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सावन मास में पार्थिव पूजा का महत्व। देवों के देव महादेव को सावन मास सबसे प्रिय है। इसलिए सावन में पार्थिव पूजा सबसे महत्वपूर्ण है। त्रेता युग में भगवान रामचंद्र जी ने भी लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए पार्थिव पूजा की थी। जैसा कि तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस में लिखा है की लिंग थाप विधिवत करी पूजा। शिव समान प्रिय मोहि न दूजा।। अर्थात विधिवत उनका पूजन किया और बोले कि शिवजी के समान मुझे अन्य कोई प्रिय नहीं है। भगवान शिव जी के प्रिय सावन मास में पार्थिव शिवलिंग पूजन का पुराणों में विशेष महत्व बताया गया है। विष्णु पुराण शिव पुराण सहित अनेक पुराणों तथा ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है। पार्थिव शिवलिंग की विधि विधान से पूजा कर हर मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं। भगवान शंकर की पूजा के लिए तो पूरा वर्ष शुभ है परंतु सावन मास में इसका महत्व कुछ और अधिक बढ़ जाता है। सावन में पूजा करने से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होते हैं। शिव महापुराण सहित अनेक वेद और पुराणों में अनेक विधियां बताई गई है। जिसमें जलाभिषेक रुद्राभिषेक भस्म आरती आदि अनेक विधियां बताई गई है। अब यदि बात करें कलयुग की तो कलयुग में सर्वप्रथम ऋषि कुष्मांड के पुत्र मंडप ने पार्थिव पूजा की शुरुआत की थी। शिव पुराण के अनुसार पार्थिव शिवलिंग की पूजा से धन-धान्य और पुत्र प्राप्ति का वरदान मिलता है। साथ ही साथ समस्त शारीरिक कष्टों से भी छुटकारा मिलता है। पार्थिव शिवलिंग पूजन से दुखों का नाश होता है और भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शिवलिंग की पूजा करने से अकाल मृत्यु का खतरा टल जाता है। वही शिवपुराण कहता है कि जो मनुष्य पार्थिव शिवलिंग बनाकर इसका विधिपूर्वक पूजन करता है उसे 10,000 कल पतक स्वर्ग में रहने का अवसर प्राप्त होता है। अब मैं सुधि पाठकों को शिवलिंग बनाने की विधि बताना चाहूंगा। शिवलिंग 12 अंगुल अर्थात लगभग 8 इंची से ऊंचा नहीं होना चाहिए। शिवलिंग बनाने के लिए दीमक वाली मिट्टी गाय का गोबर भस्म का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग साठी चावल के आटे कॉलिंग भी बनाते हैं। ध्यान रहे लिंग की ऊंचाई 8 इंच से अधिक नहीं हो। और शिवलिंग के चारों ओर छोटे-छोटे एक अंगूठे की नाप के 108 गण तथा नंदी बैल की आकृति भी बनाई जाती है। और बनाते समय यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि बनाने वाले का मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में ही होना चाहिए और उसे मन ही मन ओम नमः शिवाय का स्मरण करते रहना चाहिए। इसके अलावा मनोकामना हो तो शिवलिंग पर प्रसाद अवश्य चढ़ाएं। और शिवलिंग पर चढ़ाई प्रसाद को नहीं खाना चाहिए और नहीं दूसरे को देना चाहिए। और अब सबसे पहले होती है भगवान गणेश जी की आराधना उसके बाद भगवान विष्णु मां पार्वती तथा नवग्रह की विधिवत आह्वान करना चाहिए। इसके बाद विधिवत षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। पार्थिव शिवलिंग बनाने के बाद इसे ब्रहम मानकर पूजन करना चाहिए। शिवलिंग पूजन के बाद परिवार खुशहाल रहता है। महामृत्युंजय मंत्र भी विशेष फलदाई है। पार्थिव पूजन के अंत में कम से कम 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जब भी करना चाहिए। और द्वादश ज्योतिर्लिंग ओं का अर्थात 12 ज्योतिर्लिंगोंका स्मरण भी करना चाहिए, लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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