भारी बारिश की वजह से इस संवेदनशील इलाकों में भूस्खलन

ख़बर शेयर करें

भारी बारिश की वजह से इस संवेदनशील इलाकों में भूस्खलन
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
उत्तराखंड के पहाड़ी ज़िलों में भारी बारिश के चलते मुश्किल हालात बनने का दौर शुरू हो चुका है. चमोली ज़िले के गुलाबकोटी और कौड़िया के बीच बद्रीनाथ नेशनल हाईवे बंद हो गया है. समाचार एजेंसी ने बताया कि भारी बारिश के चलते हुई भूस्खलन की घटना के कारण हाईवे ठप हो गया है. यह भी खबर है कि चमोली ज़िले में लगातार बारिश हो रही है. उधर, मौसम विभाग के मुताबिक शुक्रवार को तीन ज़िलों में भारी बारिश को लेकर रेड अलर्ट जारी किया जा चुका है.मौसम विभाग ने नैनीताल, चंपावत और पिथौरागढ़ में आज यानी शुक्रवार को बेहद भारी बारिश की संभावना जताते हुए चमोली, बागेश्वर, उधमसिंह नगर ज़िलों में भारी बारिश के आसार होने की बात कही थी. मौसम विभाग ने इन ज़िलों के लिए रेड अलर्ट भी जारी किया था. एएनआई ने अपने ट्वीट में बताया कि चमोली में बद्रीनाथ हाईवे बंद हो चुका है और वहां मलबा हटाए जाने की कवायद की जा रही है. गौरतलब है कि इससे पहले मई के आखिरी हफ्ते में भी बद्रीनाथ और ऋषिकेश हाईवे ब्लॉक हो गया था. वहीं, पिछले दिनों ही भूस्खलन के चलते गंगोत्री के लिए जाने वाला हाईवे भी ठप हुआ था. यह भी अहम बात है कि चारधाम यात्रा के तहत केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री तीर्थस्थलों को घरेलू ज़िलों के लोगों के लिए खोलने का ऐलान भी हाल में राज्य सरकार ने किया था. इधर, मौसम विभाग ने लगातार अलर्ट वाले इलाकों में बारिश के हालात के मद्देनज़र सतर्क रहने की हिदायतें जारी की हैं.टनकपुर से पिथौरागढ़ के बीच 150 किलोमीटर लंबी सड़क बन रही है. लेकिन सड़क चौड़ीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बावजूद यह ऑलवेदर सड़क लोगों की जान के लिए खतरनाक है. यह सड़क लगभग 11 सौ करोड़ की लागत से बन रही है. टनकपुर से पिथौरागढ़ की इस ऑलवेदर सड़क को 2017 से 3 कंपनियां 4 पैकेज में बना रही हैं. लेकिन मॉनसून आने से पहले जिस हालत में यह सड़क दिख रही है, वह बताती है कि फिलहाल इस सड़क पर सफर करना टूरिस्ट, चंपावत या पिथौरागढ़ जिले के लोगों के लिए कतई सुरक्षित नहीं है.पहाड़ी गिरते बोल्डर, खोखली हो चुकी जड़ों में अटके पेड़ तो कम से से कम यही तस्दीक कर रहे हैं. पहले भी पहाड़ी से गिरते बोल्डर और पेड़ लोगों की जान ले चुके हैं. तो ऐसे में सड़क से सफर कर रहे मुसाफिर भी इस ऑलवेदर सड़क को लेकर सरकार से सवाल खड़े कर रहे हैं.देश अभी कोरोना महामारी की दूसरी लहर के कठिन दौर से गुजर रहा है. लेकिन कुछ जगहों पर कोरोना गाइडलाइन की धज्जियां उड़ती अभी भी दिख जाएगी सैकड़ों की संख्या में मजदूर इस कार्य में लगे हुए हैं. काम के साथ कोरोना की गाइडलाइ की भी जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही है. ना तो मजदूरों को मास्क पहनने को दिया गया है और ना ही सैनिटाइजर की कोई व्यवस्था की गई है. वहीं, मजदूरों का कहना है कि उन्हें कोरोना महामारी की कोई जानकारी ही नहीं है और ना ही जिम्मेदार अधिकारी इस बीमारी से मजदूरों को रूबरू करा रहे हैं. कोरोना की तीसरी लहर भी आनी बाकी है, लेकिन कार्यदायी संस्था मजदूरों की जिंदगी से खिलवाड़ करने से जरा भी बाज नहीं आ रही है. कार्यदायी संस्थाएं एवं एनएच विभाग के अधिकारी केवल मजदूरों से काम ले रहे हैं. उनकी सुरक्षा के कोई भी पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं. आकाशीय बिजली गिरने और अतिवृष्टि से हुए नुकसान के बाद अब ओले फसलों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। दून समेत मैदानी इलाकों में भी अंधड़ और तेज बारिश आफत बनी हुई है।घाट राजमार्ग पिछले 55 घंटे से बंद है। भूखे प्यासे यात्री जहां सडक खुलने की आस में बैठे हैं, वही 55 घंटे से रोड नं खुलने की वज़ह से वहां खड़े ट्रकों में लदीं लगभग 30 लाख की सब्जीया बर्बाद हो गई है। पिथौरागढ़ घाट एनएच 55 घंटे से अधिक समय से बंद है। सड़क के खुलने के उम्मीद में पहुंचे सैकड़ों यात्रियों को पूरे दिन भूखे-प्यासे यहा इंतजार करना पड़ा। इसके बाद भी उनके हाथ निराश ही लगी। गुरुवार को तीसरे दिन भी पिथौरागढ़-घाट के बीच यातायात सुचारू नहीं हो सका। एनएच मंगलवार रात से बंद है।दिल्ली बैंड, वल्दिया द्वार व चुपकोट बैंड के समीप भी पहाड़ी से भारी बोल्डर गिरने से सड़क खोलना चुनौती बना हुआ है। एनएचएआई ने गुरुवार को इस सड़क पर यातायात बहाल होने की बात कही थी। लेकिन बड़ी संख्या में मैदानी क्षेत्रों से यहां पहुंचे यात्रियों को देर शाम तक सड़क नहीं खुलने से खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।मौसम विभाग ने कल भी प्रदेश में ओलावृष्टि और अंधड़ को लेकर ऑरेंज अलर्ट है। उत्तराखंड राज्य, प्रकृति के अत्यधिक दोहन के कारण पहले से प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है। ऐसे में विकास के नाम पर हिमालय के अधिक संवेदनशील इलाकों में जरूरत से अधिक निर्माण होना राज्य में आपदाओं को खुला न्योता देता है। उसका ताजा उदाहरण देहरादून के निकट रायपुर क्षेत्र के मालदेवता में होने वाला भूस्खलन है। इसके अतिरिक्त नियमों को अनदेखा कर किया जा रहा चार धाम प्रोजेक्ट है, जिस के कारण बरसात का मौसम शुरू होने से पहले ही भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए प्रशासन को इस प्रकार के निर्माण के स्थान पर कुछ ऐसे उपाय अपनाने चाहिए जो प्रकृति के अनुकूल हो।
लेखक द्वारा उत्तराखण्ड सरकार के अधीन उद्यान विभाग के वैज्ञानिक के पद पर का अनुभव प्राप्त हैं, वर्तमान दून विश्वविद्यालय में कार्यरत है.

You cannot copy content of this page