायत संघर्ष मोर्चा नैनीताल के द्वारा कहा गया वन पंचायत जैसी व्यवस्था जो कि पूरे देश के अंदर सामुदायिक वन प्रबंधन की एक अनूठी व्यवस्था उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मौजूद है लगातार वन पंचायत नियमावली में फेरबदल कर लोगों की स्वायत्तता वन पंचायतों के ऊपर से खत्म की जा रही है जिसके तमाम उदाहरण हेलंंग चमोली और पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट और उत्तरकाशी में देखी जा सकती है

तरूण जोशी ने बताया वन पंचायतें उत्तराखंड की एक अमूल्य धरोहर है।राज्य के पर्वतीय क्षेत्र में फैली हुई लगभग 13000 से अधिक वन पंचायतें न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के जीवन यापन का आधार हैं वरन देश और दुनियां के पर्यावरण की दृष्टि से भी बहुमूल्य हैं।
राज्य बनने के पश्चात यह उम्मीद की जा रही थी की वन पंचायतों को और अधिक स्वायत्तता प्रदान करते हुए इन्हे पूर्णतया ग्रामीणों के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया जाएगा।
वन पंचायत नियमावली संशोधन 20-21 को लेकर एवं स्थानीय स्तर पर वन पंचायत में आ रही दिक्कतों को लेकर फरवरी माह में एक बैठक चंपावत जिले में की जाएगी इसके साथ कमिश्नरी में इस बात को लेकर जनवरी 20, 25 तारीख तक एक प्रतिनिधिमंडल उपरोक्त मुद्दों पर अपना ज्ञापन पेश करेगा
फरवरी माह के दूसरे सप्ताह में संगठन का एक प्रतिनिधिमंडल माननीय मुख्यमंत्री , एवं प्रमुख वन सचिव व पीसीएफ से मिलकरउत्तराखंड से मिलकर उपरोक्त मुद्दों पर ज्ञापन पेश करेगा
बैठक में तरूण जोशी, सरस्वती रौतेला, दीपा, हेमा जोशी,दान सिंह कठायत, बसंत पांडे, प्रेम प्रकाश,कमल सुनाल ,गोपाल लोधियाल, भीम सिह नेगी, बंशीधर पांडे शामिल रहे

1-वन पंचायतों को सामूहिक वन प्रबंधन व लोगों की स्वायत्तता को मजबूत बनाने के लिए वनाधिकार कानून के दायरे में लाना।
2-वन पंचायतों के प्रबंधन के लिए वन पंचायतों के सरपंचों और पंचों को ग्राम पंचायत की तरह मानदेय दिया जाए।
3*वन पंचायतों के सीमांकन को दुरुस्त किया जाए
वन अधिकार कानून के अंतर्गत कम क्षेत्रफल की वन पंचायतों के क्षेत्रफल को बढ़ाया जाए
4-वन पंचायतों में बाहरी लोगों के अतिक्रमण को हटाया जाए।
5-वन पंचायतों में वन विभाग के हस्तक्षेप को हटाकर पूर्ण अधिकार वन पंचायतों को दिया जाए।वन पंचायत नियमावली को एक कानून के रूप में लाया जाए।
6-वन पंचायत नियमावली 20-21 को बदलकर वन पंचायत नियमावली 1930 31 लागू किया जाए
7-हक हकूक के अधिकार को वन पंचायत के माध्यम से दिया जाए
8-फायर वॉचर के चयन की जिम्मेदारी वन पंचायत को दी जाए और उसका पैसा वन पंचायत के खाते में डाला जाए जिससे उनका भुगतान किया जा सके।
9- फायर का पैसा सदाबहार जंगलों में भी दिया जाए चिड वनी की तरह जो सदाबहार जंगल उत्तराखंड की धरोहर हैं और यहां की एक अनूठी पहचान है इनको भी बचाए रखना बहुत जरूरी है इनमें जब आग लगती है तो इस आग को कंट्रोल कर पाना बहुत मुश्किल होता है
10-बाग तेंदुए के द्वारा मारे जाने की स्थिति में मृतक के परिवार को 25 लाख का मुआवजा और उसके परिवार के एक व्यक्ति को सरकारी नौकरी दी जाए और घायल किए जाने व्यक्ति को कम से कम 10 लाख का मुआवजा और उसके इलाज का खर्च विभाग को उठाना चाहिए।

11-फायर सीजन में वन पंचायत को फायर रोकने के इंस्ट्रूमेंट उपलब्ध कराए जाने चाहिए और मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध कराई जाए।

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