पहाड के सच्चे क्रांतिवीर थे पूर्व विधायक विपिन चंद्र त्रिपाठी
पहाड के सच्चे क्रांतिवीर थे पूर्व विधायक विपिन चंद्र त्रिपाठी
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड राज्य के शिल्पी, पूर्व विधायक एवं यूकेडी के संस्थापक सदस्य रहे स्वर्गीय बिपिनत्रिपाठी को17वीं पुण्य तिथि पर याद किया गया। प्रखर आंदोलनकारी स्वर्गीय त्रिपाठी के सपनों के राज्य के लिए एकजुटता के साथ सभी को आगे आने की वकालत की गई। वक्ताओं ने कहा कि स्व़ त्रिपाठी ने राज्य की लड़ाई से लेकर चिपको आंदोलन, नशा नहीं रोजगार दो आदि आंदोलनों में वर्षो तक जेल की सलाखों में रहकर उत्तराखंड के जल, जंगल एवं जमीन के लिए संघर्ष किया। जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। वर्तमान परिदृष्य में उनके विचारों को प्रासंगिक बताते हुए इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने का आवह्नान किया गया। कहा कि राज्य बनने के बीस वर्षो के बाद भी पहाड़ी राज्य में समस्याएं जस की तस हैं। बेरोजगारी व पलायन का दंश आज भी पूरे प्रदेश में जारी है। योजनाओं व नीतियों के अभाव में कोरोना काल में सैकड़ो बेरोजगार अवसाद में खुदकुशी कर रहे हैं इसलिए स्व़ त्रिपाठी के विचारों के साथ चलना होगा। तभी राज्य बनने की अवधारणा पूरी हो पायेगी आज जब राजनीति भ्रष्टाचार के दलदल में गोते लगा रही है तो ऐसे में सहसा याद आते हैं, द्वाराहाट के पूर्व विधायक स्वर्गीय विपिन चंद्र त्रिपाठी। आज के मौजूदा राजनीतिक दौर में विपिन चंद्र त्रिपाठी को याद करना किसी अपवाद से कम नहीं है । जीवन भर समाज के दबे कुचले और वंचित वर्ग के लिए लडने में विपिन चंद्र त्रिपाठी ने अपने जीवन को समर्पित कर दिया, चाहे वन बचाओ आंदोलन हो या चिपको आंदोलन, चांचरीधार आंदोलन हो या महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद करना हो, अथवा उत्तराखंड राज्य आंदोलन की लडाई सभी में हमेशा आगे रहे ।बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी विपिन चन्द्र त्रिपाठी (विपिन दा)। जल, जंगल, जमीन के संघर्ष को लेकर उन्होंने भूख हड़ताल से लेकर आमरण अनशन तक किया और जेल भी गए। आज भले ही उनकी पुण्य तिथि पर हम उन्हे श्रद्धांजलि ही अर्पित कर सकते हैं, परंतु श्री विपिन चंद्र त्रिपाठी आज भी हमारी स्मृतियों में विद्यमान हैं। श्री त्रिपाठी का जन्म 23 फरवरी 1945 में द्वाराहाट के ग्राम दैरी में हुआ था। उनके पिता मथुरादत्त त्रिपाठी डाक विभाग में कार्यरत थे। उन्होनें अपने जीवन की प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही ग्रहण की और इसके बाद वह माध्यमिक शिक्षा के लिए नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर चले गए। उच्च शिक्षा के दौरान ही उनके ऊपर प्रसिद्ध समाजवादी रहे डा. राम मनोहर लोहिया व आचार्य नरेन्द्र देव के विचारों का प्रभाव पड़ा। इनके विचारों से प्रभावित होकर वह वर्ष 1967 से ही आंदोलन में कूद गये। वर्ष 1972 में प्रजा सोशलिस्ट द्वारा चलाये गये भूमि आंदोलन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय महंगाई के विरोध में आवाज बुलंद की। विपिन चंद्र त्रिपाठी ने वन अधिनियम, 1989 में भूमि संरक्षण आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई । आपातकाल के समय 06 जुलाई 1975 को जेल भी गये। 