दादी (इंतजार अपनों का) पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड की एक दादी की मार्मिक कहानी

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साशा जॉय एंड पीस एनजीओ के तहत “दादी” इंतजार अपनों का शॉर्ट फिल्म लोगों को दिखाई गई

उत्तराखंड के तारकेश्वर की सच्ची घटना पर आधारित है “दादी” इंतजार अपनों का शॉर्ट फिल्म

दादी (इंतजार अपनों का) पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड की एक दादी की मार्मिक कहानी

उत्तराखंड के पलायन का दर्द बयां करती एक लघु फिल्म “दादी” इंतजार अपनों का..

देहरादून – 15 मार्च 2024- साशा एनजीओ के शुभारंभ के अवसर पर “दादी” इंतजार अपनों का शॉर्ट फिल्म का प्रीमियर आज संस्कृति विभाग के ऑडिटोरियम में दिखाई गई। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं उत्तराखंड के कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुतियां भी दी गई। कार्यक्रम के अतिथियों में पद्मश्री डॉक्टर प्रीतम भारतवान जी, पद्मश्री डॉक्टर सी के एस संजय जी, श्रीमती मधु भट्ट जी उपाध्यक्ष संस्कृति कला साहित्य विभाग उत्तराखंड, श्रीमती कुसुम कंडवाल जी अध्यक्ष महिला आयोग उत्तराखंड, वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डॉक्टर महेश कुरियाल जी, डॉक्टर जे एन नौटियाल जी उपाध्यक्ष भारतीय चिकित्सा परिषद, डॉ आर सी सती जी प्राचार्य उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, प्रोफेसर अनीता रावत जी निदेशक सेंटर ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी उत्तराखंड, रेशमा शाह जी लोक गायिका एवं कार्यक्रम के मुख्य सहयोगी आरोग्य मेडिसिटी के एमडी डॉ महेंद्र राणा आदि मौजूद रहे।

यह फिल्म उत्तराखंड के तारकेश्वर की सच्ची घटना पर आधारित है, इस फिल्म की कहानी को कृष्णा बगोट द्वारा लिखा गया है एवं उन्हीं के द्वारा निर्देशन भी किया गया है। इस फिल्म की शूटिंग उत्तरकाशी एवं उत्तराखंड के अन्य जगहों पर किया गया है। फिल्म के अन्य कलाकारों में अक्की राजपूत, देव रावत, करण, डॉक्टर महेंद्र राणा, यशोधर प्रसाद डबराल, दीपक देव सागर, सपना पांडे, रितिका पायल राणा, संगीता बहुगुणा, अभिषेक रावत , सूरज आदि लोगों ने अभिनय किया है एवं अपना सहयोग दिया है।

इस फिल्म की कहानी में यह दिखाया गया है कि किस तरह से उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र पलायन के वजह से खाली हो चुके हैं। कहानी में एक परिवार अपने गांव को बरसों पहले छोड़कर विदेश में नौकरी करने चला जाता है एवं वह अपने गांव में अपने माता-पिता को अकेला छोड़ देता है। कई दशक बीत जाने के बाद बूढी दादी का पोता विदेश से उत्तराखंड घूमने आता है, तब तारकेश्वर मंदिर में देवता पोते को उसके घर जाने का इशारा देते हैं, तब पोता अपने गांव जाता है और वहां खंडहर हो चुके घर पहुंच कर वह देखता है कि उसकी दादी जो गांव वालों के नजर में कई दशक पहले मर चुकी थी अपने परिवार के लोगों का घर में बैठ इंतजार कर रही थी। जैसे ही पोता अपने दादी के पास पहुंचता है और दादी पोते को गले लगाती है तभी बूढी दादी पूर्ण रूप से कंकाल में तब्दील होकर जमीन पर भरभरा कर गिर जाती है और यहीं पर यह फिल्म समाप्त हो जाती है।

साशा जॉय एंड पीस एनजीओ के इस लॉन्च कार्यक्रम से उत्तराखंड की गतिविधियों का शुभारंभ हो चुका है। यह एनजीओ उत्तराखंड के दूर दराज क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधा को और बेहतर तरीके से लोगों तक पहुंचाएगी। वहीं पर्यावरण, चाइल्ड एजुकेशन, सोशल अवेयरनेस, स्किल डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में काम करेगी। साशा जॉय एंड पीस एनजीओ के इस लॉन्च कार्यक्रम में प्रेसिडेंट तनीषा त्रेहन, जनरल सेक्रेटरी डॉक्टर महेंद्र राणा, स्टेट कोऑर्डिनेटर दिगंबर रावत, ट्रेजरार सपना पांडे आदि मौजूद रहे। दादी इंतजार अपनों का शॉर्ट फिल्म के टीएम की ओर से फिल्म लेखक एवं डायरेक्टर कृष्णा बगोट, फिल्म प्रोड्यूसर रितिका पायल राणा, प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर कुलदीप पुंडीर एवं कैलाश कंडवाल एवं अन्य कलाकार मौजूद रहे।

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