महत्वपूर्ण खबर -क्यों करते हैं शीतला अष्टमी पर बासी भोजन ? आइए जानते हैं

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क्यों करते हैं शीतला अष्टमी पर बासी भोजन? आइए जानते हैं।,,,,,, हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक वर्ष होली के आठवें दिन अर्थात चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला अष्टमी के रूप में मनाया जाता है। शीतला का अर्थ है ठंडा अर्थात इस दिन देवी माता को ठंडा भोजन का भोग अर्थात बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और प्रसाद के रूप में भी बासी भोजन का प्रसाद बनता है जिसे बसौड़ा भी कहते हैं। शीतला अष्टमी के लिए अष्टमी से 1 दिन पहले शाम को अर्थात सप्तमी तिथि के शाम को भोजन बनाकर तैयार किया जाता है और शीतला अष्टमी पर माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। और स्वयं भी प्रसाद के रूप में बासी भोजन किया जाता है। आज पाठकों को बताना चाहूंगा कि शीतला अष्टमी पर क्यों लगाते हैं बासी भोजन का भोग? और क्या है शीतला अष्टमी का महत्व? शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि।
शीतला अष्टमी का महत्व।, ,,,,,,,,,, ,,, शीतला अष्टमी से ग्रीष्म काल का आरंभ हो जाता है। और मौसम बहुत तेजी से गर्म होने लगता है। शीतला माता के स्वरूप को ठंडक अर्थात शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता है। इसके साथ ही माता शीतला का व्रत करने से चेचक खसरा आंखों के रोग आदि अनेक विकार ठीक होते हैं। अर्थात यह व्रत रोगों से मुक्ति दिला कर आरोग्यता प्रदान करता है।
क्यों किया जाता है बासी भोजन?, ,,,,,,,,,, शीतला अष्टमी पर्व पर मां शीतला देवी को मुख्य रूप से दही रबड़ी चावल के आटे का हलवा पूरी आदि का भोग लगाया जाता है। ध्यान रहे भोग एवं प्रसाद सामग्री 1 दिन पूर्व सप्तमी के शाम को तैयार करके रख दिया जाता है। अष्टमी तिथि को घर में चूल्हा तक नहीं जलाया जाता है माता शीतला को ठंडी चीजों का भोग लगाकर परिवार के सभी सदस्य ठंडे भोजन को ग्रहण करते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि शीतला माता को ठंडा भोजन और शीतल जल प्रिय है। शीतला अष्टमी पर शीतल जल से ही स्नान किया जाता है इस बात का भी विशेष ध्यान रखें। शीतला अष्टमी पर बासी खाना खाने के पीछे यह तर्क भी है कि इस दिन के बाद से वातावरण में गर्मी बढ़ने लगती है। जिससे इस दिन पर ही बासी भोजन करने के बाद रात का रखा हुआ भोजन करने की मनाही होती है।
पूजा विधि, ,,,,,,,,,, शीतला अष्टमी के दिन सर्वप्रथम प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शीतल जल से स्नान आदि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प करें। एक थाली में भोग का सभी सामान दही पुआ रबड़ी चावल के आटे का हलवा मीठे चावल की खीर जो कि 1 दिन पूर्व तैयार की हुई है को पूजा घर में स्थापित करें पूजा की थाली में आटे के बना दीपक आटे से बना दीपक जिसे रोली और कुमकुम से आकर्षित बनाया जाता है वस्त्र हल्दी सिक्के महेदी रोली कुमकुम अक्षत आदि पूजा की सभी सामग्री रखें। यह समस्त सामग्री रखने के साथ एक लोटा शीतल जल भी भरकर रखें। तदुपरांत माता शीतला की पूजा आरंभ करें मां शीतला के समक्ष दीप प्रज्वलित करें। रोली और हल्दी से माता का तिलक करें मां शीतला को महेदी वस्त्र आदि सभी वस्तुएं अर्पित कर दें। तदुपरांत माता को शीतल जल और भोग का सामान अर्पित करें। पूजा के पश्चात बचे हुए जल को सभी सदस्यों को बांटे और उन्हें आंखों में लगाने को कहें इससे नेत्र विकार में लाभ होता है। बाकी के शेष जल को घर में छिड़क दें इससे किसी भी प्रकार की व्याधि घर में प्रवेश नहीं कर पाएगी।
