प्रीति योग में मनाया जाएगा इस बार सावन मास की गजानन संकष्टी चतुर्थी व्रत। प्रातः भी कर सकते हैं पूजा,न्यूज़ को पूरा पढ़िए

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शुभ मुहूर्त– इस बार सन् 2023 में श्रावण संकष्टी चतुर्थी व्रत दिनांक 6 जुलाई 2023 दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन दो घड़ी 55 पल अर्थात प्रातः 6:30 बजे तक तृतीया तिथि है तदुपरांत चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी। धनिष्ठा नामक नक्षत्र 47 घड़ी 40 पल अर्थात मध्य रात्रि 12:24 बजे तक है। प्रीति नामक योग 46 घड़ी 33 पल अर्थात मध्य रात्रि 11:57 बजे तक है। इस दिन भद्रा प्रातः 6:30 बजे तक है।
पूजा का शुभ मुहूर्त —
प्रातः 5:26 बजे से 10:40 तक का समय शुभ रहेगा इस शुभ मुहूर्त में भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं। वहीं रात्रि में चंद्रमा की पूजा के लिए आपको थोड़ी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी क्योंकि इस दिन चंद्रोदय देरी से होगा। 6 जुलाई को रात्रि 10:12 पर चंद्रोदय का समय है। यदि आप प्रतीक्षा कर सकते हैं तो चंद्रोदय के बाद आप चंद्रमा को अर्घ्य देकर पूजा करें और इसके बाद संकष्टी चतुर्थी व्रत का पारण कर ले।

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार श्रावण मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत सूर्योदय से प्रारंभ हो जाता है और चंद्रमा उदय होने पर व्रत समाप्त किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश जी होते हैं। ज्ञात हो कि संकष्टि चतुर्थी के दिन व्रत धारी श्री गणेश पूजन के बाद चंद्रमा को जल अर्पित करके उनका दर्शन करते हैं और चंद्रमा के दर्शन के बाद ही गणेश चतुर्थी व्रत को पूर्ण माना जाता है।
चतुर्थी पूजन विधि– गणेश चतुर्थी पर प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठें और स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। तदुपरांत घर के मंदिर में गणेश प्रतिमा को गंगाजल और शहद से स्वच्छ करें। सिंदूर, दुर्वा, फूल ,चावल ,फल ,जनेऊ, प्रसाद आदि चीजें एकत्रित करें। धूप दीप जलाए। ‘ओम गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप 108 बार करें। गणेश जी के सामने व्रत करने का संकल्प लें और पूरे दिन अन्न ग्रहण न करें। व्रत में फलाहार पानी दूध फलों का रस आदि चीजों का सेवन किया जा सकता है। गणपति की स्थापना के बाद कुछ इस प्रकार से पूजन करें– सर्वप्रथम घी का दीपक जलाएं। इसके बाद पूजा का संकल्प लें। फिर गणेश जी का ध्यान करने के बाद उनका आह्वान करें। इसके बाद गणेश जी को स्नान कराएं। सबसे पहले जल से तदुपरांत पंचामृत अर्थात दूध दही घी शहद और चीनी के मिश्रण से पुनः शुद्ध जल से स्नान कराएं गणेश जी के मंत्र व गणेश चालीसा स्त्रोत आदि का वाचन करें। तदुपरांत गणेश जी को वस्त्र चढ़ाएं। अगर वस्त्र नहीं है तो आप उन्हें थोड़ा रक्षा का धागा अर्पित कर सकते हैं। इसके बाद गणपति की प्रतिमा पर सिंदूर चंदन फूल और फूलों की माला अर्पित करें। तदुपरांत गणेश जी को मनमोहक सुगंध वाली धूप दिखाएं। एक दूसरा दीपक जलाकर प्रतिमा को दिखाकर हाथ धो लें हाथ पोछने के लिए नए कपड़े का इस्तेमाल करें। तदुपरांत नैवेद्य चढ़ाएं नैवेद्य में मोदक मिठाई गुड़ और फल शामिल हैं इसके बाद गणपति को नारियल और दक्षिणा प्रदान करें। रात को चंद्रमा की पूजा और दर्शन के बाद व्रत खोलना चाहिए।
