पंच ग्रही योग में मनाई जाएगी इस बार की महाशिवरात्रि,आइये जानते हैं कैसे ?

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नैनीताल- हिंदू धर्म के अनुसार तीन रात्रि बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। जैसा कि दुर्गा सप्तशती में भी कहा गया है कालरात्रि महा रात्रि मोह रात्रि च दारुणा अर्थात शिवरात्रि कृष्ण जन्माष्टमी और दिवाली यह तीन रात्रि बहुत ही महत्वपूर्ण है। इनमें शिवरात्रि जो बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना की जाती है। इस बार सन् 2022 में यह पावन पर्व दिनांक 1 मार्च 2022 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा।
शुभ मुहूर्त इस बार सन् 2022 में दिनांक 1 मार्च दिन मंगलवार को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी । इस बार महाशिवरात्रि पर पंच ग्रही योग बन रहा है । मकर राशि बारहवें भाव में पंच ग्रही योग बन रहा है । अर्थात मंगल शनि बुध शुक्र के साथ चंद्रमा रहेंगे । यदि तिथि की बात करें तो 1 मार्च 2022 को चतुर्दशी तिथि प्रातः 3:18 से प्रारंभ होकर अगले दिन रात्रि 1:03 पर समाप्त होगी इस दिन धनिष्ठा नामक नक्षत्र है जो अगले दिन प्रातः 3:48 तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन परिधि नामक योग दिन में 11:16 तक रहेगा तदुपरांत शिव एवं सिद्धि योग होंगे । इस दिन भद्रा दिन में 2:08 तक रहेगा ।
इस दिन भगवान भोलेनाथ की मिट्टी का लिंग बनाकर दूध दही घी शहद वह गंगा जल से भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है 108 बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं। शिवरात्रि के संबंधित एक पौराणिक कथा है कि एक बार पार्वती जी ने भगवान शिव जी से पूछा ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत पूजा है जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? उत्तर में शिव जी ने पार्वती जी को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई जो निम्न प्रकार से है। एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था पशुओं की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था परंतु उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधी साहूकार ने शिकारी को शिव मंदिर में मठ में बंदी बना दिया। संयोग की बात यह थी कि ठीक उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यान मग्न होकर भोले शंकर संबंधी धार्मिक बातें सुन रहा था उस दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के बारे में बात की। शिकारी ने अगले दिन सारा ऋण चुकाने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी रोज की दिनचर्या के बाद वह शिकार के लिए चला गया। परंतु दिन भर बंदी गृह में रहने के कारण भूख और प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा बेल वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग था जो बेल पत्रों से ढका था परंतु शिकारी को उसका पता नहीं था। पड़ाव बनाते समय उसने जो बेल की टहनियों तोडी वह संयोग से शिवलिंग पर गिरी इस प्रकार दिन भर भूखे प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। अब एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भवती मृगी तालाब पर पानी पीने निकली। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यूं ही प्रत्यंचा खींची मृगी बोली मैं गर्भवती हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास प्रस्तुत हो जाऊंगी तब मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर ली। और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई। कुछ समय उपरांत एक दूसरी मृगी उधर से निकली शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रता से निवेदन किया हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋण से निवृत्त हुई हूं। कामासुर विरहिनी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका भी माथा ठनका वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर लगाने में देर नहीं की वह तीर छोड़ने ही वाला था की मृगी बोली हे पारधी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी इस समय शिकारी हंसा और बोला सामने आए शिकार को छोड़ दूं क्या ? इससे पहले दो बार शिकार छोड़ चुका हूं। वहां मेरे बच्चे भूख प्यास से तड़प रहे होंगे। इसके उत्तर में मृगी ने कहा जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए बच्चों के नाम पर थोड़ी देर जीवनदान मांग रही हूं। मेरा विश्वास करो मैं तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं। मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल वृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़ तोड़ कर नीचे फेंकते जा रहा था।पौ फटने को हुई तो एक हष्ट पुष्ट मृग रास्ते पर आया शिकारी ने सोचा इसका शिकार तो अवश्य करना है। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मुर्ग बोला हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली 3 मृगियों तथा उनके छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में देर मत करो ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उनको जीवन देने की कृपा करी है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवन देने की कृपा करें। