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मदन द्वादशी दैत्यों की माता दिति से जुडी है आज की कथा । कामदेव की पूजा की जाती है जाती है आज के दिन आज, ,,,,,,,, चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मदन द्वादशी के नाम से जाना जाता है कामदेव के आशीर्वाद से पुत्र के खोने का दुख दूर हो जाता है और सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है। क्या है शुभ मुहूर्त और व्रत कथा आइए जानते हैं।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,,,, आज दिनांक 13 अप्रैल 2022 दिन बुधवार को मदन द्वादशी मनाई जाएगी। आज द्वादशी तिथि 57 घड़ी 27 पल अर्थात अहोरात्र तक है। यदि नक्षत्रों की बात करें तो आज मघा नामक नक्षत्र 9 घड़ी 17 पल अर्थात प्रातः 9:34 तक रहेगा तदुपरांत पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र प्रारंभ होगा। यदि आज के चंद्रमा की स्थिति जाने तो आज चंद्र देव पूर्णरूपेण सिंह राशि में रहेंगे।
मदन द्वादशी की व्रत कथा।, ,,,,, पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं ने युद्ध में सभीदैंत्यो का अंत कर दिया। जिससे उनके वंश पर संकट आ गया। उनके कुल के संहार से दुखी माता दिति मानसिक तौर पर अत्यधिक कष्ट में थी। उनका यह कष्ट असहनीय हो गया था। क्योंकि उनके सभी पुत्र मारे गए थे। इस कष्ट से मुक्त होने के लिए वह पृथ्वी पर आई और सरस्वती नदी के तट पर आसन लगाकर बैठ गई। उसके पश्चात अपने पति कश्यप ऋषि का आह्वान करने लगी तदुपरांत उन्होंने 100 वर्षों तक कठोर तप किया। इसके उपरांत भी उनका मन शोक से व्याकुल रहा। उनको शांति और मुक्ति नहीं मिली तब तब उन्होंने ऋषि-मुनियों से अपनी इच्छा पूर्ति का उपाय पूछा ऋषि ने सुझाव दिया कि मदन द्वादशी व्रत विधि पूर्वक करो। उनके बताए गए विधान के अनुसार दिति ने मदन द्वादशी व्रत रखा। उसके पश्चात उनके पति कश्यप ऋषि उनके सम्मुख प्रकट हो गए। उन्होंने अपने तपोबल से दिति को फिर एक सुंदर युवती बना दिया फिर उनसे वर मांगने को कहा ने सुयोग्य पुत्र की इच्छा प्रकट की जो इंद्र समेत सभी देवताओं का विनाश करने में सक्षम हो। तब महर्षि कश्यप ने उनके लिए उनको एक और अनुष्ठान करने का सुझाव दिया इसके पश्चात वे गर्भवती हो गई। उधर जब इंद्र देव को इस घटना के बारे में जानकारी हुई तो वे दिति के गर्भ को खत्म करने की कोशिश करने लगे। 1 दिन इंद्र ने वज्र से गर्भस्थ शिशु पर हमला कर दिया। जिससे वह शिशु अमरत्व प्राप्त करके 49 शिशु में बदल गया इंद्रदेव अपने कृत्य पर शर्मिंदा हो गए और माता दिति से क्षमा मांगी साथ ही यह भी कहा कि यह 49 शिशु मरुत गण है यह देवों के समान है उन्होंने यज्ञ में उनके लिए समुचित अंश की व्यवस्था की। इसी प्रकार से माता दिति को मदन द्वादशी का व्रत करने से पुत्र शोक से मुक्ति मिली और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

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