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बहुत महत्वपूर्ण है मोक्षदा एकादशी या गीता जयंती।,,,,,
मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी या गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस बार सन् 2022 में शैव समुदाय के लोग दिनांक 3 दिसंबर 2022 दिन शनिवार को तथा वैष्णव समुदाय के लोग दिनांक 4 दिसंबर 2022 दिन रविवार को मोक्षदा एकादशी मनाएंगे। यदि एकादशी तिथि की बात करें तो दिनांक 3 दिसंबर 2022 दिन शनिवार को प्रातः 5:39 बजे से प्रारंभ होगी और दिनांक 4 दिसंबर रविवार को प्रातः 5:34 बजे तक रहेगी।

श्रीमद्भगवद्गीता हिंदू धर्म का सबसे पवित्र महा ग्रंथ है। महाभारत के युद्ध में जब धनुर्धर अर्जुन अपने लक्ष्य से विचलित हो गए थे और युद्ध के दौरान अस्त्र-शस्त्र उठाने से मना कर रहे थे तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने मार्ग पर वापस लाने के लिए गीता का उपदेश दिया था। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन धनुर्धर अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस तिथि को गीता जयंती मनाई जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता हमारे हिंदू धर्म का सबसे पवित्र ग्रंथ माना गया है। यह भारतीय संस्कृति की प्रमाणिक आधारशिला है। श्रीमद भगवत गीता में कुल मिलाकर 700 श्लोक हैं। महाभारत ग्रंथ की रचना भी महर्षि वेदव्यास जी ने की। जिसमें 18 पर्व हैं। गणेश जी द्वारा इसको लिखने के पीछे भी एक रोचक कथा है। महर्षि वेदव्यास जी ने भगवत गीता को अंतर्मन में रख लिया था। परंतु उनके सामने एक महान समस्या थी कि उन्हें ऐसे विद्वान की आवश्यकता थी कि वह भागवत का उच्चारण बिना कहीं रुके करते जाएं और विद्वान लेखक उसका लेखन का कार्य बिना रुके और बिना किसी त्रुटि के कर सके। इस समस्या का समाधान पाने के लिए महर्षि वेदव्यास जी ने ब्रह्मा के समक्ष अपनी समस्या को रखा। ब्रह्मा जी ने महर्षि व्यास जी से कहा कि इस कार्य में बुद्धि के देवता भगवान श्री गणेश जी सहायता कर सकते हैं आप उनकी सहायता लीजिए। तदुपरांत व्यास जी गणेश जी के पास पहुंचे और उन्होंने अपने विचार गणेश जी के समक्ष रखे। भगवान गणेश जी महर्षि व्यास की परेशानियों को सुनकर महाभारत को लिखने के लिए राजी हो गये गणेश जी ने भी शर्त रखी कि एक बार कलम उठा लेने के बाद कथा समाप्त होने तक वह कहीं नहीं रुकेंगे। महर्षि महर्षि व्यास गणेश जी की बुद्धिमता को समझ गए कि यदि शर्त को मान लेते हैं तो उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। उन्हें किसी विश्राम के बिना निरंतर कथा वाचन करते रहना पड़ेगा। महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी के समक्ष एक और शर्त रखी कि हर श्लोक को लिखने के बाद गणेश जी को उसका अर्थ भी समझाना होगा। भगवान श्री गणेश जी ने ऋषि वेदव्यास जी की शर्तें मान ली। महर्षि वेदव्यास वाचन करते रहे और गणेश जी लेखन का कार्य करते रहे। गणेश जी द्वारा श्लोकों का अर्थ समझाने के दौरान महर्षि वेदव्यास ने नए श्लोक की रचना कर लेते। इस प्रकार महाभारत की रचना हुई। श्रीमद्भागवत गीता मात्र हमारे देश में ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में अनेकों विद्वानों ने भी इसका अध्ययन किया है। विश्व के बहुत से वैज्ञानिकों ने श्रीमद्भगवद्गीता पर अपने विचार रखे हैं उदाहरणार्थ अल्बर्ट आइंस्टाइन। अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनुसार ” जब मैंने गीता पड़ी तब मैंने विचार किया कि कैसे ईश्वर ने ब्रह्मांड की रचना की है? तो मुझे बाकी सब कुछ व्यर्थ प्रतीत हुआ।”इसके अतिरिक्त हेनरी डी थोरो के अनुसार ” हर सुबह में अपने हृदय और मस्तिष्क को श्रीमद भगवत गीता के उस अद्भुत और देवी दर्शन से स्नान कराता हूं जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और उसका साहित्य छोटा और तुच्छ जान पड़ता है।”
इसके अतिरिक्त भी विश्व के अनेक विद्वानों ने भी श्रीमद भगवत गीता का अध्ययन किया है। श्रीमद भगवत गीता के प्रथम श्लोक में जहां श्रीमद्भगवद्गीता की शुरुआत होती है वह इस प्रकार से है__
धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र समवेता युयुत्सव:।।
मामका पाण्डवाश्चैव किम कुर्वन्तु संजय?।।१।।
यहां धृतराष्ट्र संजय से पूछते हैं की “हे संजय !धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में मेरे पुत्रों और पांडवों के बीच युद्ध के क्या हाल समाचार हैं?”
इसके अतिरिक्त श्रीमद्भागवत गीता में जीवन उपयोगी अनेक महत्वपूर्ण बातें लिखी गई है। जैसे कि दूसरे अध्याय के 63 वें श्लोक में क्रोध के संबंध में लिखा है कि
क्रौधाति भवति सममोहा सममोहाति स्मृति भंस:।
स्मृति भंसाति बुद्धि नाशो
बुद्धि नाशात प्रण्श्चति।।
अर्थात जीव का सबसे बड़ा दुश्मन उसका क्रोध होता है। क्रोध करने से सममोह,सममोह से स्मृति भंश होती है, स्मृति भंश होने से बुद्धि का नाश होता है तथा बुद्धि का नाश होने पर जीव स्वत: नष्ट हो जाता है।
अतः इस पावन दिन व्यक्ति को चाहिए कि इस पावन धर्म ग्रंथ का मनन करना चाहिए सिर्फ मन ही नहीं अपितु उसको अपने जीवन पर उतारना नितांत आवश्यक है जो जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है।
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम्।
धर्म संस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।।
महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन कुरुक्षेत्र में युद्ध करने से इंकार कर रहे थे तब नंदनंदन भगवान श्री कृष्ण ने यह श्लोक कहा था। इसका अर्थ कुछ इस प्रकार से है मैं अवतार लेता हूं मैं प्रकट होता हूं जब-जब धर्म की हानि होती है तब तब मैं आता हूं। जब-जब अधर्म बढ़ता है तब तब मैं साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूं। सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मैं आता हूं। दुष्टों का विनाश करने के लिए मैं आता हूं। धर्म की स्थापना के लिए मैं आता हूं। और युग युग में जन्म लेता हूं।

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