मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती विवाह पंचमी के रूप में,आइये जानते हैं क्या है शुभ मुहूर्त

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विवाह पंचमी पर्व,,,,,,,, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को विवाह पंचमी मनाई जाती है। विवाह पंचमी पुरुषोत्तम भगवान श्री राम जी वह जगत जननी सीता माता के शुभ विवाह की वर्षगांठ के रूप में मनाई जाती है। हमारे सनातन धर्म में विवाह पंचमी का विशेष महत्व है। परंतु इतना विशेष महत्व होने के बाद भी इस दिन कई स्थानों में विवाह नहीं होते हैं। विवाह नहीं किए जाते हैं। इसका कारण यह है कि माता सीता के दुखद विवाह जीवन को देखते हुए इस दिन विवाह निषेध माना जाता है। मिथिलांचल और नेपाल में इस दिन विवाह नहीं किए जाते। इस दिन त्यौहार मनाया जाता है। मिथिलांचल एवं नेपाल में यह त्यौहार उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है। शुभ मुहूर्त-,,,,,,,, विवाह पंचमी पूजा दिनांक 8 दिसंबर 2021 दिन बुधवार को होगी। पंचमी तिथि दिनांक 7 दिसंबर मंगलवार रात्रि 11:40 से प्रारंभ होगी और पंचमी तिथि दिनांक 8 दिसंबर 2021 दिन बुधवार रात्रि 9:25 तक रहेगी। अत: यह पावन पर्व दिनांक 8 दिसंबर को मनाया जाएगा। इस दिन श्रवण नामक नक्षत्र 39 घड़ी 14 पल तक है तदुपरांत धनिष्ठा नामक नक्षत्र उदय होगा। ध्रुव नामक योग 15 घड़ी 29 पल तक है। एवं बव नामक करण 9 घड़ी 7 पल तक है। इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण मकर राशि में विराजमान रहेंगे। अब प्रिय पाठकों को विवाह पंचमी की पूजा विधि की जानकारी देना चाहूंगा। विवाह पंचमी पूजा विधि-,,,,,,,,, विवाह पंचमी के पावन पर्व पर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करें साफ वस्त्र धारण करें तदुपरांत अक्षत पुष्प एवं गंगाजल सहित भगवान श्री राम जी के विवाह का संकल्प लें फिर पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी व सीता माता की प्रतिमा स्थापित करें। मूर्ति स्थापित करने के उपरांत भगवान श्रीराम को पीत वस्त्र अर्थात पीले वस्त्र एवं माता सीता को रक्त वस्त्र अर्थात लाल वस्त्र अर्पित करें इसके उपरांत ओम जानकी वल्लभाय नम: इस मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें संभव हो तो एक सहस्त्र अर्थात एक हजार जप करें और भगवान श्री राम एवं माता सीता का गठबंधन करें। तदुपरांत भगवान श्री राम जानकी माता की आरती करें। तीन बार प्रदक्षिणा करने के बाद गांठ लगे वस्त्र को अपने पास संभाल कर रखें। इसे रखने से जिन भक्तों के विवाह में अडचनें आ रही हूं वह पूर्णतया समाप्त हो जाएगी और जिन भक्तों का विवाह हो चुका है उनका वैवाहिक जीवन हमेशा सुखद बना रहेगा। विवाह पंचमी की कथा, ,,,,,,, हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों व पुराणों के अनुसार भगवान श्री राम भगवान विष्णु के रूप में तथा सीता माता लक्ष्मी के रूप में पैदा हुए थे। अयोध्या के राजा दशरथ के घर भगवान श्री राम और जनकपुरी के राजा जनक की पुत्री के रूप में माता सीता पैदा हुई थी। ऐसा माना जाता है कि राजा जनक के राज्य में एक बार बहुत समय तक वर्षा नहीं हुई। बहुत समय बाद एक आकाशवाणी हुई कि यदि राजा जनक स्वयं हलचलायें तो वर्षा होगी। राजा जनक ने ऐसा ही किया हल चलाते-चलाते भूमि में हाल का फल एक घड़े से टकरा गया घड़े में से एक सुंदर कन्या निकली।