संज्ञानात्मक कौशल का अध्ययनकक्ष में क्या महत्व है – कमलेश डी पटेल (दाजी)
संज्ञानात्मक कौशल का अध्ययनकक्ष में क्या महत्व है – कमलेश डी पटेल (दाजी)
किसी भी व्यक्ति के समग्र विकास में संज्ञानात्मक कौशल बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं| इन कुशलताओं का उपयोग हम समस्याओं को हल करने, दिए गए कार्यों को याद रखने और निर्णय लेने में उपयोग करते हैं और ये हमारी सीखने की क्षमता और प्रदर्शन पर असर डालते हैं| यह लेख संज्ञानात्मक कौशल और सीखने की प्रक्रिया में इसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डालता है|
मस्तिष्क के कुछ प्रमुख कार्य जैसे सोचना, पढ़ना, सीखना, जानकारी को याद रखना और ध्यान देना आदि संज्ञानात्मक कौशल के अंतर्गत आते हैं|
सबसे महत्वपूर्ण और मूलभूत संज्ञानात्मक कौशल है ध्यान देना| यह हमें अपने वातावरण से महत्वपूर्ण सूचनाओं को संसाधित करने के योग्य बनाता है| अक्सर हम ऐसी सूचनाएँ अपनी इन्द्रियों से, स्मृतिकोष से और अपनी अन्य संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं की सहायता से संसाधित करते हैं|
ध्यान देने में कमी, हमारी सूचना-संसाधन की प्रक्रिया में बाधक है और इसे धीमा कर देती है| यानी हमारा ध्यान बँट जाता है और हमने जो सीखा था उसे याद करके दोहराने में संघर्ष करना पड़ता है| जब लोग एक साथ कई काम करना चाहते हैं तब हम ऐसा देख सकते हैं, जैसे कोई कार्यक्रम देखते हुए ईमेल या मेसेज लिखना| दोनों कार्यों को एक साथ और अच्छी तरह करना कठिन है| असल में हमारी रूचि का कार्य हमारा ध्यान खींचे रखता है|
याददाश्त या स्मृति एक अन्य संज्ञानात्मक कौशल है जो हमें जानकारी को फिर से याद करने में मदद करती है| उदाहरण के लिए- कोई छात्र पिछले हफ्ते की विज्ञान की कक्षा में पढ़े मुख्य बिन्दुओं को याद रखता है, यह उसकी दीर्घावधि की याददाश्त है| पर शर्त यह है कि उस छात्र ने इसके पहले इस जानकारी पर ध्यान दिया हो!
यह उदाहरण यह भी दर्शाता है कि संज्ञानात्मक कौशल आपस में सम्बंधित हैं| हमारी दीर्घावधि की याददाश्त तभी काम करेगी अगर हमने उस विषय पर ध्यान दिया हो और उस जानकारी को अपनी अल्पावधि की याददाश्त के कोष में संभाल कर रख लिया हो जिसे कार्य-स्मृति कहा जाता है| इस कार्य-स्मृति में एकत्र जानकारी पर एक-दो बार थोड़ा मनन कर लिया जाए तो यह हमारी दीर्घावधि याददाश्त में शामिल हो जाती है|
कक्षा में ध्यान न दे पाना और जानकारी को संजो कर न रख पाना कक्षा में और हमारे जीवन दोनों में ही लम्बे समय तक चुनौतियाँ खड़ी करता है| याद रखने योग्य जानकारियों को व्यवस्थित रखना सीख लेना, बाद में याद करने में बहुत सहायक होता है|
अन्य संज्ञानात्मक कौशल हैं, तर्क एवं विवेक, श्रव्य एवं दृश्य प्रसंस्करण, तथा प्रसंस्करण की गति| तर्क एवं विवेक, समस्याओं को सुलझाने और नए विचार उत्पन्न करने में मदद करते हैं| विशेष रूप से छात्रों को कक्षा में सीखते समय जरूरी जानकारियों को हल करने, योजना बनाने, विश्लेषण करने, समझने और वांछित परिणाम तक पहुँचने के लिए तर्क और विवेक की जरूरत होती है|
हमारा मस्तिष्क सुनाई देने वाली जानकारी को समझने के लिए श्रव्य प्रसंस्करण का उपयोग करता है| हम इस जानकारी के प्रसंस्करण के लिए आवाजों को मिलाते हैं, विश्लेषित और विभाजित करते हैं| यह संज्ञानात्मक कौशल कक्षा में शिक्षक की बातें सुनने में और इस मिली हुई जानकारी की व्याख्या करने में छात्रों की मदद करता है|