भविष्य पुराण के अनुसार संकष्टी चतुर्थी की पूजा और व्रत करने से हर प्रकार के कष्ट दूर हो जाते हैं। गणेश पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से सौभाग्य समृद्धि और संतान सुख मिलता है। शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की एक बार और पूजा करें और संकष्टि व्रत कथा का पाठ करें।
श्रावण मास के संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा— ऋषिगण पूछते हैं कि है स्कंद कुमार! दरिद्रता हो , शत्रुओं से संतृप्त राज्य से निष्कासित राज ,सदैव दुखी रहने वाले, धनहीन ,घर से निष्कासित लोगों, रोगियों एवं अपने कल्याण की कामना करने वाले लोगों को क्या उपाय करना चाहिए जिससे उनका कल्याण हो और उनके उपरोक्त कष्टों का निवारण हो। यदि आप कोई उपाय जानते हो तो उसे बतलाइए। तब स्वामी कार्तिकेय जी ने कहा हे ऋषियों! आपने जो प्रश्न किया है उसके निवारण हेतु मैं आप लोगों को एक शुभ दायक व्रत बताता हूं उसे सुनिए। इस व्रत के करने से पृथ्वी के समस्त प्राणी सभी संकटों से मुक्त हो जाते हैं। यह व्रत महा पुण्य कारी एवं मानव को सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाला है। विशेषत: यदि इस व्रत को महिलाएं करें तो उन्हें संतान एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। इस व्रत को धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। पूर्व काल में राजच्युत होकर अपने भाइयों के साथ जब धर्मराज वन में चले गए थे तो उस वनवास काल में भगवान श्री कृष्ण ने उनसे कहा था। युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से अपने कष्टों के शमन के लिए जो प्रश्न किया था उस कथा को आप श्रवण कीजिए। युधिष्ठिर पूछते हैं कि हे पुरुषोत्तम! ऐसा कौन सा उपाय है जिससे हम वर्तमान संकटों से मुक्त हो सके। हे गदाधर! आप सर्वज्ञ हैं। हम लोगों को आगे अब किसी प्रकार का कष्ट न भुगतना पड़े ऐसा उपाय बतलाइए। स्कंद कुमार जी कहते हैं कि जब धैर्यवान युधिष्ठिर विनम्र भाव से हाथ जोड़कर बारंबार अपने कष्टों के निवारण का उपाय पूछने लगे तो भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे राजन! संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला एक बहुत बड़ा गुप्त व्रत है। हे युधिष्ठिर !इस व्रत के संबंध में मैंने आज तक किसी को नहीं बतलाया है। हे राजन! प्राचीन काल में सतयुग की बात है कि पर्वतराज हिमाचल की सुंदर कन्या पार्वती ने शंकर जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए गहन वन में जाकर कठोर तपस्या की। परंतु भगवान शिव प्रसन्न होकर प्रकट नहीं हुए तब पार्वती जी ने अनादिकाल से विद्यमान गणेश जी का स्मरण किया। गणेश जी को उसी क्षण प्रकट देखकर पार्वती जी ने पूछा कि मैंने कठोर दुर्लभ एवं लोमहर्षक तपस्या की किंतु अपने प्रिय भगवान शिव को प्राप्त न कर सकी। वह कष्ट विनाशक दिव्य व्रत जिसे नारद जी ने कहा है और जो आपका ही व्रत है उस प्राचीन व्रत के तत्व को आप मुझ से कहिए। पार्वती जी की बात सुनकर तत्कालीन सिद्धीदाता गणेश जी उस कष्ट नाशक शुभ दायक व्रत का प्रेम से वर्णन करने लगे। गणेश जी ने कहा कि हे माता! पुण्य कार्य एवं समस्त कष्ट नाशक व्रत को कीजिए। इसके करने से आपकी सभी आकांक्षाएं पूर्ण होगी और जो व्यक्ति इस व्रत को करेंगे उन्हें भी सफलता मिलेगी। