संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है पुत्रदा एकादशी व्रत का क्या है विशेष महत्व

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संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है पुत्रदा एकादशी व्रत।,,,,,,,,, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। संतान की कामना चाहने वाले व्यक्ति इस दिन व्रत अवश्य रखते हैं। तथा भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी जी की पूजा आराधना करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के एकादशी तिथि को पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस बार सन 2021 में बुधवार दिनांक 18 अगस्त को पुत्रदा एकादशी मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि पुत्रदा एकादशी पर विष्णु भगवान की पूजा करने से संतान प्राप्ति की इच्छा अवश्य ही पूर्ण होती है। इस दिन निर्जला व्रत भी रख सकते हैं। जो व्यक्ति निर्जला व्रत रखने में असमर्थ हो वह फलाहारी व्रत भी रख सकता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जो व्यक्ति पुत्रदा एकादशी व्रत रखता है संतान प्राप्ति के अतिरिक्त उसे वाजपेई यज्ञ के समान फल मिलता है। सिर्फ इतना ही नहीं यह व्रत रखने वाले भक्तों की संतान को दीर्घायु का वरदान भी प्राप्त होता है। इस दिन एकादशी का पाठ करना तथा श्रवण करना बहुत ही फलदाई माना गया है। ऐसा भी कहां गया है कि जो भक्त इस दिन कथा का पाठ करता है अथवा श्रवण करता है उसे गोदान के समान फल मिलता है। अब मैं प्रिय पाठकों एवं प्रिय भक्तों को श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा के बारे में बताना चाहूंगा जो कि भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कही थी। धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान सावन शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका महत्व कृपा करके कहिए। भगवान श्री कृष्ण कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वाजपेई यज्ञ का फल मिलता है। द्वापर युग के प्रारंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी। जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था। परंतु पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दुखदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। वृद्धावस्था आती देख कर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहां हे प्रजा जनों! ना मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ली है। प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा हूं। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्म युक्त राज्य करते हुए भी मेरे पुत्र नहीं है। वह मैं अत्यंत दुख पा रहा हूं। इसका क्या कारण है? राजा महीजित की इस बात को विचार ने के लिए मंत्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते फिरते रहे। एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता बड़े तपस्वी परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार जितेंद्रिय सनातन धर्म के गूढ तत्वों को जानने वाले समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था। सब ने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? निसंदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों की भलाई के लिए हुआ है। इसमें संदेह मत करो। लोमस ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले हे महर्षि! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अतः आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्र हीन होने के कारण दुखी हैं। आगे उन्होंने कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अतः उसके दुख से हम भी दुखी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा। क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बताएं। यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद कर लिए और राजा के पूर्व जन्म का वृतांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्यान्ह के समय वह जबकि 2 दिन से भूखा प्यासा था एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई गाय जल पी रही थी। राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा। इसीलिए राजा को यह दुख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गाय को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दुख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है।अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए आप ऐसा उपाय बताइए। लोमस मुनि कहने लगे कि सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं। तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा। साथ ही राजा को पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी। लोमस ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई। और जब सावन शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञा अनुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया। इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। इस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव काल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अतः संतान सुख की इच्छा रखने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इसके महत्व को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोग कर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है। , अब यदि बात करें मुहूर्त की तो इस बार 2021 में बुधवार दिनांक 18 अगस्त को पुत्रदा एकादशी है।

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