उत्‍तराखंड में बारिश बंद होने से सीमांत के लोग गांवों में फंसे

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उत्‍तराखंड में बारिश बंद होने से सीमांत के लोग गांवों में फंसे

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में मानसून की बारिश से मुश्किलें बढ़ गई हैं। खासकर पहाड़ों में दुश्वारियां बढ़ती जा रही हैं। आठ दिन से जोशीमठ-मलारी राष्ट्रीय राजमार्ग मरखुड़ा तमक में बंद होने के कारण 400 लोग आसपास के गांवों में फंसे हैं आपदा के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील पिथौरागढ़ नेपाल और चीन सीमा से सटा है। सामरिक दृष्टि से यहां सड़कें ही संपर्क का बड़ा माध्यम हैं। मानसून काल में सड़कों पर सबसे बड़ा संकट आया है। तवाघाट-सोबला-तिदांग मार्ग 65 दिनों से बंद है।थल क्षेत्र की बौगाड़-फल्याटी सड़क दो माह से बंद हैं। दोनों सड़कों पर दो माह से वाहन फंसे हैं। टैक्सी चालकों की रोजी रोटी ठप पड़ी है, बैंक से ऋण लेकर खरीदी गई टैक्सियों की किश्त तक जमा नहीं हो पा रही है। दोनों मार्गों को खोलने के लिए अभी तक कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। 60 से अधिक गांवों के ग्रामीणों को पैदल आवाजाही करनी पड़ रही है।थल-मुनस्यारी मार्ग आए दिन मलबा आने से बंद हो रहा है। मुनस्यारी से चीन सीमा मिलम तक मार्ग बंद है। ऐसे में मुनस्यारी के उच्च हिमालयी गांवों के लिए खाद्यान्न तक की आपूर्ति नहीं हो पा रही है। तवाघाट-गर्बाधार-लिपुलेख मार्ग भी भारी बारिश होते हुए अक्सर बंद हो रहा है।जिले में दो माह से बंद सड़कों का संचालन केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और सीमा सड़क संगठन के अधीन है। स्थिति यह है कि विपरीत मौसम और निचले इलाकों में भी क्षतिग्रस्त सड़कों के चलते दो माह से बंद ऊंचाई वाले मार्गों को खोलने में तीनों विभाग फेल साबित हो रहे हैं। चीन सीमा को जोडऩे वाला तवाघाट-सोबला-तिदांग मार्ग तवाघाट के निकट नारायणपुर, कंच्योती में पुल बहने से बंद है। इसे बंद हुए पैंसठ दिन हो चुके हैं। बीआरओ न तो पुल का निर्माण कर सकी है और न ही नारायणपुर के पास सड़क दुरुस्त हो सकी है।मानसून के मौसम में उत्तराखंड के पहाड़ों के हालात मुश्किल और खतरनाक हो जाते हैं. राज्य के पहाड़ी इलाकों में लगातार भूस्खलन और मलबा जमा होने के चलते रास्तों के बंद होने की खबरों के बीच बड़ी खबर यह है कि चमोली ज़िले में चीन बॉर्डर के साथ जुड़ने वाला महत्वपूर्ण मार्ग पिछले 10 दिनों से बंद पड़ा है. तमकानाला और जुम्मा में लगातार हो रहे भूस्खलन के चलते जोशीमठ और मलारी के बीच हाईवे पर यातायात बाधित है. रणनीतिक महत्व के इस मार्ग के ठप होने के बाद से ही बॉर्डर रोड संगठन भारी मशीनों से रास्ता खोलने की कवायद कर रहा है लेकिन काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं.चट्टानों के लगातार दरकने और बारिश के हालात के चलते लगातार इस हाईवे पर मलबा और चट्टानों के टुकड़े गिर रहे हैं इसलिए बीआरओ को राहत कार्य के दौरान खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ज़िला आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदकिशोर जोशी के हवाले से एक रिपोर्ट में बताया गया कि नीति वैली के स्थानीय लोगों के आवागमन के लिए अस्थायी तौर पर एक सड़क बना दी गई है और एसडीआरएफ व एनडीआएफ के कर्मचारी यहां मदद के लिए मौजूद हैं. यह रास्ता सेना के लिहाज़ से काफी अहम है और इसके ठप होने के कारण बॉर्डर पर तैनात सेना को ज़रूरी सप्लाई के लिए चिनूक हेलीकॉप्टरों की मदद ली जा रही है. एक अधिकारी के मुताबिक नजदीकी जोशीमठ बेस से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया जा रहा है. वहीं, मौसम विभाग की मानें तो चमोली राज्य का वह ज़िला है, जहां पिथौरागढ़ के बाद सबसे ज़्यादा बारिश पिछले 24 घंटों में हुई है. यही नहीं, राज्य के सात पहाड़ी ज़िलों में 24 अगस्त को भारी बारिश का यलो अलर्ट भी जारी किया गया है.