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पाताल भुवनेश्वर के बारे में विशेष विश्व विख्यात पाताल भुवनेश्वर उत्तराखण्ड राज्य के पिथोरागढ जिले के गंगोलीहाट तहसील से लगभग पन्द्रह कि, मी दूर स्थित है, इस गुफा की खोज राजा ऋतु पर्णा ने की थी, जो सूर्य वंशी राजा थे, और त्रेतायुग मे अयोध्या में शासन करते थे, अगर पुराणों की बात करैं तो स्कंद पुराण के मानस खंड में वर्णन है कि स्वयं महादेव भगवान शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते थे, और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहाँ आया करते थे, ऐसा भी कहा जाता है कि राजा ऋतु पर्णा जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा मे प्रविष्ट हुए तो उनहोंने गुफा के भीतर शिव सहित तैंत्तीस कोटि देवताओ के साक्षात दर्शन किया, महाभारत काल की बात करैं तो द्वापरयुग में पांडवों ने यहाँ चौपड खेला और यदि कलियुग की बात करैं तो जगतगुरु आदि शंकराचार्य का आठ सौ बाईस ईस्वी करीब गुफा में साक्षात्कार हुआ, उनहोंने यहाँ एक तांबे का शिव लिंग स्थापित किया, गुफा के अन्दर जाने के लिए लोहे की जंजीर बनी हैं जंजीर के सहारे पत्थर में पैर टेक कर जाया जाता है क्योंकि पत्थर चिकने फिसलने वाले है, यहाँ गुफा मे शेषनाग की आकृति का पत्थर भी है, ऐसा लगता है कि शेषनाग ने पृथ्वी को पकडे़ रखा है, सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि यहाँ एक शिव लिंग है, जो निरंतर बढते जा रहा है, वैज्ञानिक भी यह बताने में असमर्थ है कि आखिर पत्थर बढ कैसे रहा है, शिव लिंग अभी 1,5 फिट है शिव लिंग को छूने की लम्बाई तीन फिट है, इस शिव लिंग को लेकर यह मान्यता है कि जब यह शिव लिंग गुफा की छत को छू लेगा कलियुग समाप्त हो जायेगा यानि दुनिया समाप्त हो जायेगी, कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने क्रोध के आवेश में गजानन का मस्तक शरीर से अलग किया था वह उनहोंने इस गुफा में रखा था, दिवारों पर हंस बने हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह व्रह्माजी का हंस है, गुफा के अन्दर जो हवन कुंड है इसके बारे में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु उनके पुत्र राजा परीक्षित हुवे परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने इस कुंड में नाग यज्ञ किया था, जिसमें सभी सांप भस्म हो गये थे, जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित के उद्धार हेतु उमंग ऋषि के निर्देशानुसार यह नाग यज्ञ किया था, इसके अलावा यहां चार पाप द्वार बने हैं, माना जाता है कि तीसरा धर्म द्वार है जो कलियुग की समाप्ति पर बंद होगा, चौथा मोक्ष द्वार है इसके आगे विशाल मैदान है, मैदान के मध्य भाग में पुष्प गुच्छों से निर्मित पारिजात वृक्ष है कहा जाता है कि द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण इसे देवराज इन्द्र की अमरावती पुरी से मृत्यु लोक में लाये थे, इस मैदान के आगे कदलीवन नामक मार्ग है, मान्यता अनुसार यहाँ हनुमान अहिरावण संग्राम हुआ था, और हनुमान जी ने पाताल विध्वंस किया था संभवतः इसीलिए पाताल भुवनेश्वर नाम पढा लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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