हल के फल से जो भूमि में खुदी हुई लकीर बनती है उसे सिया कहते हैं इसलिए उस कन्या का नाम सिया या सीता रखा गया। यह और कोई नहीं माता सीता ही थी। बहुत समय बाद एक बार माता सीता ने मंदिर में रखे विशाल शिव धनुष को यूं ही उठा लिया था। इस धनुष को उस समय में भगवान परशुराम जी के अतिरिक्त कोई नहीं उठा सकता था। तब से राजा जनक ने यह घोषणा कर डाली की जो कोई भी भगवान शिव जी के इस धनुष को उठाएगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा। स्वयंवर में महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्री राम लक्ष्मण भी दर्शक के रूप में बैठे थे। सीता माता के स्वयंवर में कई राजाओं ने प्रयास किया परंतु कोई भी उस धनुष को उठाना तो दूर धनुष को हिला तक न सका। तदोपरांत हताश होकर राजा जनक ने करुणा भरे शब्दों में कहा कि मेरी सीता के लिए कोई योग्य नहीं है। तब राजा जनक को देखकर महर्षि विश्वामित्र ने भगवान श्री राम जी से इस स्वयंवर में प्रतिभाग करने को कहा। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान श्रीराम ने धनुष उठाया और उस पर प्रत्यंचा चढ़ाने लगे। प्रत्यंचा चढ़ाते समय धनुष टूट गया भगवान श्रीराम को देख माता सीता भी उन पर मोहित हो गई। और उन्होंने वरमाला भगवान श्री राम के गले में डाल दी इस प्रकार भव्य आयोजन में भगवान श्री राम और सीता का विवाह संपन्न हुआ। भौगोलिक रूप से सीता मिथिला की बेटी कहीं जाती है। इसलिए मिथिला वासी उनके कष्टों के लिए बेहद संवेदनशील हैं। 14 वर्ष वनवास के बावजूद गर्भवती सीता का परित्याग किए जाने के बाद राजकुमारी सीता को महारानी सीता का सुख नहीं मिला। यही वजह है कि विवाह पंचमी के दिन लोग बेटियों की शादी नहीं करते हैं। यह आशंका रहती है कि कहीं सीता की तरह ही उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन दुख में न हो। कई स्थानों में विवाह पंचमी पर होने वाली रामकथा का अंत राम और सीता के विवाह पर ही हो जाता है। दोनों के जीवन के। आगे की कथा दुख और कष्ट से भरी है। इसलिए इस शुभ दिन का अंत उनके विवाह की सुखद स्थिति पर ही किया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार विवाह पंचमी का बहुत महत्व है क्योंकि इसे एक पवित्र दिन माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री राम जो कि भगवान विष्णु के अवतार हैं उन्होंने नेपाल में जनकपुर धाम की यात्रा को और देवी सीता के स्वयंवर में भगवान शिव के धनुष को तोड़ दिया और देवी सीता से विवाह किया। इस दिव्य विवाह समारोह की याद में भारत और अन्य देशों के कई हिस्सों से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री यहां पहुंचते हैं। और भव्य समारोह का हिस्सा बनते हैं। विवाह पंचमी उत्सव संपूर्ण भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में राम सीता मंदिरों में होता है। लेकिन भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या और नेपाल के जनकपुर में देवी सीता की जन्म भूमि पर सबसे पवित्र और भव्य समारोह आयोजित किए जाते हैं। इस सौभाग्यशाली दिन पर मंदिरों को दीपों और रोशनी से सजाया जाता है। यह एक दिव्य विवाह अनुष्ठान होता है। जहां मूर्तियों या देवताओं की मूर्तियों को गहनों और कपड़ों के साथ खूबसूरती से सजाया जाता है और यह सामाजिक समारोह व्यापक रूप से राम विवाह उत्सव के रूप में लोकप्रिय है। भक्त दिव्य मंत्रों का जप करते हैं और देवताओं की स्तुति मैं भक्तमय और पवित्र गीत भजन गाते हैं। रामलीला नामक एक कलात्मक प्रदर्शन विभिन्न स्थानों पर राम सीता विवाह कहानी का चित्रण करता है। तदुपरांत पंडित और पुजारी विवाह पंचमी की पूजा करते हैं। भगवान राम की आरती के साथ उत्सव का समापन किया जाता है।

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