22 महीने जेल में सजा काटने के बाद बाहर निकले तो जनता पार्टी की सरकार सत्ता हासिल करने जा रही थी तो उन्होंने युवा शाखा से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं वह हमेशा सत्ता सुख से दूर रहे। इसके बाद उन्होंने द्वाराहाट को अपनी कर्मभूमि बना लिया। उनकी बढती लोकप्रियता ही थी कि वह वर्ष 1989 में द्वाराहाट के ब्लाक प्रमुख बने। इस दौरान उन्होंने द्वाराहाट के लिए अनेक विकास कार्य करवाए। विपिन चंद्र त्रिपाठी का कार्यकाल देख चुके लोग बताते हैं कि ब्लाक प्रमुख होने के बावजूद अधिकारी उनकी ईमानदार और स्वच्छ छवि से घबराते थे ।अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने छोटे से कस्बे द्वाराहाट में शासन पर दबाब बनाकर राजकीय इंजीनियरिंग कालेज, राजकीय पॉलिटेक्नीक, राजकीय महाविद्यालय खोलने के अलावा कई विकास कार्य किये। इसके लिए भूख हड़ताल व आमरण अनशन तक किया। वर्ष 1984 में नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन में 40 दिन तक जेल रहे। वर्ष 1980 से उत्तराखंड क्रांति दल से जुड़ने के बाद महासचिव से अध्यक्ष पद तक का सफर तय किया। वर्ष 1992 में बागेश्वर में उन्होंने उत्तराखंड का ब्लू प्रिंट तैयार किया। उनके द्वारा तैयार किए इस प्रिंट पर ही पार्टी ने घोषणा पत्र तैयार किया। श्री त्रिपाठी ने वर्ष 1974 में बारामंडल सीट से पहला चुनाव लड़ा लेकिन अविभाजित उत्तर प्रदेश में बडे भौगोलिक और कई समीकरणों में उलझी सीट पर उन्हें हर बार हार का सामना करना पडा । उत्तराखंड राज्य गठन के बाद द्वाराहाट सीट के अस्तित्व में आने पर राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में द्वाराहाट के विधायक बने। उन्होंने अपने विरोधियों को करारी शिकस्त दी | लेकिन सत्ता सुख से दूर रह कर समाज के लिए संघर्ष करने वाले इस महान क्रांतिवीर का 30 अगस्त 2004 को निधन हो गया। लेकिन उनके विचार और उनका जुझारू व्यक्तित्व आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है ।विपिन त्रिपाठी आम जनता में बेहद लोकप्रिय थे | द्वाराहाट की सडकों पर उन्हें पैदल चलते ही देखा जा सकता था | विधायक बनने के बाद भी वह सादगी से जीते रहे | द्वाराहाट के सुदूर बसे गांवों में भी श्री त्रिपाठी का व्यक्तित्व और आचरण इतना लोकप्रिय था कि वह सीमित संसाधनों के होते हुए भी चुनावों में अच्छे मत प्राप्त करते थे | यह उनकी लोकप्रियता ही थी कि वह द्वाराहाट के ब्लाक प्रमुख और राज्य गठन के बाद विधायक बने | इमरजेंसी के दौरान सरकार के खिलाफ अपने पाक्षिक अखबार द्रोणाचल प्रहरी में लिखा, उनके अखबार को सरकार ने प्रतिबंधित करके प्रेस सील कर दी तथा इमरजेंसी के दौरान 24 महीने जेल रहे।उक्रांद के शिल्पी कहे जाने वाले विपिन दा ने राज्य आंदोलन के दौरान कार्यक्रमो को आगे ले गये। उन कार्यक्रमों का बखूबी सफल संचालन किया। पार्टी का अनुशासन के साथ राज्य परख नीतियों को बनाने में अहम भूमिका रही है। विपिन दा गैरसैंण को स्थायी राजधानी के कट्टर समर्थक रहे अपनी विधायक काल के दौरान विधानसभा सदन में गैरसैण में राजधानी बनाने का 500 करोड़ का बजट रखा। उनके ओजस्वी भाषणों को कभी भुलाया नही जा सकता है। विपिन दा ने अपने मूल्यों से कभी समझौता नही किया। दल के मुख्य रणनीतिकार की भूमिका विपिन दा की रहती थी।उन्ही के प्रयासों से द्वाराहाट में इंजीनियरिंग कॉलेज, पालिटेक्निक और आई टी आई बनी । विपिन त्रिपाठी को अधिकतर लोग उक्रांद नेता के तौर याद करते हैं लेकिन विपिन दा एक खांटी पत्रकार भी थे। पत्रकारिता का सही मायने में धर्म निभाते वे जेल भी गए। युवा अवस्था में उन्हें राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव व जयप्रकाश नारायण ने खासा प्रभावित किया।विपिन दा ने 22 वर्ष की उम्र में आंदोलन में कूद गये थे।ताउम्र विपिन दा का संघर्ष अंतिम सांस तक रहा।