गौरतलब है कि मलारी हाईवे के अवरुद्ध होने के कारण नीति वैली के कम से कम एक दर्जन गांव प्रभावित हो गए हैं यानी 350 से ज़्यादा की आबादी संपर्क से कट चुकी है. हालांकि जोशी के मुताबिक कहा गया है कि इन गांवों में सप्लाई की कोई कमी नहीं है. यह रास्ता खुलने की उम्मीद है क्योंकि अब मलबा और पत्थरों का गिरना बंद होता दिख रहा है. जोशीमठ-मलारी राष्ट्रीय राजमार्ग मरखुड़ा तमक में बंद होने के कारण 400 लोग आसपास के गांवों में फंसे हैं। इनमें 22 बाइकर्स हैं। इसके अलावा 50 से 60 पर्यटक हैं, जिन्होंने गांवों में शरण ली हुई है। बाकी वह लोग हैं जो 15 अगस्त पर गांव आए थे, मगर रास्ता बंद होने के कारण लौट नहीं पा रहे हैं। धौलीगंगा के किनारे बसे गांव भी खाली कराए जा रहे हैं। मौसम विभाग ने देहरादून-नैनीताल समेत आसपास के इलाकों में तेज बौछार पड़ने की संभावना जताई है। बागेश्वर में लगातार बारिश के कारण कारण अभी भी सात सड़कें बंद हैं। पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी के मालूपाती गांव के निकट पहाड़ी दरक गई। चीन सीमा को जोड़ने वाला मार्ग भी भूस्खलन के कारण बंद है। चंपावत जिले में पूर्णागिरि क्षेत्र के काली मंदिर के पास मलबा आने से श्रद्धालु फंस गए। छह घंटे बाद मार्ग खोलकर उन्हें निकाला गया। सीमांत गांवों में राशन का संकट गहरा गया है। दूरसंचार सेवा भी ठप है, बिजली भी गुल है। ऐसे हालात में प्रशासन की ओर से तीन दिनों से नीति घाटी में हेली सेवा शुरू कर फंसे ग्रामीणों को निकालने की बात कही जा रही है, लेकिन तीसरे दिन भी प्रशासन का हेलीकाप्टर नीति घाटी रवाना नहीं हो पाया है। ।चमोली में भारत-तिब्बत सीमा से लगी नीति घाटी के पास मरखदुड़ा में चट्टान टूटने से जोशीमठ-नीति सीमा सड़क बाधित हो गई है. इसके अलावा पहाड़ी से गिरे बड़े-बड़े बोल्डरों के कारण बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे घाटी में बिजली आपूर्ति बाधित हो गई है. सड़क बंद होने से करीब आधा दर्जन से ज्यादा गांवों के लोगों से संपर्क कट चुका है.बोल्डरों के कारण बिजली के खंभे क्षतिग्रस्त होने से कई गांव अंधेरे में डूब गए हैं. मार्ग बंद होने से एक दर्जन से ज्यादा गांव के लोगों का देश-दुनिया से संपर्क कट चुका है. हालांकि, सीमा सड़क संगठन सड़क खोलने की कार्रवाई में जुट गया है. मुनस्यारी में कोट्यूड़ा सड़क भारी वाहनों के लिए बंद है। जनपद के कई हिस्सों में बारिश हुई है। बारिश के बाद लिपूलेख सड़क पर कई जगह मलबा आ गया। चीन सीमा को जोड़ने वाली इस सड़क में लगातार मलबा आने से सीमांत के साथ सेना व सुरक्षा एंजेंसियों को भी दिक्कत हो रही है।मुनस्यारी में कोट्यूड़ा सड़क के भारी वाहनों के लिए बंद रहने से सीमांत के लोगों को दिक्कत हो रही है। थल मुनस्यारी सड़क में हरडिया के समीप भारी मलबा आने से यातायात प्रभावित रहा। यह सड़क वर्षा काल में सीमांत के लोगों की परीक्षा लेने लगी है।मैदानी जिलों में मंगलवार को बारिश का दौर जारी रहा तो ऊंची चोटियों पर बर्फबारी हुई। पिथौरागढ़ में मंगलवार को कई जगह बारिश हुई। जबकि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात हुआ है। जिससे मुनस्यारी के साथ उससे सटे क्षेत्रों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। जिले में सभी नदियां उफान पर हैं। कई गांवों के हालात इस कदर खराब हैं कि यहां रोजमर्रा की चीजें खत्म हो गईं हैं. गांव की छोटी दुकानों में जो भी बचा-खुचा सामान है उसकी कीमत कई गुना बढ़ गई है. कहने को तो सरकार ने यहां एक हेलीकॉप्टर तैनात किया है. लेकिन खराब मौसम ने हेलीकॉप्टर को सफेद हाथी बना दिया है. ऐसे में सबसे अधिक संकट बीमार लोगों पर मंडरा रहा है. इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवा के नाम पर एक पीएससी भी नहीं है. सीमा को जोड़ने वाली इस सड़क के जो हालात हैं, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि निकट भविष्य में भी इसके खुलने के आसार नहीं है. ऐसे में तय है कि सीमांत क्षेत्र में रहने वालों को जल्द राहत नहीं मिलने वाली है. । ऐसा इसलिए क्योंकि बरसात में सड़कों से सटी पहाड़ियां से भूस्खलन के साथ पत्थर गिरते हैं। हर साल ऐसी कई घटनाएं होती हैं लेकिन न तो विभाग और न ही सरकार इससे कोई सबक लेती है।बेहतर होता कि किसी अन्य प्लान पर गंभीरता से अमल किया जाए, ताकि हजारों लोगों की बेपटरी हो चुकी जिंदगी दोबारा पटरी पर आ सके.

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