“वन,जल एवं जलवायु परिवर्तन” विषय पर एक वेबीनार का किया गया आयोजन
सोसाइटी फाॅर माउन्टेन डेवलपमेंट एण्ड कन्जरवेशन (एस0एम0डी0सी0) एवं कुमाऊँ विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में “वन, जल एवं जलवायु परिवर्तन” विषय पर एक वेबीनार का आयोजन किया गया। संस्था के अध्यक्ष एवं वेबीनार के संयोजक प्रोफेसर ललित तिवारी द्वारा बताया गया कि एस0एम0डी0सी0, हिमालयी क्षेत्रों में वन, जल संरक्षण एवं आजीविका के क्षेत्र में सक्रिय संस्था है। उक्त वेबीनार में मुख्य वक्ता प्रोफेसर जी0एस0 रावत पूर्व निदेशक वन्य जीव संस्थान देहरादून, डा0 आर0एस0 रावल, निदेशक, गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा एवं डा0 जी0सी0एस0 नेगी, वरिष्ठ वैज्ञानिक गोवन्दि बल्लभ पंत राष्ट्रीय पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल, अल्मोड़ा से थे।
प्रोफेसर जी0एस0 रावत द्वारा हिमालयी क्षेत्रों के वनों एवं हाइड्रोलोजी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होनें बताया कि वनों द्वारा विभिन्न प्रकार की इकोसिस्टम सर्विसेज दी जाती है एवं इन सेवाओं की निरंतरता के लिए पारिस्थितिक तंत्र का स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक है तथा किसी भी पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति को मापनें के तीन मुख्य पैमाने तंत्र का आकार, उसका कार्य करने का ढंग एवं उसकी निरन्तरता है।
डा0 रावल द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में निरन्तर घट रहे जल स्रोतों के विषय में बताया कि प्रदेश में लगभग 1110 माइक्रोवाटरसेड है जिनमें लगभग 260,000 स्रोत उपलब्ध है जोकि, राज्य में 90 प्रतिशत तक पेयजल उपलब्ध कराते हैं। वर्तमान में इनमें से लगभग आधे जल स्रोत सुख चुके है अथवा सूखने की कगार पर है, उन्होनें स्पिंगसेड मेनेजमैंट द्वारा हाट कालिका जलागम एवं गोरांग घाटी जलागम क्षेत्र में जल स्रोतों में 16 से 18 प्रतिशत तक की वृद्वि बतायी।
संस्थान के वरिष्ट वैज्ञानिक डा0 जी0सी0एस0 नेगी द्वारा हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाले दो वनों की हाइड्रोलोजी पर विचार व्यक्त किये। डा0 नेगी द्वारा बताया गया कि वर्तमान जलवायु परिवर्तन के दौर में अधिक से अधिक क्षेत्र में चैड़ी पत्तियों वाले वृक्षों को लगाया जाना चाहिए क्योंकि ये वृक्ष अधिकतम जल एवं मृदा संरक्षण करने में संक्षम हैं उन्होंने जलवायु परिवर्तन द्वारा विभिन्न प्रजातियों की मृतुजैविकी में हो रहे परिवर्तन के विषय में भी जानकारी दी।
उक्त वेबीनार के संयोजक प्रोफेसर ललित तिवारी ने बताया कि वेबीनार में 100 प्रतिभागियों ने प्रतिभाग किया। उन्होंने बताया कि उक्त वेबीनार से यह निष्र्कष निकाला जा सकता है कि हिमालयी क्षेत्र क¢ वन एवं जल स्रोत जलवायु परिवर्तन क¢ कारण सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने हेतु अधिक से अधिक क्षेत्र में चैड़ी पत्ती वाले वनों का रोपण अधिक से अधिक करना चाहिए एव जल संरक्षण हेतु स्थानीय लोगो को साथ में लेकर जल स्रोतो के प्रबन्ध का कार्य करना चाहिए।
इस वेबीनार को सफल बनानें में संस्था की सचिव डा0 श्रुति साह, डा0 आशीष तिवारी, डा0 भावना तिवारी कर्नाटक, डा0 रूचिरा बिष्ट, डा0 नीता आर्या, डा0 बीना तिवारी, डा0 नन्दन सिंह महरा, डा0 कृष्ण कुमार टम्टा द्वारा सहयोग किया गया।