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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड

नैनीताल जिले के रामगढ़, धारी, भीमताल व ओखलकांडा ब्लाॅक में सेब, आडू, खुमानी, पुलम आदि का बहुतायत से उत्पादन होता है। प्रदेश में उत्पादित होने वाले सेब, आडू में 60 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल नैनीताल जिले की है। जिले में आठ हजार से अधिक काश्तकार फलोत्पादन से जुड़े हैं। बेमौसम बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि से पर्वतीय क्षेत्र के काश्तकारों को मायूसी हाथ लगी है। उद्यान, कृषि व राजस्व विभाग के सामूहिक सर्वेक्षण में फलोत्पादन को 40 से 50 प्रतिशत तक क्षति होने की बात सामने आई है। ओलावृष्टि ने सब्जियों को भी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में ओलावृष्टि से हुई क्षति का असर काश्तकारों की आजीविका पर पड़ेगा। पिछले साल मानसून की विदाई के बाद पोस्ट मानसून काल में बारिश में कमी देखी गई थी। सर्दियों में भी सामान्य से दो तिहाई तक कम बारिश हुई। कृषि सचिव ने अप्रैल पहले सप्ताह में कम बारिश की वजह से फलों, सब्जियों व रबी की फसल को हुए नुकसान का सामूहिक सर्वे करने के निर्देश दिए। शुरुआती तौर पर नैनीताल जिले में सेब, आडू, खुमानी, पुलम को 50 प्रतिशत तक नुकसान होने की बात सामने आई है। सीधे तौर पर इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। इसकी वजह से फल उत्पादन पर आश्रित रहने वाले काश्तकारों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। सर्वे में रबी की फसल को नुकसान नहीं मिला। उद्यान विभाग के मुताबिक सब्जी व फल उत्पादन से जुड़े 15 हजार काश्तकारों ने बीमा कराया है। इसमें सेब व आलू उत्पादक सबसे अधिक हैं। नियमानुसान काश्तकारों को ओलावृष्टि या अतिवृष्टि होने के 72 घंटे के भीतर बीमा कंपनी लिखित सूचना देनी होती है। निरीक्षण के बाद बीमा का क्लेम मिलता है। ओलों की मार से काफी फल गिर गया। सेब, आडू व खुमानी का दाना चोटिल हुआ है। इससे फलों में दाग बन गए। इससे फलों का आकार छोटा होगा। चोटिल फलों के ग्रेडिंग में फेल होने से कीमत काफी कम मिलेगी। नैनीताल जिले में रामगढ़ क्षेत्र में आड़ू का बहुत उत्पादन होता है। इसे नैनिताल जिले का फ्रूट बास्केट भी कहा जाता है।रामगढ़ और मुक्तेश्वर के निचले इलाकों में आड़ू काफी प्रसिद्ध है।तल्ला रामगढ के आड़ू की मिठास तो मुम्बई की मंडी में हर साल रहती है।इस फल पट्टी में सेब,आडू, पुलम खुमानी,अखरोट पैदावार की जाती है और उसमें सबसे अधिक उत्पादन आडू का होता है। बीते साल आडु का काफी अच्छा उत्पादन हुआ था। इस साल जनवरी-फरवरी में हुई अच्छी बर्फबारी के बाद काश्तकारों को उम्मीद थी इसका उत्पादन काफी अच्छा होगा।जिले में तल्ला रामगढ़ का आडू पूरे भारत में प्रसिद्ध है लेकिन भारी ओलावृष्टि ने काश्तकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।पिछले वर्ष आड़ू का उत्पादन 26428 मीट्रिक टन हुआ था जो करीब 1824 हेक्टियर में होता है जबकि पुलम का उत्पादन 6294 मीट्रिक टन हुआ जो 586 हेक्टियर में किया जाता है।हालांकि अब मंडी समिति काश्तकारों आड़ू को दिल्ली,पंजाब और मुम्बई की मंडियों में भेज रहे था। लेकिन उसके बाद भी काश्तकारों को उचित दाम नही मिल पा रहा है। आडू यानी पीच सेब जैसा दिखता है लेकिन ये स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक होता है।आड़ू में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन,मिनरल्स और फाइबर की प्रचुर मात्रा होती है।अगर आप हर रोज खाने में एक आड़ू खाये तो इससे आपका वजन कंट्रोल में रहेगा।इसमे विटामिन सी बहुत होता है जो एन्टी ऑक्सीडेंट का काम करता है और शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।इसके अलावा आड़ू में पोटैशियम भी पाया जाता है जो किडनी के रोगों के लिए रामबाण है।ऐसे खाने से आंखों की रोशनी के लिए काफी फायदेमंद होता है। सीधे तौर पर इसका असर उत्पादन पर पड़ेगा। इसकी वजह से फल उत्पादन पर आश्रित रहने वाले काश्तकारों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। सर्वे में रबी की फसल को नुकसान नहीं मिला।जल संरक्षण व पर्यावरण संतुलन स्थापित करने के साथ ग्रामीण आंचल में उद्यमियों को प्रोत्साहन तथा वन आधारित लघु व कुटीर उद्योग की अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जा सकता है।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय है.

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