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बौराणी का ऐतिहासिक कार्तिक पुन्यू कौतिक ( कार्तिक पूर्णिमा मेला),,,,,,, वैसे तो हमारी देवभूमि धर्म एवं आस्था के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां के प्रत्येक मंदिरों में कोई न कोई मेला अवश्य लगता है। ऐसे ही एक मेला देवभूमि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में स्थित वेरीनाग क्षेत्र के बौराणी नामक क्षेत्र में लगता है। कार्तिक पूर्णिमा को सैम ज्यू देवता के मंदिर में यह मेला लगता है। सबसे महत्वपूर्ण है यहां का मुख्य आकर्षण गांव से लाई गई छ्यूलकि मछ्याल ( चीड़ के ज्वलनशील छिलके की मशाल) है। यह 27 फीट लंबी मशाल होती है। और इस मशाल को प्रत्येक मेला देखने वाले व्यक्ति को देखना आवश्यक माना जाता है। कहते हैं कि इस मशाल को देखने वाले पर भगवान सैम ज्यू की अति कृपा होती है। मध्य रात्रि को मंदिर परिसर पर मशाल पहुंचने पर दर्शनार्थियों का हुजूम हाथ जोड़कर स्वागत के लिए तैयार रहता है। वहां के स्थानीय बुजुर्ग लोगों के अनुसार सैम ज्यू के इस मंदिर में कार्तिक पूर्णिमा को छिलके की मसाज लाने की परंपरा सदियों पुरानी है। लोग इसे सैम ज्यू की कृपा के अतिरिक्त सुख शांति एवं समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। बाद में इस मशाल को मंदिर प्रांगण में ही गाड़ दिया जाता है। मसाल गाड़ने के उपरांत यहां कुमाऊनी झोड़ा चाचरी का अद्भुत परंपरागत कार्यक्रम शुरू होता है। हजारों की संख्या में स्त्री पुरुष एवं बच्चे मैदान में अपना हुनर पेश करने आते हैं। अखंड धूणी में डंगरिया नौर्त के माध्यम से श्रद्धालुओं को विभूति लगाकर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। बोरानी में परंपरागत मेले के साथ यहां जुआ खेलने की कुप्रथा अब लगभग समाप्त हो गई है। इस कुप्रथा ने तो ऐसा विकराल रूप ले लिया था कि लोग इसे जूवाल कौतिक ( जुवे वाला मेला) के रूप में जानने लग गये । वहां जुए के हजारों फड लगने लगे थे । एक महत्वपूर्ण बात पाठकों को और बताना चाहूंगा की कुमाऊं में सैम ज्यू की बड़ी कृपा होती है। कुमाऊं के लगभग सभी क्षेत्रों में इनके मंदिर भी हैं। कुमाऊं में एक प्रचलित कहावत भी है।कै हुणि सैम कै हुणि भैम । अर्थात किसी के लिए सैम तो किसी के लिए भैम ( भ्रम) वैसे इस वाक्य का हिंदी रूपांतरण होता है मानो तो देवता न मानो तो पत्थर। यदि इस वाक्य का अवध भाषा में रूपांतरण करें तो गोस्वामी तुलसीदास जी के अनुसार जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ।। सैम देवता सभी की मनोकामना पूर्ण करें।

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