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी की रात्रि को चंद्र उदय होने पर पूजन करना चाहिए। उस दिन मन में संकल्प करें कि जब तक चंद्रोदय नहीं होगा मैं निराहार रहूंगी। पहले गणेश पूजन कर ही भोजन करूंगी। मन में ऐसा निश्चय ही करना चाहिए। इसके बाद सफेद तिल के जल से स्नान करें। मेरा पूजन करें। यदि सामर्थ्य हो तो प्रतिमा स्वर्ण की मूर्ति का पूजन करें अभाव में चांदी या अष्टधातु अथवा मिट्टी की मूर्ति की ही पूजा करें। अपनी शक्ति के अनुसार सोने चांदी ताबे अथवा मिट्टी के कलश में जल भरकर उस पर गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति कलश पर वस्त्र बिछाकर अष्टदल कमल की आकृति बनाएं और उसी मूर्ति की स्थापना करें। तत्पश्चात षोडशोपचार विधि से भक्ति पूर्वक पूजन करें। मूर्ति का ध्यान निम्न प्रकार से करें हे लंबोदर !चार भुजा वाले लाल रंग वाले हे नीलवर्ण !वाले हे शोभा के भंडार! हे प्रसन्न मुख वाले! गणेश जी मैं आपका ध्यान करती हूं। हे गजानन! मैं आपका आवाहन करती हूं। हे विघ्न राज! आपको प्रणाम करती हूं। हे लंबोदर !यह आपके लिए पाध्य है। हे शंकर सुवन! यह आपके लिए अर्घ्य है। हे वक्रतुंड !यह आपके लिए आच मनी जल है। हे शूर्पकर्ण !यह आपके लिए वस्त्र है। हे सुशोभित! यह आपके लिए यज्ञोपवीत है। हे गणेश्वर !यह आपके लिए रोली चंदन है। हे विघ्न विनाशक! यह आपके लिए फूल है। हे विकट !यह आपके लिए धूपबत्ती है। हे वामन! यह आपके लिए दीपक है। हे देव !यह आप के निमित्त फल हैं। हे विघ्नहर्ता! यह आपके निमित्त मेरा प्रणाम है। प्रणाम करने के बाद क्षमा प्रार्थना करें। इस प्रकार षोडशोपचार रीति से पूजन करके नाना प्रकार के प्रसादों को बनाकर भगवान को भोग लगावे। हे देवी !शुद्ध देसी घी में 15 लड्डू बनाए। सर्वप्रथम भगवान को लड्डू अर्पित करके उसमें से पांच ब्राह्मणों को दे दें। अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर चंद्रोदय होने पर भक्ति भाव से अर्ध्य दे। तत्पश्चात पांच लड्डू का स्वयं भोजन करें। फिर हे देवी! तुम सब तिथियों में सर्वोत्तम हो गणेश जी की परम प्रियतमा हो हे चतुर्थी हमारे द्वारा दिया हुआ अर्घ्य ग्रहण करें क्षीर सागर से उत्पन्न हे लक्ष्मी के भाई हे निशा कर! रोहिणी सहित है शशि !मेरे दिए हुए अर्घ्य को ग्रहण कीजिए। गणेश जी को इस प्रकार प्रणाम करें- हे लंबोदर! आप संपूर्ण इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं आपको प्रणाम है। हे समस्त विघ्न नाशक! आप मेरी अभिलाषा ओं को पूर्ण करें। तत्पश्चात ब्राह्मण की प्रार्थना करें हे दिव्यराज! आपको नमस्कार है आप साक्षात देव स्वरूप हैं। गणेश जी प्रशंसा के लिए हम आपको लड्डू समर्पित कर रहे हैं। आप हम दोनों का उद्धार करने के लिए दक्षिणा सहित इन 5 लड्डू को स्वीकार करें। हम आपको नमस्कार करते हैं। इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराकर गणेश जी से प्रार्थना करें। यदि इन सब कार्यों के करने को शक्ति न हो तो अपने भाई बंधुओं के साथ दही एवं पूजन में निवेदित पदार्थ का भोजन करें प्रार्थना करके प्रतिमा का विसर्जन करें और अपने गुरु को अन्न वस्त्र आदि एवं दक्षिणा के साथ मूर्ति देवें। इस प्रकार से विसर्जन करें हे देव में श्रेष्ठ! गणेश जी आप अपने स्थान को प्रस्थान कीजिए एवं इस व्रत पूजा के फल को दीजिए हे सुमुखी !इस प्रकार जीवन भर गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए। यदि जन्म भर न कर सके तो 21 वर्ष तक करें। यदि इतना करना भी संभव न हो तो 1 वर्ष तक 12 महीने के व्रत को करें यदि इतना भी ना कर सके तो वर्ष के 1 मास को अवश्य ही व्रत करें और सावन चतुर्थी को उद्यापन करें।

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