षटतिला एकादशी व्रत पर क्या है षटतिला का अर्थ,आइये जानते हैं

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षटतिला का अर्थ है षट+ तिला, षट अर्थात छ: , तिला अर्थात तिल का प्रयोग । जो निम्न प्रकार से हैं। नंबर 1 तिल स्नान 2- तिल उबटन, 3- तिल का हवन, 4- तिल का तर्पण, 5- तिल का भोजन, 6- तिल का दान । तिलों के छह प्रकार के प्रयोग के कारण इस एकादशी को षटतिला एकादशी कहते हैं।
शुभ मुहूर्त।, ,,,,,,,, इस बार सन् 2022 में दिनांक 28 जनवरी 2022 दिन शुक्रवार को षटतिला एकादशी व्रत है। इस दिन एकादशी तिथि 41 घड़ी 7 पल तक है। तदुपरांत द्वादशी तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन अनुराधा नामक नक्षत्र मात्र 7 पल तक है। तदुपरांत जेष्ठा नामक नक्षत्र होगा वह भी अगले दिन प्रातः 5:08 तक रहेगा तदुपरांत मूल नक्षत्र उदय होगा। पाठकों की जानकारी हेतु बताना चाहूंगा कि इस षटतिला एकादशी को मूल नक्षत्र होना बेहद अच्छा है और महत्वपूर्ण माना जाता है। अगर योग की बात करें तो इस दिन ध्रुव नामक योग 36 घड़ी 17 पाल तक है। तदुपरांत व्याघ्र नामक योग होगा। तथा बव नामकरण 14 घड़ी 27 पल तक है। तदुपरांत कॉलव नामक करण होगा। बात यदि चंद्रमा की स्थिति की करें तो इस दिन चंद्रदेव 55 घड़ी 3 पल तक वृश्चिक राशि में रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव धनु राशि में प्रवेश करेंगे।
षटतिला एकादशी व्रत कथा।, ,,,,,,, नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से एकादशी का महात्मय सुनकर श्रद्धा पूर्वक उन्हें प्रणाम करते हुए धनुर्धर अर्जुन ने कहा- हे केशव! आपके श्री मुख से एकादशी की कथाएं सुनकर मुझे असीम आनंद की प्राप्ति हुई है। हे मधुसूदन! आप कृपा करके अन्य एकादशी का महत्व सुनाने की भी अनुकंपा करें। तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे अर्जुन! अब मैं माघ मास के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी व्रत की कथा सुनाता हूं। एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा की है ऋषि श्रेष्ठ मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महा पाप करते हैं और दूसरे के धन की चोरी तथा दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या करते हैं। ऐसे महान पाप मनुष्य क्रोध ईर्ष्या आवेश और मूर्खता बस करते हैं और बाद में शोक करते हैं की हाय यह हमने क्या किया? हे महामुनी ऐसे मनुष्यों को नरक से बचाने का क्या उपाय है? कोई ऐसा उपाय बताने की कृपा करें जिससे ऐसे मनुष्य को नरक से बचाया जा सके। अर्थात उन्हें नर्क की प्राप्ति ना हो। ऐसा कौन सा दान पुण्य है जिसके प्रभाव से नरक की यातना से बचा जा सकता है। इन सभी प्रश्नों का हल आप कृपा पूर्वक बताइए। दालभ्य ऋषि की बात सुनकर पुलस्त्य ऋषि ने कहा हे मुनि श्रेष्ठ आपने मुझसे अत्यंत गूढ़ प्रश्न पूछा है। संसार में मनुष्य का बहुत लाभ होगा। जिस रहस्य को इंद्र आदि देवता भी नहीं जानते हैं वह रहस्य में आपको अवश्य ही बताऊंगा। माघ मास आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिए। और इंद्रियों को वश में करके तथा काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या तथा अहंकार आदि से सर्वथा बचना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में गोबर कपास तिल मिलाकर उपले बनाने चाहिए इन उपले से 108 बार हवन करना चाहिए। जिस दिन मूल नक्षत्र और एकादशी तिथि हो तब अच्छे पुण्य देने वाले नियमों को ग्रहण करना चाहिए। स्नान आदि नित्य कर्म से देवों के देव भगवान श्रीहरि का पूजन व कीर्तन करना चाहिए। एकादशी के दिन उपवास करें तथा रात को जागरण और हवन करें। उस के दूसरे दिन धूप दीप नैवेद्य आदि से भगवान श्री हरि की पूजा अर्चना करें उस दिन श्री विष्णु भगवान को पेठा नारियल सीताफल या सुपारी सहित अर्घ्य अवश्य देना चाहिए। तदुपरांत उनकी स्तुति