पत्रकार से देश के राष्ट्रपति बनने तक का सफर
पत्रकार से देश के राष्ट्रपति बनने तक का सफर
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
दून विश्वविद्यालय, देहरादून, उत्तराखंड
11 दिसंबर 1935 को पश्चिम बंगाल के बीरभूम के छोटे से गांव मिराती में जन्मे प्रणब दा जमीन से जुड़े असाधारण व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे. उन्होंने कोलकाता से राजनीति शास्त्र और इतिहास विषय में एम.ए. किया और कोलकाता विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की डिग्री भी हासिल 1963 में प्रणब मुखर्जी ने कोलकाता में डिप्टी अकाउंटेंट-जनरल (पोस्ट और टेलीग्राफ) के कार्यालय में एक अपर डिवीजन क्लर्क के रूप में अपने करियर की शुरुआत की. इसके बाद अपने ही कॉलेज विद्यानगर कॉलेज में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफेसर बने. राजनीति में प्रवेश करने से पहले मुखर्जी ने देशर डाक (मातृभूमि की पुकार) मैगजीन में पत्रकार के रूप में भी काम किया.की. राजनीति में प्रणब मुखर्जी करीब 5 दशक तक रहे और कई बड़े पदों पर रहे. इंदिरा गांधी सरकार में भी अहम भूमिका निभा चुके मुखर्जी को कांग्रेस का सबसे बड़ा और भरोसेमंद चेहरा माना जाता था. प्रणब मुखर्जी ने 1969 से राजनीति में कदम रखा और पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए. मुखर्जी पांच बार संसद के उच्च सदन के सदस्य रहे.साल 1973 में प्रणब मुखर्जी पहली बार केंद्रीय मंत्री बने. उसके बाद लगातार इंदिरा गांधी और फिर राजीव गांधी की सरकार में मंत्री बने. 1973-74 में इंदिरा सरकार में वह उद्योग, जहाजरानी एवं परिवहन, इस्पात एवं उद्योग उपमंत्री और वित्त राज्य मंत्री रहे. 1980 में प्रणब मुखर्जी को राज्यसभा में कांग्रेस का नेता बना दिया गया और वह 1985 तक राज्य सभा में सदन के नेता रहे. 1982 में प्रणब दा इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री कार्यकाल में भारत के वित्त मंत्री बने.2004 और 2009 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल कर मुखर्जी लोकसभा सदस्य बने और 8 साल तक लोकसभा में सदन के नेता रहे. हालांकि इससे पहले उन्हें दो बार लोकसभा चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा था. साल 1977 में मालदा और 1980 में बोलपुर संसदीय क्षेत्र से वे चुनाव हार गए थे. राजनीतिक करियर में प्रणब मुखर्जी 1991 से 1996 तक योजना आयोग के उपाध्यक्ष, 1993 से 1995 तक वाणिज्य मंत्री, 1995 से 1996 तक विदेश मंत्री, 2004 से 2006 तक रक्षा मंत्री तथा 2006 से 2009 तक विदेश मंत्री रहे. वे 2009 से 2012 तक वित्त मंत्री रहे. मनमोहन सरकार में प्रणब मुखर्जी 2004 से 2012 के बीच प्रशासनिक सुधार, सूचना का अधिकार, रोजगार का अधिकार, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी एवं दूरसंचार, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, मेट्रो रेल आदि की स्थापना जैसे विभिन्न मुद्दों पर गठित 95 से अधिक मंत्री समूहों के अध्यक्ष रहे.मुखर्जी ने 1991 में केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे का जो फॉर्मूला तैयार किया, उसे आज भी गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले के नाम से जाना जाता है.राष्ट्रपति के रूप में भी उन्होंने एक अमिट छाप छोड़ी. इस दौरान उन्होंने दया याचिकाओं पर सख्त रुख अपनाया. उनके सम्मुख 34 दया याचिकाएं आईं और इनमें से 30 को उन्होंने खारिज कर दिया. इनमें 2008 मुंबई हमलों के दोषी अजमल कसाब, 2001 में संसद हमलों के मुख्य आरोपी अफजल गुरू और 1993 में मुंबई बम धमाके के दोषी याकूब मेनन की याचिका शामिल है. कसाब को 2012, अफजल गुरू को 2013 और याकूब मेनन को 2015 में फांसी हुई थी.