बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है आंवला एकादशी या आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी

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बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है आंवला एकादशी या आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आंवला एकादशी आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है।


शुभ मुहूर्त—
इस बार आंवला एकादशी दिनांक 3 मार्च 2023 दिन शुक्रवार को मनाई जाएगी। इस दिन एकादशी तिथि 6 घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 9:11 बजे तक है। पुनर्वसु नक्षत्र 22 घड़ी 35 पल अर्थात दोपहर 3:41 बजे तक है। सौभाग्य योग 30 घड़ी 5 पल अर्थात शाम 6:41 बजे तक है। इस दिन भद्रा 6 घड़ी 20 पल अर्थात प्रातः 9:11 बजे तक है। ध्वजारोहण, चीर बंधन एवं रंग का आयोजन दिनांक 2 मार्च गुरुवार को होगा।
आंवला एकादशी का महत्व।, ,,,,,, श्री हरि भगवान विष्णु ने बताया है कि फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुष्य नक्षत्र में व्रत रखने से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। उसे जन्म मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है इसलिए आंवला एकादशी व्रत बहुत महत्वपूर्ण बताया जाता है।

पद्म पुराण में आंवला एकादशी के उल्लेख में कहा गया है कि इस व्रत को करने से सैकड़ों तीर्थों के दर्शन के समान पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी जी की कृपा भी प्राप्त होती है। इस व्रत में आंवले का विशेष महत्व है। भगवान विष्णु को आंवला अर्पित करना चाहिए। जो व्यक्ति व्रत नहीं रख पाते उन्हें भी आंवले का सेवन करना चाहिए। वैसे भी आंवला वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाभदायक माना गया है। इसके सेवन से अनेकों प्रकार की व्याधियों नष्ट हो जाती हैं। इस दिन प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु जी की प्रतिमा के सामने हाथ में तिल कुशा द्रव्य एवं गंगाजल लेकर किसी सुयोग्य ब्राह्मण के द्वारा व्रत का संकल्प लें कि मैं भगवान विष्णु जी की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आंवला एकादशी व्रत रखता हूं। मेरा यह व्रत निर्विघ्नं एवं सफलतापूर्वक पूर्ण हो। इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें मम कायिक वाचिक मानसिक सांसारिक पातको पातकदुरितक्षयपूर्वक श्रूतिस्मृति पुराणोक्त फल प्राप्ते आंवला एकादशी व्रतं करिष्ये । तदुपरांत ब्राह्मण पुरोहित जी द्वारा कही हुई कथा श्रवण करें। जो निम्न प्रकार है।
मांधाता वशिष्ठ संवाद के अनुसार राजा मांधाता वशिष्ट जी से बोले यदि आप मुझ पर कृपा करें तो किसी ऐसे व्रत की कथा कहिए जिससे मेरा कल्याण हो। महर्षि वशिष्ठ जी बोले हे राजन ! सब व्रतों में उत्तम और अंत में मोक्ष देने वाले आंवला एकादशी के व्रत का वर्णन करता हूं। यह एकादशी फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष में होती है। इस व्रत को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत का फल 1000 गोदान के फल के बराबर होता है। अब मैं एक पौराणिक कथा कहता हूं। आप ध्यान पूर्वक सुनिए। एक वैदिश नाम का नगर था। जिसमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र चारों वर्ण आनंद सहित रहते थे। उस नगर में वेद ध्वनि गूंजा करती थी। तथा पापी दुराचारी एवं नास्तिक उस नगर में कोई नहीं था। उसी नगर में चैत्र रथ नाम का चंद्रवंशी राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत