सावन के इस महीने में बहुत महत्वपूर्ण है शिव वास देखना, क्या है शिववास आइए जानते हैं ?
बहुत महत्वपूर्ण है शिव वास देखना।—— भगवान शिव के अनुष्ठान में रुद्राभिषेक इत्यादि में या महामृत्युंजय जप आदि में या फिर नए शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा में शिव वास देखना नितांत आवश्यक है। सर्वप्रथम में पाठकों एवं भक्तों को शिव वास के संबंध में विस्तार से जानकारी देना चाहूंगा। भक्त एवं पाठक सर्वप्रथम शिववास का अर्थ समझ लीजिए कि यह शिव वास क्या होता है? आजकल पवित्र श्रावण मास प्रारंभ हुआ है संपूर्ण भारतवर्ष में अनेकों शिव भक्त रुद्राभिषेक शिव पूजन पार्थिव पूजन करते हैं देवभूमि उत्तराखंड में कुमाऊं संभाग में पार्थिव पूजन का प्रारंभ पावन जागेश्वर धाम से किया जाता है। बहुत से भक्त पंडितों के पास जाकर रुद्राभिषेक प्रारंभ करने का शुभ मुहूर्त की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। विद्वान पंडित लोग चंद्रवल अर्थात ( पैट, अपैट) की जानकारी देते हैं। चंद्र बल के अतिरिक्त शिव वास भी सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। यह शिववास क्या है? आइए जानते हैं। प्रत्येक तिथि को भगवान शिव जी का वास अलग-अलग स्थानों पर होता है। अब कौन सी तिथि को शिव जी का वास कहां होता है इसी को शिव वास देखना कहते हैं और उसका क्या फल होता है पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा। शिव वास गणना करने की विधि स्वयं नारद जी ने बताई है। जो निम्न प्रकार से है–
तिथिं च द्विगुणित कृत्वा पुनः पंच समन्वितम ।
मुनिर्भिस्तुहरेद्भागम शेषं शिववास उच्यते।।
अर्थात जिस तिथि को शिव वास देखना है उस किसी की संख्या को 2 से गुणा करें और फिर उसमें पांच और जोड़ दें जो संख्या प्राप्त हो उसमें 7 का भाग दे दें जो शेष बचे उसे शिववास जानना चाहिए। उदाहरणार्थ माना आज पंचमी तिथि है यदि आज का शिव वास देखना हो तो पंचमी अर्थात 5 का 2 गुना 10 प्राप्त हुआ फिर उसमें 5 + कर 15 प्राप्त हुए फिर उस 15 की संख्या में 7 का भाग देने पर एक प्राप्त हुआ अतः आज के दिन शिव जी का वास कैलाश में समझना चाहिए।
एकेन वास: कैलाशे द्वितये गौरी सन्निधौ ।
तृतीये वृषभारुढ: सभायां च चतुर्थये ।।
पंचमे भोजने चैव क्रीडायां च रसात्मके ।
श्मशाने सप्तशेषे च शिव वास: उदीरत: ।।
अर्थात इन श्लोकों का अर्थ इस प्रकार से है–
यदि एक शेष बचे तू शिव जी का वास कैलाश में समझना चाहिए यदि 2 शेष बचे तो गौरी के सानिध्य में तीन शेष बचने पर वृषभ आरूढ़ अर्थात बैल की सवारी यदि 4 शेष बचे तो शिवजी सभा में बैठे होते हैं 5 शेष बचने पर शिवजी भोजन करते हुए हैं। यदि शेष छह बचे तो भगवान भोले शंकर क्रीडा कर रहे होते हैं और यदि 7 शेष बचे तो या 0 शेष बचे तो शिव जी का वास श्मशान में होता है।
अब पाठकों एवं प्रिय भक्तों को प्रत्येक जगह शिव वास का फल बताना चाहूंगा। जो निम्न प्रकार से है–
कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पद: ।
वृषभेअ्भीष्ट सिद्धि: सभायां संतापकारिणी ।।
भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च ।
श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत ।।
अर्थात यदि शिव वास कैलाश में हो तो अनुष्ठान करने से सुख प्राप्त होगा। गौरी सानिध्य में रहने से सुख संपदा की प्राप्ति होती है। यदि बैल की सवारी कर रहे हो तो इसका अर्थ समझना चाहिए की अभीष्ट सिद्धि प्राप्त होगी। यदि शिवजी सभा में बैठे हैं तो शिवपूजन से संताप होता है। यदि शिव जी भोजन करते हुए हैं तो उनकी आराधना पीड़ा दाई होती है। यदि शिवजी क्रीडा कर रहे होते हैं तब शिव आराधना भी कष्टकारी होती है तथा जब शिवजी श्मशान में होते हैं तो शिव आराधना मरण तुल्य कष्ट देती है। पाठकों से विनम्र निवेदन है की तिथि की गणना शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से करनी चाहिए और शिव वास नियम विचार के साथ साथ सामान्य पंचांग शुद्धि भी देखनी चाहिए।
लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ( उत्तराखंड)