जनता के राष्ट्रपति के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन को जनता के निकट ले जाने के लिए उठाए गए कदमों के लिए भी याद किया जाएगा. उन्होंने जनता के लिए इसके द्वार खोले और एक संग्रहालय भी बनवाया. प्रणब मुखर्जी को मोदी सरकार द्वारा साल 2019 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘‘भारत रत्न’’ से नवाजा गया. इसे लेकर राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा हुई. इसके अलावा मुखर्जी को को कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. इनमें 2008 में पद्म विभूषण, 1997 में सर्वोत्तम सांसद और 2011 में भारत में सर्वोत्तम प्रशासक पुरस्कार शामिल है. दुनिया के कई विश्वविद्यालयों ने उनको डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया.न्यूयॉर्क से प्रकाशित होने वाले जर्नल ‘यूरो मनी’ के सर्वे में मुखर्जी को 1984 में विश्व के सर्वोत्तम पांच वित्त मंत्रियों में शुमार किया गया था. विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के लिए जर्नल ऑफ रिकार्ड, ‘एमर्जिंग मार्केट्स’ ने प्रणब दा को 2010 में एशिया के लिए ‘वर्ष का वित्त मंत्री’ घोषित किया था. प्रणब मुखर्जी की बहुत सी यादें उत्तराखंड से भी जुड़ी हैं। उन्हें उत्तराखंड से बेहद लगाव था। वे कई बार देवभूमि का भ्रमण करने के साथ ही बदरी-विशाल के दर्शनों को भी यहां पहुंचे। बतौर राष्ट्रपति वो साल 2016 में पहली बार बाबा केदार के दर्शनों को पहुंचे थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी कई बार उत्तराखंड आए और हमेशा ही सभी को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया। राष्ट्रपति बनने के बाद वे पहली बार 28 सिंतबर 2016 को बाबा केदारनाथ के दर्शनों को पहुंचे। उन्होंने गर्भगृह में विशेष पूजा अर्चना के बाद मुख्य पुजारी शिवशंकर लिंग के साथ मंदिर के पीछे पहुंचे और दिव्य शिला को देखा। पुजारी ने उन्हें बताया था कि साल 2013 में आए सैलाब के दौरान यह विशाल पत्थर यहां आ गया था, जिसके कारण मंदिर सुरक्षित रहा। केदारनाथ के आध्यात्मिक और प्राकृतिक सौंदर्य से अभिभूत प्रणब मुखर्जी ने मंदिर समिति की विजिटर बुक में लिखा था ‘दिव्य धाम है, अद्भुत है, मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैंने केदारनाथ के दर्शन किए।’ प्रणब मुखर्जी केदारनाथ आने वाले तीसरे राष्ट्रपति बने। इससे पहले नीलम संजीव रेड्डी और आर. वेकटरमन बाबा केदार के दर्शनों को आए थे। साल 2012 में राष्ट्रपति पद के चुनाव से पहले विभिन्न राज्यों का दौरा कर यूपीए समेत उन्हें समर्थन दे रहे अन्य दलों के सांसदों और विधायकों से मुलाकात के क्रम में प्रणब मुखर्जी देहरादून भी पहुंचे थे। पूरे समय बंगाली लहजे की हिंदी में में उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखंड में बदरी और केदार के विधायक भी यहां मौजूद हैं और वह इनके माध्यम से बदरी-केदार का आशीर्वाद चाहते हैं। प्रणब मुखर्जी को ज्ञान का धनी, राजनीति और कूटनीति का विद्वान माना जाता था. यही वजह थी कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल से कांग्रेस से जुड़े प्रणब मुखर्जी पार्टी में दिग्गज और प्रभावशाली नेता बने. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में तमाम उतार-चढ़ाव देखे. इंदिरा गांधी सरकार से लेकर मनमोहन सिंह की सकरार में मंत्री रहे और राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे. मुखर्जी राजनीति से कभी सेवानिवृत्त नहीं हुए, सिर्फ सक्रिय राजनीति से ओझल हो गए. दिल्ली में उनके आवास पर उनसे मशवरा लेने के लिए नेताओं का आना जाना हाल तक लगा रहता था. उनके जाने के बाद, भारत के राजनीतिक क्षितिज पर उनके जैसा मार्गदर्शक आज दूर दूर तक नजर नहीं आता. भारत के युवा नेताओं ने आज एक अद्वितीय प्रेरणा स्रोत और विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र ने अपनी राजनीति और संसदीय परंपरा का एक अनुपम संरक्षक खो दिया थे। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जैसा व्यक्तित्व विरले ही मिलता है
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान में दून विश्वविद्यालय dk;Zjr है.