शीतला अष्टमी व्रत कथा, ,,,,,,,,,, माता शीतला की व्रत कथा के अनुसार एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में बुजुर्ग दंपति के दो बेटे और दो बहुए थी। दोनों बहूओं की एक एक संतान थी। घर में सभी मिलजुल कर प्रेम पूर्वक रहते थे। तभी कुछ दिनों में शीतला अष्टमी का पर्व आया। दोनों बहूओं ने व्रत के विधान के अनुसार 1 दिन पूर्व ही बसओड़ा अर्थात बासी भोजन शीतला माता के भोग के लिए तैयार कर लिया। परंतु दोनों बहू के मन में विचार आया कि यदि हम ठंडा बासी भोजन लंगी तो बीमार होंगी बेटे भी अभी छोटे हैं इस विचार के कारण दोनों बहू ने चोरी-छिपे पशु के दाने तैयार करने के बर्तन में गुपचुप दो बाटी तैयार कर ली। सास बहू शीतला की पूजा करके आई और शीतला माता की कथा सुनी। तत्पश्चात सास शीतला माता के भजन करने बैठ गई। परंतु दोनों बहुएं बच्चे रोने का बहाना बनाकर घर आ गई। दाने के बर्तन से गरम-गरम रोटला निकाला चूरमा किया और पेट भर कर खाना खाया। सास ने घर आने पर बहू से भोजन करने के लिए कहा। बहूओं ने ठंडा बासी भोजन करने का दिखावा करके घर के काम में लग गई। सास ने कहा ” बच्चे कब से सो रहे हैं उन्हें जगा कर भोजन करा लो।” बहू ने जैसे ही अपने बेटों को जगाने गई तो उन्हें मृत पाया। ऐसा बहूओं की करतूतों के फलस्वरूप शीतला माता के प्रकोप के कारण हुआ था। बहुएं विवश हो गई और सास ने घटना जानने के बाद बहूओं को खूब डांटा। सास बोली कि तुम दोनों ने शीतला माता की अवहेलना की है। इसलिए घर से निकल जाओ और बेटों को जिंदा स्वस्थ लेकर ही घर में पैर रखना। अपने मृत बेटों को टोकरे में सुला कर दोनों बहुएं घर से निकली। जाते-जाते रास्ते में एक जीण वृक्ष आया यह वृक्ष खेजड़ी का वृक्ष था। इस वृक्ष के नीचे ओरी शीतला दोनों बहने बैठी थी। दोनों के बालों में विपुल प्रमाण में जुए रैंग रहे थे । बहू को थकान हो गई थी इसलिए दोनों ओरी और शीतला के पास आकर बैठ गई उन दोनों ने शीतला और ओरी के बालों से खूब सारी जूं निकाली जूंओं के समाप्त होने पर ओरी और शीतला ने अपने मस्तक में शीतलता का अनुभव किया और कहां तुम दोनों ने हमारे मस्तक को शीतल किया है वैसे ही तुम्हें पेट की शांति मिले। दोनों बहुएं एक साथ बोली कि पेट का दिया हुआ ही लेकर हम मारी मारी भटक रही हैं। परंतु शीतला माता के दर्शन हुए ही नहीं शीतला माता ने कहा कि तुम दोनों पापिनी हो दुष्ट हो दुराचारी नी हो तुम्हारा तो मुंह देखने भी योग्य नहीं है। शीतला अष्टमी के दिन ठंडा भोजन करने के बदले तुम दोनों ने गर्म भोजन कर लिया था। यह सुनते ही बहू ने शीतला माता जी को पहचान लिया। दोनों देवरानी जेठानी ने दोनों माताओं का वंदन किया। गिड़गिड़ा ते हुए कहा कि हम तो भोली-भाली हैं। और अनजाने में हमने ताजा गर्म खाना खा लिया था। आप के प्रभाव को हम जानती नहीं थी। माता आप हम दोनों को क्षमा करें। हम पुनः ऐसा दुष्कर्म नहीं करेंगे। तत्पश्चात भरे वचनों को सुनकर माताएं प्रसन्न हुई। शीतला माता ने मृतक बालकों को जीवित कर दिया। बहुए तब बच्चों के साथ पुनः गांव लौट आई। गांव के लोगों ने जाना कि दोनों बहुओं को शीतला माता के साक्षात दर्शन हुए। दोनों का धूमधाम से स्वागत करके गांव में प्रवेश करवाया गया। बहू ने कहा हम गांव में शीतला माता के मंदिर का निर्माण करवाएंगे। चैत्र मास में शीतला अष्टमी के दिन मात्र ठंडा खाना ही खाएंगे। शीतला माता ने बहू पर जैसी अपनी दृष्टि की वैसी कृपा सब भक्तों एवं पाठकों पर हो। श्री शीतला मां सदा हमें शांति शीतलता तथा आरोग्य प्रदान करें।
शीतले त्वं जगन्माता
शीतले त्वं जगत् पिता ।
शीतले त्वं जगद्धात्री
शीतलायै नमो नमः ।।
बोलो शीतला माता की जय।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,, इस बार शीतला अष्टमी व्रत दिनांक 25 मार्च 2022 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन अष्टमी तिथि रात्रि 10:06 बजे तक है तदुपरांत नवमी तिथि प्रारंभ होगी। योग की बात करें तो इस दिन वरियान नामक योग होगा जो अगले दिन दिन में 1:45 बजे तक होगा तदुपरांत परिधि नामक योग होगा। यदि करण की बात करें तो इस दिन बालव एवं कौलव नामक करण होंगे जो क्रमशः दिन में 11:09 बजे तक एवं रात्रि 10:06 बजे तक होंगे। बात यदि नक्षत्रों की करें तो इस दिन मूल नक्षत्र शाम 4:08 बजे तक होगा तदुपरांत पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र उदय होगा। यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण धनु राशि में रहेंगे।

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