विद्वान और धार्मिक राजा थे। कोई भी व्यक्ति दरिद्र कंजूस नहीं था। सभी नगरवासी विष्णु भक्त थे। बाल वृद्ध स्त्री पुरुष एकादशी का व्रत किया करते थे। एक समय फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की आंवला एकादशी आई उस दिन राजा प्रजा तथा बाल वृद्धा दी सब ने व्रत किया राजा अपनी प्रजा के साथ मंदिर में जाकर पूर्ण कुंभ स्थापित करके धूप दीप आदि से स्तुति करने लगे। ” हे धात्री! आप ब्रह्म स्वरूप हो आप ब्रह्मा जी द्वारा उत्पन्न हुए हैं और समस्त पापों का नाश करने वाले हैं आपको नमस्कार है अब आप मेरा अर्घ्य स्वीकार करो। आप श्री राम जी द्वारा सम्मानित हो आपकी प्रार्थना करता हूं। अत: आप मेरे समस्त पापों का नाश कर दो” ऐसा कहते हुए उस मंदिर में सबने रात्रि जागरण किया। रात्रि के समय वहां एक बहेलिया आया जो अत्यंत पापी और दुराचारी था। भूख और प्यास से अत्यंत व्याकुल वह बहेलिया इस जागरण को देखने के लिए मंदिर के एक कोने में बैठ गया। और विष्णु भगवान तथा एकादशी महात्म्य की कथा सुनने लगा। इस प्रकार अन्य मनुष्यों की तरह उसने भी सारी रात जागकर बिता दी। प्रातः होते ही सब लोग अपने अपने घर चले गए। बहेलिया भी अपने घर चला गया। घर जाकर उसने भोजन किया कुछ समय बीतने के पश्चात उस बहेलिया की मृत्यु हो गई। परंतु उस आंवला एकादशी व्रत तथा जागरण से उसने राजा विधु रथ के घर जन्म लिया। और उस जन्म में उसका नाम वसुरथ रखा गया। युवा होने पर वह चतुरंगी सेना सहित तथा धन-धान्य से युक्त होकर 10000 ग्रामों का पालन करने लगा। वह तेज में सूर्य के समान क्रांति में चंद्र के समान तथा वीरता में भगवान विष्णु के समान था। वह अत्यंत धार्मिक सत्यवादी कर्मवीर और भगवान विष्णु का भक्त था। वह प्रजा का समान भाव से आदर करता था। दान देना उसका नित्य कर्तव्य था। 1 दिन राजा शिकार खेलने गया। दैव योग से वह मार्ग भूल गया और दिशा ज्ञान न रहने के कारण उसी वन में एक वृक्ष के नीचे सो गया। थोड़ी देर बाद पहाड़ी मलेच्छ वहां पर आ गए। राजा को अकेला देखकर मारो मारो शब्द करते हुए राजा की ओर दौड़े। मलेच्छ
कहने लगे इसी दुष्ट राजा ने हमारे माता पिता पुत्र पौत्र आदि को मारा है। तथा देश से निकाल दिया है। इसको अवश्य मारना चाहिए। ऐसा कह कर मलेच्छ उस राजा को मारने दौड़े और अनेक प्रकार के अस्त्र उसके ऊपर फेंके सब शस्त्र राजा के ऊपर पढ़ते ही नष्ट हो गए। और उसका वार पुष्प के समान होने लगा। मलेच्छों के शस्त्र उल्टा उन्हीं पर प्रहार करने लगे। जिससे वे मूर्छित होने लगे। इसी समय राजा के शरीर से एक दिव्य स्त्री उत्पन्न हुई। वह स्त्री अत्यंत सुंदर होते हुए भी उसकी भृकुटी टेडी थी । उसके आंखों से लाल अग्नि निकल रही थी। जिससे वह काल के समान प्रतीत होती थी। वह स्त्री मलेच्छ को मारने दौड़ी। थोड़ी देर में सभी मलेच्छों को काल के गाल पहुंचा दिया। जब राजा सो कर उठा तो उसने उनको मरा हुआ देखकर कहा इन शत्रुओं को किसने मारा? इस वन में मेरा कौन हितेषी रहता है? वह ऐसा विचार कर ही रहा था कि आकाशवाणी हुई हे राजन इस संसार में विष्णु भगवान के अतिरिक्त कौन तेरी सहायता कर सकता है? आकाशवाणी सुनकर राजा अपने राज्य में आ गया और सुख पूर्वक राज्य करने लगा। महर्षि वशिष्ठ जी बोले यह आंवला एकादशी व्रत का प्रभाव था। जो मनुष्य आंवला एकादशी व्रत को नियम पूर्वक करते हैं वह प्रत्येक कार्य में सफल होते हैं और अंत में विष्णु लोक को जाते हैं। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,

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