आध्यात्मिक- चार पावन धामों में से एक है यह धाम, प्रत्येक वर्ष शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को इस धाम में निकलती है रथ यात्रा,आइये जानते हैं
चार पावन धामों में से एक है जगन्नाथ धाम, प्रत्येक वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकलती है रथ यात्रा।,,,,,,, जगन्नाथ का अर्थ है जगत के नाथ यानी भगवान विष्णु। भारत वर्ष के उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। हिंदू मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में कम से कम एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाना चाहिए। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होती है। रथ यात्रा के दौरान पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ तीनों की आराधना की जाती है और तीनों के भव्य एवं विशाल रथों को पुरी की सड़कों में निकाला जाता है। बलभद्र के रथ को “ताल ध्वज” कहा जाता है जो यात्रा में सबसे आगे चलता है और सुभद्रा के रथ को “दर्प दलन ” या “पद्म ” रथ कहा जाता है जो कि मध्य में चलता है। जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को “नंदीघोष” या “गरुड़ध्वज ” कहते हैं जो सबसे अंत में चलता है। प्रतिवर्ष यह पर्व लाखों श्रद्धालु सैलानियों एवं जनमानस को अपनी ओर आकर्षित करता है।
शुभ मुहूर्त,,,,,,इस वर्ष भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभ मुहूर्त द्वितया तिथि दिनांक 30 जून 2022 को प्रातः 10:50 बजे से 1 जुलाई 2022 को दिन में 1:10 बजे तक होगी अतः भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 1 जुलाई 2022 दिन शुक्रवार से प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन पुष्य नामक नक्षत्र 56 घड़ी 30 पल अर्थात अगले दिन प्रातः 3:54 बजे तक रहेगा। यदि योग की बात करें तो इस दिन व्याघ्र नामक योग 13 घड़ी 30 पल अर्थात प्रातः 10:42 बजे तक रहेगा यदि करण के बारे में जाने तो इस दिन कौलव नामक करण 19 घड़ी 37 पल अर्थात दोपहर 1:09 तक रहेगा। इन सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण कर्क राशि में विराजमान रहेंगे।, ,,,,,,,,
भगवान जगन्नाथ की पौराणिक कथा।,,, ,,
वैसे तो जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई धार्मिक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं जिसमें से एक कथा का वर्णन कुछ इस प्रकार है कि -एक बार गोपियों ने माता रोहिणी से कान्हा के रास लीला के बारे में जानने का आग्रह किया। उस समय सुभद्रा भी वहां उपस्थित थी। तब मात रोहिणी ने सुभद्रा के सामने भगवान कृष्ण की गोपियों के साथ रासलीला का बखान करना उचित नहीं समझा इसलिए उन्होंने सुभद्रा को बाहर भेज दिया और उनसे कहा कि अंदर कोई ना आए इस बात का ध्यान रखना। इसी दौरान भगवान श्री कृष्ण जी और बलराम सुभद्रा के पास पधार गए और उनके दाएं बाएं खड़े होकर मां रोहिणी की बात सुनने लगे , इस बीच देव ऋषि नारद जी भी वहां उपस्थित हो गए। उन्होंने तीनो भाई बहनों को एक साथ इस रूप में देख लिया। तब नारद जी ने तीनों से उनके उसी रूप में उन्हें देवीय दर्शन देने का आग्रह किया। फिर तीनों ने नारद की इस मुराद को पूरा किया। अतः जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों अर्थात भगवान बलभद्र माता सुभद्रा एवं भगवान श्री कृष्ण जी के इसी रूप में दर्शन होते हैं।
रथ यात्रा के दौरान मनाई जाने वाली परंपराएं।, ,,,,, ,
रथ यात्रा के दौरान ” पहांड़ी ” एक धार्मिक परंपरा है जिसमें भक्तों के द्वारा बलभद्र सुभद्रा एवं भगवान श्री कृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक की रथ यात्रा कराई जाती है। कहा जाता है कि गुंडिचा भगवान श्री कृष्ण की सच्ची भक्त थी। और उनकी इसी भक्त का सम्मान करते हुए यह इन तीनों इनसे प्रतिवर्ष मिलने आते हैं।
“छेरा पहरा”,,,,
रथ यात्रा के प्रथम दिन छेरा पहरा की रस्म निभाई जाती है जिसके अंतर्गत पुरी के गणपति महाराज के द्वारा यात्रा मार्ग एवं रथों को सोने की झाड़ू से स्वच्छ किया जाता है। प्रभु के सामने प्रत्येक व्यक्ति समान हैं इसलिए एक राजा साफ सफाई वाले का भी कार्य करता है। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है। प्रथम बार जब यात्रा को गुंदीचा मंदिर ले जाया जाता है तब और दूसरी बार जब यात्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में लाया जाता है तब। जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुंचती है तब भगवान जगन्नाथ सुभद्रा एवं बलभद्र जी को विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाए जाते हैं। यात्रा के पांचवे दिन ” हेरा पंचमी” का महत्व है इस दिन मां लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती है जो अपना मंदिर छोड़कर यात्रा में निकल गए हैं।
रथ यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व, ,,,,,
इस यात्रा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक दोनों महत्व है। धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो पुरी यात्रा भगवान जगन्नाथ को समर्पित है जोकि भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। हिंदू धर्म की आस्था का मुख्य केंद्र होने के कारण इस यात्रा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। कहते हैं कि जो कोई भक्त सच्चे मन से और पूरी श्रद्धा के साथ इस यात्रा में शामिल होते हैं तो उन्हें मरणोपरांत मोक्ष प्राप्त होता है। वह इस जीवन मरण के चक्र से बाहर निकल जाते हैं। इस यात्रा में शामिल होने के लिए संपूर्ण विश्व भर के लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। देश-विदेश के सैलानियों के लिए भी यह यात्रा आकर्षण का केंद्र मानी जाती है। इस यात्रा को “पुरी कार फेस्टिवल ” के नाम से भी जाना जाता है। यह सब बातें इस यात्रा के सांस्कृतिक महत्व को दर्शाती है। भगवान बलभद्र देवी सुभद्रा एवं भगवान जगन्नाथ हम और आप सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करें बोलो जगन्नाथ धाम की जय।
लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ( उत्तराखंड)