कन्या पूजन की विधि का क्या है महत्त्व
कन्या पूजन की विधि एवं महत्त्व।,,,,, नवरात्र में अनेक भक्त कन्या पूजन अवश्य करते हैं। कन्या पूजन की कुछ विशेष विधि होती है। सर्वप्रथम कन्या पूजन करने से पहले कन्याओं के पैर दूधया पानी से कर्ता के हाथों से साफ किए जाते हैं। उसके उपरांत कन्याओं के पैर छूकर उन्हें स्वच्छ आसनों पर बैठाया जाता है। कन्याओं के माथे पर अक्षत फूल और कुमकुम का तिलक लगावे। कन्याओं को भोज कराने के बाद उन्हें दक्षिणा दें दान में रुमाल लाल चुनरी फल आदि प्रदान करके उनके चरण छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए। जो भक्त नवरात्रि में कन्या पूजन करता है उस पर मां दुर्गा की विशेष कृपा बरसती है। कन्या पूजन महा अष्टमी तथा दुर्गा नवमी तिथि पर किया जाता है। इस वर्ष सन 2021 में 13 अक्टूबर को अष्टमी तथा 14 अक्टूबर को दुर्गा नवमी है। यदि आप अष्टमी पर कन्या पूजन कर रहे हैं तो मां महागौरी की पूजा करने के बाद कन्या पूजन करें अन्यथा दुर्गा नवमी पर मां सिद्धिदात्री की पूजा करने के बाद कन्या पूजन अवश्य करें। कन्या पूजन के लिए 9 कन्याओं को और एक हनुमान जी को ( कही इसे लंगूर या कहीं भैरव) भी कहते हैं। अगर किसी कारणवश नौ कन्याओं का पूजन करने में असमर्थ हैं तो 5 कन्याओं में भी पूजन किया जा सकता है। जो कन्याएं बची है उनका भोजन गौमाता को खिलाना चाहिए। 9 कन्याओं और भैरव के पैर धोकर उन हैआसन पर बैठाया जाता है । कन्याओं एवं भैरव को तिलक लगाकर आरती कीजिए। फिर भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा दीजिए तदुपरांत सम्मान पूर्वक सभी को विदा कीजिए। एक महत्वपूर्ण बात पाठकों को बताना चाहूंगा कन्याओं की आयु 2 वर्ष से 10 वर्ष के भीतर होनी चाहिए। नौ कन्याओं और एक बालक भी होना अनिवार्य है। जिसे हनुमान जी का रूप माना गया है। कभी-कभी ऐसी परिस्थिति होती है कन्या 9 से अधिक होती हैं। यदि 9 से अधिक कन्या है तो कोई आपत्ति नहीं उनका भी स्वागत पूर्ण रूप से करना चाहिए। भोजन उपरांत उन्हें भी दक्षिणा देनी चाहिए। 2 वर्ष की कन्या का पूजन करने से घर में सुख और संपत्ति होती है और दरिद्रता दूर होती है। 3 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का रूप मानी गई है त्रिमूर्ति के पूजन से घर में धन-धान्य की भरमार रहती है और परिवार में सुख और समृद्धि बनी रहती है। 4 वर्ष की कन्या को कल्याणी माना गया है। इसकी पूजा से परिवार का कल्याण होता है। 5 वर्ष की कन्या रोहिणी होती है। रोहिणी का पूजन करने से परिवार रोग मुक्त रहता है। 6 वर्ष की कन्या को कालिका का रूप माना गया है। कालिका के पूजन से विजय विद्या राजयोग मिलता है। 7 वर्ष की कन्या चंडिका होती है। चंडिका के पूजन से घर में ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। 8 वर्ष की कन्या शांभवी कहलाती है। शांभवी के पूजन से वाद विवाद में विजयमिलती है। 9 वर्ष की कन्या माता दुर्गा का रूप होती है। इसका पूजन करने से शत्रु का नाश हो जाता है एवं असंभव कार्य भी पूर्ण हो जाते हैं। अंत में 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। सुभद्रा आपने भक्तों के सारे मनोरथ पूर्ण करती है। एक महत्वपूर्ण बात पाठकों से और करना चाहूंगा कन्या का सम्मान मात्र 9 दिन ही नहीं अपितु जीवन भर करें। जहां नवरात्र के दौरान भारत में कन्याओं को देवी का रूप मानकर पूजा जाता है। लेकिन कुछ लोग नवरात्रि के बाद कन्या को भूल जाते हैं। हमारे देश में अत्यधिक रूप में कन्या भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। कन्या नहीं होगी तो कन्या पूजन कहां से करोगे। एक बार अपने मन से पूछिए क्या आप ऐसा करके देवी मां के इन रूपों का अपमान नहीं कर रहे? सर्वप्रथम हमें कन्या और महिलाओं के प्रति सोच बदलनी होगी। कन्याओं और महिलाओं का सम्मान करें उनका आदर करें। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने का प्रयास करें। यही सबसे बड़ा कन्या पूजन होगा। हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में भी बताया गया है कि जिस घर में महिलाओं का सम्मान होता है वहां खुद ईश्वर वास करते हैं। लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ( उत्तराखंड)