ख़बर शेयर करें

गौरा देवी के स्मारक को भी खतरा पैदा हो गया है
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
चिपको को सबसे ज्यादा वे स्थितियाँ बनाये रखेंगी जो बदली नहीं हैं और मौजूदा राजनीति जिन्हें बदलने का प्रयास करने नहीं जा रही है। स्वयं गौरादेवी का परिवेश तरह-तरह से नष्ट किया जा रहा है। ऋषि गंगा तथा धौली घाटी में जिस तरह जंगलों पर दबाव है; जिस तरह जल विद्युत परियोजनाओं के नाम पर पूरी घाटी तहस-नहस की जा चुकी है और नन्दादेवी नेशनल पार्क में ग्रामीणों के अधिकार लील लिये गये है; मन्दाकिनी घाटी में विद्युत परियोजना के विरोध में संघर्षरत बल्कि पर्वतवासी का सामान्य गुस्सा भी प्रकट नहीं कर सके हैं। वहां के ग्रामीण अवश्य अभी भी आत्म समर्पण से इन्कार कर रहे हैं। आपदा प्रभावित रैणी तपोवन क्षेत्र के निवासियों की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। फरवरी माह की आपदा के जख्म अभी भरे भी नहीं है कि बारिश होते ही ऋषिगंगा और धौलीगंगा का बढ़ता जलस्तर चिंता का सबब बन गया है। अभी तो मानसून सिर पर है। आपदा को पांच माह भी बीत चुके हैं, लेकिन क्षतिग्रस्त भवनों की न तो मरम्मत हो पाई है और न ही गांव के विस्थापन की फाइल आगे बढ़ पाई है। ऐसे में ग्रामीणों में आक्रोश है, जबकि प्रशासन विस्थापन को लेकर सर्वेक्षण पर ही अटका हुआ है।रैणी तथा फाटा जैसे चिपको आन्दोलन के पुराने संघर्ष स्थानों पर सबसे जटिल स्थिति बना दी गई है।सामरिक दृष्टि से बेहद अहम भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाला राजमार्ग रैणी गांव के पास ध्वस्त हो गया। बीती रात हुई भारी बारिश के चलते सड़क का करीब 40 मीटर भाग ढह गया। इसके साथ ही रैणी गांव के नीचे ऋषिगंगा नदी पर बनाए गए गार्डर/वैली ब्रिज के बायें एबटमेंट भी खतरे की जद में आ गया है। बीती सात फरवरी को ऋषिगंगा कैचमेंट में आई जलप्रलय में भी यहां के स्थायी पुल को नुकसान पहुंचा था और इसके बाद गार्डर ब्रिज का निर्माण किया गया था।भारत-चीन सीमा को जोड़ने वाले राजमार्ग के रैणी के पास ध्वस्त होने के बाद आवाजाही पूरी तरह से ठप पड़ गई है। हालांकि, बीआरओ (सीमा सड़क संगठन) ने राजमार्ग को खोलने की कवायद शुरू कर दी है। वहीं, चमोली जिला प्रशासन भी लगातार राजमार्ग की स्थिति पर नजर बनाए हुए है। साथ ही पुल के एबटमेंट को भी नदी के तेज बहाव से सुरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।रैणी गांव के पास जोशीमठ-नीती बॉर्डर सड़क का एक बड़ा हिस्सा भूस्खलन की चपेट में आने से ऋषिगंगा में समा गया है. जिससे सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों सहित भारत चीन सीमा पर तैनात जवानों को रसद पहुंचाने वाले सेना के वाहनों की आवाजाही थम गई है. रैणी गांव के निचले हिस्से में हो रहे भूस्खलन से जहां सड़क धंस गई है. वहीं रैणी गांव और गौरा देवी के स्मारक को भी खतरा पैदा हो गया है.गौर हो कि बीती 7 फरवरी को रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में आई भीषण आपदा के बाद रैणी गांव में रह रहे लोगों की मुसीबतें अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं. रैणी गांव के निचले भाग में ऋषिगंगा ने कटाव शुरू कर दिया है. जिससे रैणी में सड़क धंसने के साथ-साथ गांवों के घरों में दरारें भी आने की बात ग्रामीण बता रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वह खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं.