देवभूमि उत्तराखंड का प्रमुख घी संक्रांति त्यौहार की क्या है खास बात,आइये जानते हैं
देवभूमि उत्तराखंड का प्रमुख त्योहार घ्यूंत्यार(घी त्यौहार) देवभूमि उत्तराखंड जहां हरेला पर्व से लगभग त्योहारों की झड़ी सी लग जाती है। सावन मास के बाद फिर जब भादो मास के पहले दिन यानी एक पैट (एक गते) भादो को एक ऐसा त्यौहार भी है जिस दिन पारंपरिक रूप से प्रत्येक व्यक्ति को घी खाना नितांत आवश्यक है। कहते हैं कि जो व्यक्ति इस दिन जी का सेवन नहीं करेगा वह अगले जन्म में घेघा (जिसे कुमाऊँ नी में गनेल) कहते हैं की योनि को प्राप्त होता है। किस दिन भगवान सूर्य देव 12 राशियों में से चौथी राशि कर्क राशि को छोड़कर सिंह राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे सिंह संक्रांति या घी संक्रांति भी कहते हैं। यह लोग पर्व के साथ साथ अनेकों मान्यताएं भी जुड़ी हैं। कहा जाता है कि यदि उन्हें न माना जाए तो व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। मेरा भी पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इन मान्यताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि परंपराओं को कुछ न कुछ सोच समझकर ही बनाया गया होगा। जिन मान्यताओं में से कुछ इस प्रकार हैं। घी खाने की परंपरा । संभवतः गर्मी व बरसात के मौसम में खानपान को लेकर परहेज किया जाता था। बरसात जाने के बाद नया मौसम आने पर अपने खाने की इच्छाएं पूरी करने के लिए घी के पकवान खाए जाते थे। किसान अपने घर के दरवाजे पर गोबर चिपकाते हैं ऐसा करना शुभ माना जाता है। बड़े बुजुर्गों का मानना है कि अखरोट के फल का सेवन घी संक्रांति के दिन से ही किया जाता है। घ्यूंत्यार को लेकर एक पौराणिक मान्यता है कि इस दिन घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी लाभ होता है। राहु व केतु ग्रह का व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। बल्कि व्यक्ति सकारात्मक सोच रखते हुए जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता है। आज के दिन से ही पिनालू(अरबी) के गाबे मंदिरों में चढ़ाने के साथ-साथ इसकी सब्जी बनाने की शुरुआत होती है।घ्यूंत्यार नए बनने वाले व्यंजनों में सबसे मुख्य है बेडू रोटी(मोमन वाली रोटी) यह उड़द की दाल को लगभग 5 घंटे 6 घंटे पानी में भिगोकर बाद में साफ करके सिलबट्टे में पीसकर बनाई जाती है। इसे घी और गाबे की सब्जी के साथ खाने का आनंद ही कुछ और है । यह बहुत शुभ भी माना जाता है। घ्यूंत्यार के दिन घी खाने के अतिरिक्त शरीर के अंगों जैसे कि कुहनी, घुटने आदि में लगाना भी बुजुर्ग लोग बताते हैं। यदि बात करें धर्म ग्रंथों की तो चरक संहिता के अनुसार भी घी खाने के अनेक लाभ हैं। इससे शरीर की अनेक व्याधियों दूर होती हैं। उदाहरण अर्थात कफ पित्त दोष तो दूर होते ही हैं। बुद्धि भी तीव्र होती है। इसके अतिरिक्त स्मरण शक्ति भी बढ़ती है। वेद पुराणों में भी जी के बिना कोई कार्य संपूर्ण नहीं होता। यज्ञ में भी थी की आहुति देना आवश्यक है। पंचामृत एवं पंचगव्य में गाय के घी को निम्न मंत्रोचार से किया जाता है। ओम घृतं घृत पावन: पिबतान्तरिक्षस्य: हविरसि स्वाहा । अतः पाठकों से मेरा विनम्र निवेदन है की हमें अपनी संस्कृति विलुप्त होने से बचाएं। एवं इन लोक पर्वों को हर्षोल्लास के साथ मनाएं। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,