करनी चाहिए। हे जगदीश्वर आप निराश्रितों को शरण देने वाले हैं। आप संसार में डूबे हुए का उद्धार करने वाले हैं। हे कमलनयन हे मधुसूदन हे जगन्नाथ हे पुंडरीकाक्ष आप लक्ष्मी सहित मेरे इस तुच्छ अर्घ्य को स्वीकार कीजिए। इसके पश्चात ब्राह्मणों को जल से भरा घड़ा और तिल दान करने चाहिए। यदि संभव हो तो ब्राह्मण को गाय और तिल दान करना चाहिए। इस प्रकार मनुष्य जितने गाय और तिलों का दान करता है वह उतने ही हजार वर्ष स्वर्ग में वास करता है। तिल स्नान तिल की उबटन, तिलोदक, तिल का हवन तिल का भोजन तिल का दान। इस प्रकार 6 रूपों में तिलों का प्रयोग षटतिला कहलाती है। इससे अनेक प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। इतना कहकर ऋषि ने कहा अब मैं एकादशी की कथा सुनाता हूं। एक बार नारद मुनि ने भगवान श्रीहरि से षटतिला एकादशी का महात्म्य पूछा। वह बोले हे प्रभु आप मेरा प्रणाम स्वीकार करें। षटतिला एकादशी के उपवास का क्या पुण्य है? उसकी क्या कथा है? कृपा कर मुझे कहिए। नारद की प्रार्थना भगवान श्री हरि ने कहां हे नारद मैं तुम्हें प्रत्यक्ष देखा सत्य वृतांत सुनाता हूं। ध्यानपूर्वक श्रवण करो। बहुत पहले मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदा व्रत उपवास किया करती थी। एक बार वह 1 माह तक उपवास करती रही। इसी से उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया। वह अत्यंत बुद्धिमान थी। फिर उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अनाज का दान नहीं किया।। मैंने चिंतन किया कि उस ब्राह्मणी ने उपवास आदि से अपना शरीर तो पवित्र कर लिया है तथा उसको बैकुंठ लोक प्राप्त हो जाएगा किंतु इसने कभी अन्न दान नहीं किया है। अन्य के बिना जीव की तृप्ति होना कठिन है। ऐसा चिंतन कर में मृत्यु लोक में गया और ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी। इस पर उस ब्राह्मणी ने कहा हे योगीराज आप यहां किस लिए पधारे हैं? मैंने कहा मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया। मैं उस पिंड को लेकर स्वर्ग लौट आया। कुछ समय व्यतीत होने पर वह ब्राह्मणी शरीर त्याग कर स्वर्ग आई। मिट्टी के पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह पर एक आम वृक्ष सहित घर मिला किंतु उसने उस घर को अन्य वस्तुओं से खाली पाया। वह घबराई हुई मेरे पास आई और बोली हे प्रभु मैंने अनेक व्रत आदि से आपका पूजन किया है। फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रिक्त है इसका क्या कारण है? मैंने कहा तुम अपने घर जाओ और जब देव स्त्रियां तुम्हें देखने आए हैं तब तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत का महात्मा और उसका विधान पूछना। जब तक वह न बताएं तब तक द्वार नहीं खोलना। प्रभु के ऐसे वचन सुन वह अपने घर गई और जब देवी स्त्रियां आई और द्वार खोलने के लिए कहने लगी तब उस ब्राह्मणी ने कहा यदि आप मुझे देखने आई हैं तो पहले मुझे षटतिला एकादशी का महत्व बताएं। तब उसमें से एक देव स्त्री ने कहां यदि तुम्हारी यही इच्छा है तो ध्यानपूर्वक श्रवण करो। मैं तुमसे एकादशी व्रत और उसका महत्त्व विधान सहित कहती हूं। जब उस दिन स्त्री ने षटतिला एकादशी का महत्व में सुना दीया तब उस ब्राह्मणी ने द्वार खोल दिया। देव स्त्रियों ने ब्राह्मणी को सब स्त्रियों से अलग पाया। उस ब्राह्मणी ने भी देव स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला एकादशी का उपवास किया और इसके प्रभाव से उसका घर धन-धान्य से भर गया। इसलिए नंद नंदन भगवान श्री कृष्ण कहते हैं हे पार्थ मनुष्य को अज्ञान को त्याग कर षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी व्रत के करने से जन्म जन्म की आरोग्यता प्राप्त हो जाती है। इस उपवास से मनुष्य के सभी पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

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