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, दृश्य प्रसंस्करण छवियों की अच्छी तरह से व्याख्या करने में हमारी मदद करता है| दृश्य प्रसंस्करण में कुशलता हमें अन्य बातों के अलावा डिजाइन बनाने और ग्राफ व तालिकाओं को समझने में सहायक होती है| दृश्य प्रसंस्करण में कमजोरी से हमने जो देखा या पढ़ा, उसे समझने में परेशानी होती है तथा किसी जानकारी के पुनर्स्मरण, निर्देशों का पालन करने, मानचित्रों को समझने और गणित के शाब्दिक प्रश्नों को हल करने में कठिनाई होती है|
प्रसंस्करण की गति अच्छी हो तो हम कार्य जल्दी और सही तरीके से कर पाते हैं और यह गति धीमी हो तो हम स्कूल के काम को पूरा करने में अधिक समय लेते हैं तथा निर्देशों का पालन करने में परेशान हो जाते हैं| विषयवस्तु को अच्छी तरह समझ लेने से प्रसंस्करण की गति में तेजी आती है| यहाँ तक कि खेल भी, यदि अच्छी तरह न समझा जाए तो सिर्फ मजे के लिए भी नहीं खेला जा सकता|
अगर पढ़ाए जा रहे विषयों का छात्रों से अच्छी तरह से परिचय कराया जाए तो कक्षा में सीखने की प्रक्रिया को और बेहतर बनाया जा सकता है| उदाहरण के लिए अगर शुक्रवार को पाठ 5 पढ़ाने की योजना है तो छात्र अगर शुक्रवार से कुछ दिन पहले परिचित हो जाएँ या उस पाठ को घर पर पढ़ लें तो उसे ज्यादा अच्छी तरह समझ सकेंगे| उद्देश्य यह है कि वे पाठ के लिए पहले से ही तैयार रहें|
चूँकि अब हम इन संज्ञानात्मक कौशलों और उनके कार्यों के बारे में कुछ जान रहे हैं तो कक्षा में इनके महत्त्व को समझना और आसान हो जाता है| संज्ञानात्मक कौशल वे मानसिक क्षमताएँ हैं जो छात्रों को अच्छी तरह सीखने योग्य बनने के लिए आवश्यक हैं| स्कूलों में सीखने की प्रक्रिया में छात्रों को पढ़ना, लिखना, सोचना, विश्लेषण करना, याद करना, प्रश्नों को हल करना और अपने विषयों को समझना पड़ता है| इन सारे संज्ञानात्मक कौशलों को अच्छी तरह कार्य करने के लिए एक दूसरे के साथ मिलकर परिपूरक बन जाना चाहिए| ये कौशल शिक्षण के परिणाम की सफलता सुनिश्चित करते हैं| यह जानना भी सहायक होगा कि सीखने में आने वाली ज्यादातर चुनौतियाँ संज्ञानात्मक कौशलों में कमी के कारण आती हैं, अत: यह जानना उचित होगा कि हम अपने भावी नेतृत्वकर्ताओं के विकास के लिए क्या कर रहे हैं? उन्हें एक पोषक वातावरण प्रदान करने के लिए हम कौन से साधन उपलब्ध करा रहे हैं?
स्कूल, छात्रों के संज्ञानात्मक कौशलों को विकसित करने के लिए कई तरह के उपायों और उम्र के अनुसार प्रशिक्षण पर ध्यान देना शुरू कर सकते हैं| शारीरिक गतिविधियाँ और मानसिक व्यायाम का मस्तिष्क के स्वास्थ्य और संज्ञान पर बहुत असर पड़ता है| अन्वेषणों से पता चला है कि व्यायाम के समय उत्सर्जित होने वाले कुछ रसायन (जैसे एंडोमोर्फिन) तंत्रिका-सम्पर्कों और मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करते हैं|
इसके अलावा शिक्षक छात्रों को कला, संगीत और हस्तकला से परिचित करा कर उनकी रचनात्मकता को बढ़ा सकते हैं| बच्चों की उत्सुकता को जगाते हुए उनके मस्तिष्क को उत्तेजित करने वाली गतिविधियों- जैसे जिगसॉ पहेलियां, सुडोकू या वर्ग पहेलियाँ आदि हल करने में उन्हें लगाना, उनकी तर्कशक्ति और विवेक को बहुत प्रभावित करेगा| अपने आसपास के प्राकृतिक संसार के साथ रू-ब-रू होना भी एक अन्य महत्वपूर्ण गतिविधि है| प्रकृति के साथ लयबद्ध होना भी जीवन को स्वाभाविक बनाने में सहायक होता है|
लेखक परिचय:
श्री कमलेश पटेल (दाजी) हार्टफुलनेस इंस्टिट्यूट के अध्यक्ष एवं वैश्विक मार्गदर्शक हैं| वे व्यक्तिगत विकास और रूपांतरण के लिए व्यावहारिक और अनुभवजन्य तरीके प्रस्तुत करते हैं जो सरल, उपयोग में आसान और जीवन के हर क्षेत्र हर आयुवर्ग के लिए उपलब्ध हैं| दाजी प्रेरक वक्ता एवं लेखक हैं और उनकी दो पुस्तकें, ‘द हार्टफुलनेस वे’ तथा ‘नियति का निर्माण’, दोनों ही सर्वाधिक बिक्री वाली पुस्तकें रही हैं|