रात में बारिश होते ही ग्रामीण अपने घरों को छोड़कर गुफाओं में रात बिताने को मजबूर हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि आपदा के बाद से स्थानीय प्रशासन ने एक बार भी आकर ग्रामीणों की सुध नहीं ली.जिससे ग्रामीणों में प्रशासन के खिलाफ खासा रोष है. उधर, भूविज्ञानी के मुताबिक, उच्च हिमालय का अधिकांश क्षेत्र कालांतर में ग्लेशियरों के पीछे खिसकने व शेष मलबे के वहीं रहने के चलते बना है। लिहाजा, क्षमता के लिहाज से जमीन उतनी मजबूत नहीं है।ऐसे में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हर एक निर्माण के दौरान भूविज्ञान के हिसाब से उचित अध्ययन कराना जरूरी है।ऋषिगंगा कैचमेंट में करीब एक दर्जन गांव ऐसे हैं, जहां के लोग बर्फ पड़ने के दौरान करीब छह माह निचले क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। जब बर्फ पिघलती है, तब ये वापस लौटते हैं। इस समय ग्रामीणों ने निचले क्षेत्रों में प्रवास की तैयारी शुरू कर दी थी। हालांकि, राजमार्ग के ध्वस्त होने व पुल को खतरा पैदा होने के चलते उनके कदम ठिठक गए हैं।ग्रामीण संपर्क सड़कों पर भी जगह-जगह मलबा आने व पुश्ते टूटने से आवाजाही में दिक्कतें हो रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में वाहन चालक व ग्रामीण स्वयं ही सड़कों का मलबा साफ कर किसी तरह वाहनों की आवाजाही करा रहे हैं। हालांकि लोक निर्माण विभाग भी मांग के अनुसार अपने संसाधन भेजकर सड़कों को खोलने की कार्रवाई कर रहा है। रैणी गांव के निचले हिस्से में हो रहे भूस्खलन से जहां सड़क धंस गई है. वहीं रैणी गांव और गौरा देवी के स्मारक को भी खतरा पैदा हो गया है. सडक कटिंग की योजना बीआरओ ने बनाई है, लेकिन जिस भूमि में कटिंग की जानी है व लोगों की नाप भूमि है इस लिए बिना लोगों को मुआवजा दिए कटिंग संभव नही है। कहा कि प्रशासन लोगों से इस दिशा में बातचीत कर रही है। बताया कि यदि ऊपरी छोर से सडक कटिंग की जाती है तो तीन भवनों को जिनमें दरारें भी आयी है को ढहाया जाना भी आवश्यक । इसकेअतिरिक्त यहां पर कुछ पोल एवं बिजली की लाईन को भी शिफ्ट करना पडे़गा। पूरी रैंणी घाटी दहशत में जी रही है। कहते हैं कि गांव के दर्जनों मकानों एवं खेतों में दरारें बढ़ रही हैं और पूरा गांव कटाव की चपेट में आ गया है। कहते हैं कि सरकार को जल्द से जल्द सभी प्रभावित गांवों का विस्थापन करना चाहिए। कहते हैं कि गांव में कटाव बढ़ रहा है व नीचे से नदियां भी कटाव कर रही हैं। रैणी तपोवन क्षेत्र के निवासियों की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। फरवरी माह की आपदा के जख्म अभी भरे भी नहीं है कि बारिश होते ही ऋषिगंगा और धौलीगंगा का बढ़ता जलस्तर चिंता का सबब बन गया है। अभी तो मानसून सिर पर है। आपदा को पांच माह भी बीत चुके हैं, लेकिन क्षतिग्रस्त भवनों की न तो मरम्मत हो पाई है और न ही गांव के विस्थापन की फाइल आगे बढ़ पाई है। ऐसे में ग्रामीणों में आक्रोश है, जबकि प्रशासन विस्थापन को लेकर सर्वेक्षण पर ही अटका हुआ है। रैणी निवासी केहते हैं, सरकार ने आपदा के दौरान गांव के विस्थापन का भरोसा दिलाया था। कई घरों में दरारें पड़ी हैं। ग्रामीणों को जान का खतरा बना हुआ है। बरसात में नदी उफान पर आने के बाद ग्रामीण रातभर सुरक्षा के लिए रतजगा करने को मजबूर हैं। बताया कि पैदल मार्ग भी आपदा के दौरान क्षतिग्रस्त हुए हैं। लेकिन, सरकार व प्रशासन अभी तक ग्रामीणों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान दून विश्वविद्यालय में कार्यरत है.

You cannot copy content of this page