बड़ी खबर- अंकिता भंडारी हत्याकांड के बाद एक्शन में उत्तराखंड सरकार
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
अंकिता 12वीं कक्षा में 88 फीसदी लेकर कॉमर्स संकाय में टॉप किया था। पहाड़ से 19 साल की एक लड़की नौकरी की तलाश में उतरती है. वो ईमानदारी और मेहनत से एक रिज़ॉर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करना चाहती है लेकिन जिस रिज़ॉर्ट में वो काम करती है, वो ईमानदारी और मेहनत से नहीं बना होता. उसका मालिक सत्ताधारी पार्टी के नेता का बेटा होता है लिहाज़ा ख़ुद को पूरी व्यवस्था का बाप समझता है. क़ानून को अपनी जेब में रख कर घूमता है.वो रिज़ॉर्ट के नाम पर अय्याशी के ऐसे अड्डे चलाता है जहां लड़कियों को जबरन देह व्यापार के नर्क में धकेला जाता है. और कोई लड़की जब इससे इंकार करती है तो उसकी हत्या कर नहर में फेंक दिया जाता है. फिर यही रिज़ॉर्ट मालिक ख़ुद लड़की के गुमशुदा होने की शिकायत भी दर्ज करता है क्योंकि उसे भरोसा है कि क़ानून तो उसी की जेब में क़ैद पड़ा है. अगर ऐसा नहीं होता तो उस पर तभी सख़्त कार्रवाई हो चुकी होती जब लॉकडाउन के दौरान वो उत्तर प्रदेश के एक बाहुबली के बेटे को पहाड़ों में घुमा रहा था.अंकिता के ‘ग़ायब’ हो जाने के चार दिन बाद तक भी इस मामले में कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? ये सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि नजाने कितनी अंकिताओं की शिकायतें पहाड़ में अनसुनी ही रह जाती हैं. उत्तराखंड में 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा ऐसा है जहां न तो कोई पुलिस थाना है, न कोई पुलिस चौकी और न ही ये इलाका उत्तराखंड पुलिस के क्षेत्राधिकार में आता है. इन इलाक़ों में यहां आज भी अंग्रेजों की बनाई वह व्यवस्था जारी है, जहां पुलिस का काम रेवेन्यू डिपार्टमेंट के कर्मचारी और अधिकारी ही करते हैं जिन्हें ‘राजस्व पुलिस’ कहा जाता है.इन इलाकों की लड़कियाँ छेड़छाड़ के मामले कहाँ दर्ज करवाएँ? उस पटवारी के पास जो आए दिन इलाके के दबंगों के दरबार में सलामी देता नजर आता है और जिसकी इन दबंगों के आगे कुर्सी में बैठने तक की हिम्मत नहीं बनती? इन इलाकों की लड़कियाँ के लिए कोई ‘Dial 100’ नहीं है, कोई महिला हेल्पलाइन नहीं और कोई ऐसी व्यवस्था नहीं जो विश्वास दिलाए कि उनकी सुरक्षा के लिए कुछ लोग जवाबदेह हैं.प्रदेश के 60 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्से की क़ानून व्यवस्था का ज़िम्मा उस पटवारी, लेखपाल या कानूनगो पर है जिसके पास न तो कोई संसाधन हैं और न ही कोई ट्रेनिंग. एक तरफ पहाड़ों में हाकम सिंह जैसे घाग हैं जो अपराध के तमाम आधुनिक तरीक़ों में पारंगत हैं और दूसरी तरफ वो पटवारी जिनके पास अपराध की रोकथाम के लिए एक लाठी तक नहीं है.2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस ‘राजस्व पुलिस’ की व्यवस्था को समाप्त करने के आदेश दिए थे. जस्टिस राजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिए थे कि छह महीने के भीतर पूरे प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त की जाए और सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाए. लेकिन, इस आदेश के इतने साल बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हुई.अंकिता की हत्या के मामले में पुलिस के पास तर्क होगा कि ‘हमारे हाथ में ये मामला आते ही हम एक ही दिन में अपराधियों से सच उगलवाने में कामयाब रहे.’ लेकिन मूल सवाल वही है कि पुलिस के पास मामला आने में इतना समय क्यों लगा? और इससे भी अहम सवाल ये कि कितनी अंकिताओं के मामले पुलिस के पास पहुंच पाते हैं? रिजार्ट या गेस्ट हाउस के साथ कोई विवाद तो नहीं है, महिला स्टाफ से उनके रुटीन की पूरी जानकारी ली जाएगी, रिजार्ट में किसी अपराधी का तो हिस्सा नहीं, रिजार्ट या गेस्ट हाउस किसी की जमीन पर अतिक्रमण कर तो नहीं बनाया गया, जंगलात या अन्य विभागों से एनओसी आदि की प्रक्रिया पूरी की गई या नहीं, इनके बाहर और अंदर सीसीटीवी कैमरे लगे हैं या नहीं। लगे हैं तो ठीक हैं या नहीं। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में यह ये निर्देश दिए थे कि यदि किसी भी होमस्टे रिजॉर्ट में किसी प्रकार के खामी पाई जाती है तो उस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। मुख्यमंत्री के निर्देशों के बाद प्रदेश के अन्य जनपदों में भी कार्यवाही जारी है। आपको बता दें मुख्यमंत्री पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि प्रदेश में माहौल बिगाड़ने वालों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, भले ही कोई कितनी रसूख़ वाला क्यों ना हो। ताज़ा मामले में ऋषिकेश लक्ष्मण झूला में अंकिता हत्याकांड के आरोपी रिज़ॉर्ट मालिक की गिरफ़्तारी के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर रिजॉर्ट को धवस्तीकरण की कार्रवाई कर दी गई। मुख्यमंत्री या यह संदेश है कि ग़लत करने वाले की जगह सिर्फ़ जेल में है। रिपोर्ट्स के मुताबिक आर्यम रिसॉर्ट धनाचूली, एडमिरलस विला धनाचूली, फारेस्ट एकर्स कैम्प चौकुटा, व्हिस्टलिंग वुड्स जैसे रिसॉर्ट को सील कर दिया गया है. जिला प्रशासन के मुताबिक ये रिसॉर्ट प्रशासन की ओर से तय नियमों का पालन नहीं कर रहे थे. देवभूमि में ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने मानवता को शर्मसार करते हुए उस बेटी की हत्या की है, जो आगे बढ़ना चाहती थी. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दबाव के चलते उसकी हत्या को दबाने की कोशिश की गई. उन्होंने कहा कि अंकिता हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त पहले भी अन्य मामलों में वांछित रहा है. ऐसे में पूरा मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में चले तथा आरोपियों को कड़ी सजा मिले?.लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय कार्यरतहैं।