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा। मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना चक्र घूमता गया उसने सारी कथा मृग को सुनाई तब मुर्ग ने कहा मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगे। अतः जैसे तुमने विश्वासपात्र मानकर छोडाहै वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सब के साथ शीघ्र ही उपस्थित होता हूं। उपवास रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया। उसमें भगवत शक्ति का वास हो गया। धनुष तथा बाण उसके हाथ से छूट गए। भगवान शिव जी की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भाव से भर गया। वह अपने अतीत के क्रम को याद कर पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा। थोड़ी देर बाद वह मुर्ग परिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया ताकि वह उनका शिकार कर सके। किंतु जंगली जानवरों की ऐसी सत्यता सात्विकता प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके हृदय ने जीव हिंसा को हटाकर कोमल हृदय ही बन गया। इस घटना की परिणति होते ही स्वर्ग से देवी देवताओं ने पुष्प वर्षा की तब शिकारी एवं मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।

देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं में महाशिवरात्रि।, ,,,,,, देवभूमि उत्तराखंड में तो महाशिवरात्रि कुछ विशेष प्रकार से मनाई जाती है। इस दिन देवभूमि के समस्त शिव मंदिरों शिवालयों में चहल पहल रहती है। 4 -5 रोज पूर्व ही लोग जंगलों से तैड ( तरूड) निकालने में जुट जाते हैं।तैड या तरूड एक प्रकार का कंद है। जिसकी बेल होती है। बेल में पान की तरह की पत्तियां होती हैं। उस बेल की जड़ को बहुत गहराई तक कुदाल या सब्बल से खुदाई करने पर कंद निकाली जाती है। तदुपरांत उस कंद की मिट्टी साफ करके धोकर शकरकंद की तरह पकाया जाता है। तदुपरांत भगवान भोले शंकर को अर्पित करने के बाद प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। इसकी सब्जी भी बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त शकरकंद बेर सीताफल आदि भगवान भोले शंकर को अर्पित करते हैं। दीमक वाली मिट्टी से घर पर पार्थिव पूजा की भांति शिवलिंग बनाए जाते हैं और 108 बेल पत्रों से भगवान भोले शंकर की अष्टोत्तर शत पूजा की जाती है। देवभूमि के कई शिवालयों में इस दिन मेले भी लगते हैं। देवभूमि के पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र अंतर्गत रामेश्वरम के शिवालय में इस दिन मेला लगता है। इसके अतिरिक्त गंगोलीहाट के ही पाताल भुवनेश्वर में भी इस दिन भक्तों एवं श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। जनपद के थल जौलजीबी धारचूला मद कोट आदि स्थानों में शिव महोत्सव होते हैं। जनपद के ही जनपद मुख्यालय में घंटाकरण शिव मंदिर पुराना बाजार कपिलेश्वर तिल डूंगरी शिव मंदिरों में भी बड़ी भीड़ रहती है। वही बेरीनाग के पुंगेश्वर महादेव इसके अतिरिक्त थल चट केश्वर महादेव शेरा घाट थल केदार आदि मंदिरों में महाशिवरात्रि को मेले लगते हैं। अस्कोट के मल्लिकार्जुन महादेव और जौलजीबी के काली और गोरी के संगम में स्थित ज्वालेश्वर महादेव में भी भक्तों की भीड़ रहती है। मदकोट के गौरी एवं मंदाकिनी नदी के संगम में भी शिवरात्रि मेला लगता है। गंगोलीहाट के पाताल भुवनेश्वर में तो इस दिन दूर दूर से आए श्रद्धालु एवं भक्तों की भीड़ रहती है।
शिव विवाह की एक रोचक कथा।, ,,, भगवान भोले शंकर के विवाह के दिन की एक रोचक कथा की जानकारी भी मैं अपने प्रिय पाठकों को देना चाहूंगा। जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि विवाह के दिन पंडितों के द्वारा शाखोच्चार किया जाता है। जिसमें वर पक्ष और कन्या पक्ष के एक दूसरे पर प्रश्न उत्तर किए जाते हैं। जैसे की वर का गोत्र शाखा आदि वर के परदादा का नाम दादा का नाम पिता का नाम वर का नाम आदि सभी चीजें पूछी जाती है। ठीक इसी प्रकार विवाह के समय जब भोले शंकर से उनका नाम और पूर्वजों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने अपना नाम शिव बताया। इसके बाद उनके पिता का नाम पूछा गया। इस पर ब्रह्मा जी ने स्वयं को उनका पिता बताया। इस पर कन्या पक्ष की ओर से पूछा गया कि अगर ब्रह्म आपके पिता है तो आपके दादा जी कौन हैं? भगवान शिव ने जवाब देते हुए कहा कि- ” इस सृष्टि के पालन करने वाले भगवान विष्णु ही मेरे दादाजी हैं।” इस पर भी कन्या पक्ष की जिज्ञासा शांत नहीं हुई तो शिवजी से पूछा गया कि अगर आपके पिता ब्रह्मा हैं आपके दादा विष्णु जी हैं तो आप के परदादा कौन हैं? यह प्रश्न सुनकर भगवान शिव जी ने जोर से अट्टहास किया और प्रेम पूर्वक बोले ” सब के परदादा तो हम ही हैं” । यह एक किवदंती है। तब से भगवान शिव को आदिदेव देवाधिदेव अर्थात सभी देवों के देव कहा जाता है। प्रिय पाठकों को बताना चाहूंगा कि महाशिवरात्रि पर महादेव जी की आराधना व्यक्ति के भाग्य को भी बदल देती है। कहा भी गया है-“भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी ” अर्थात यदि जीवन में ग्रहों या प्रारब्ध के कारण कुछ भी न हो पा रहा हो तो महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले शंकर एवं पार्वती जी की उपासना द्वारा ग्रहों की चाल को भी बदला जा सकता है। यदि किसी को अपनी ग्रह दशा की जानकारी ही ना हो तो वह महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले शंकर का उपवास कर उन्हें मात्र जला दी चढ़ा कर भी भगवान शिव जी की कृपा से उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान भोले शंकर सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें। भगवान भोलेनाथ एवं माता पार्वती की कृपा आप और आपके परिवार में सदैव बनी रहे। इसी शुभकामना के साथ ओम नमः शिवाय। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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