जागेश्वर धाम से लगभग 4 किलोमीटर दक्षिण में देवदार के वनों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित झाकर सैम मंदिर का क्या है महत्व
झांकर सैम मंदिर,,,,,, महादेव शिव के अवतार सैम देवता को समर्पित यह प्रसिद्ध मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद के जागेश्वर धाम से लगभग 4 किलोमीटर दक्षिण में देवदार के वनों के बीच एक पहाड़ी पर स्थित है। सैम देवता की मां काली नारा राजा निकंन्दर की पुत्री थी । एक बार उसकी कुंभ के मेले में गंगा स्नान की इच्छा हुई। उसने अपने माता पिता और चाचा से कुंभ स्नान की अनुमति मांगी। परंतु किसी ने भी उसे अनुमति प्रदान नहीं की। जब उसने अपने भाई की पत्नी से अनुमति मांगी तो उसने कहा ” नान्ज्यू इतुक लम्ब बाट पैदल जाण भौल निभै ” अर्थात ननद जी इतने लंबे पैदल मार्ग पर अनेक पुरुषों के साथ आप कई दिन रात के सफर पर कैसे जा सकती हैं? कहीं मार्ग में कोई पापा चरण हो गया तो किस मुंह से आप वापस आओगी? राजकुमारी बोली जो वृद्धजन होंगे उन्हें वह बूबू शब्द से और जो बड़े भाई होंगे उन्हें दाज्यू और छोटों को भाई कहकर वह संबोधित करेगी। और राजा निकंदर ने भी उसे एक शर्त पर अनुमति दी कि वह गंगा में डुबकी नहीं लगाएगी बल्कि घुटनों तक के पानी तक ही गंगा में जाएगी । काला नीरा ने पिता की बात को मान लिया और इसी प्रकार छोटी बहू से अनुमति पाकर वह तीर्थ यात्रा को निकल पड़ी । देव कृपा से हरिद्वार पहुंचकर काला नीरा ने एक कुटिया को गंगा के तट बनाया और अगली सुबह गंगा स्नान के लिए गई पिता की आज्ञा अनुसार उसने घुटनों तक ही गंगा में अपने पैरों को डाला इतने सारे साधु संन्यासियों को गंगा में डुबकी लगाता देख काला नीरा का मन भी गंगा में पूरी डुबकी लगाने का हुआ । काला नीरा ने पिता की बात न मानते हुए गंगा में डुबकी लगा दी जैसे ही काला नीरा ने गंगा में डुबकी लगाई सूर्य की पहली किरण थी गंगा नदी पर पढ़ रही थी जैसे ही काला निरा डुबकी लगाकर गंगा के बाहर निकली तो उसे आभास हुआ कि वह गर्भवती हो चुकी है । गर्भवती हो गई। यह जानकर वह सोचने लगी कि किस मुंह से अब वह घर लौटेगी? वह जंगल में भटकने लगी। तभी वह शिव अवतार बाबा गोरखनाथ के आश्रम में जा पहुंची। बाबा समाधि में ध्यान अवस्था में थे। युवती काली नीरा ने बाबा की धूनी जलाई। फूलों को सींच कर फुलवारी निर्मित की। बाबा जब ढाई माह पश्चात ध्यान अवस्था से बाहर आए तो आसपास का माहौल देखकर अत्यंत हर्षित हुए और काली नीरा की दुख भरी गाथा सुनकर बोले यही प्रभु इच्छा है। तुम अब यहीं रहोगी। समय आने पर काली नीरा के गर्भ से हरु देवता का जन्म हुआ। एक बार काला नीरा बाबा के संरक्षण में हरु को छोड़कर गंगा स्नान के लिए चली गई। बाबा ध्यान अवस्था में चले गए। हरु अपनी माता के पीछे गंगा तट को चला गया। वहां लकवा मसान ने काली नीरा पर आक्रमण कर दिया। जब हरू ने यह देखा तो उसने लकवा की गर्दन पर चढ़कर उसकी हत्या कर दी। उधर बाबा समाधि से उठे तो हरु को सामने न पाकर व्यग्र हो गए। उन्होंने सोचा कि शायद किसी हिंसक पशु ने हरु को खा लिया है। इसलिए उन्होंने कुशा घास के तिनके में प्राण डालकर योग शक्ति से उसे हरु का रूप दे दिया। कालांतर में यही दूसरा बालक सैम देवता कहलाया। पुरातन काल में जागेश्वर में नाग वंश का शासन था। नाग परंपरा में यज्ञ को झांकर कहा जाता था। बाद में शिवांश सैम देवता से जुड़ने के कारण यह झाकर सैम कहा जाने लगा। यहां चैत्र वैशाख में देव यात्राएं ढोल नगाड़ों के साथ निकाली जाती है जिसमें देव डांगर धामी में सैम देवता का अवतरण होता है। सैम देवता को बिना मिर्च की दाल और चावल का भोग लगाया जाता है। सैम की मौसी का पुत्र गोलू हंसुलिगढ का राजा था । सैम गोलू और हरु ने मिलकर कुर्मांचल में न्याय पूर्वक शासन किया। इनका काल कुर्मांचल का स्वर्ण युग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि झाकर सैम की पूजा करने से भक्तों को सुख शांति प्राप्त होती है। और मृत्यु के बाद शिव लोक में स्थान मिलता है। यहां समीप के गांव अनडोली के पांडे जी लोग यहां झाकर सैम मंदिर के पुजारी होते हैं । कुमाऊं में इसके अतिरिक्त पिथौरागढ़ जनपद के गंगोलीहाट क्षेत्र अंतर्गत चिटगल गांव में भी झांकर सैम ज्यू मंदिर है। वैसे सैम ज्यू मंदिर कुमाऊं में लगभग बहुत से गांव में हैं। लोग इन्हें ग्राम देवता के रूप में भी पूजते हैं । मुख्य रूप से झांकर सैम मंदिर जागेश्वर एवं गंगोलीहाट के चिंटगल गांव के ही हैं। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल