पौष संकष्टी चतुर्थी इस बार सन् 2021 में पौष संकष्टी चतुर्थी मनायी जा रही है दो बार

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वर्ष में कभी कभी ऐसा भी होता है एक पर्व दो बार पड़ जाता है, पौष संकष्टी चतुर्थी इस बार सन् 2021 में पौष संकष्टी चतुर्थी दो बार मनायी जा रही है । जहां वर्ष के प्रारंभ में शनिवार 2 जनवरी 2021 को मनाई गई और फिर वर्ष के अंत में गुरुवार दिनांक 23 दिसंबर को मनाई जाएगी। एक और जहां सन 2020 में पौष संकष्टी चतुर्थी नहीं मनायी गयी वहीं दूसरी ओर सन 2021 में दो बार मनायी जा रही है इसलिए हिन्दू धर्म के पाठकों भक्तों से एक बार पुनः निवेदन है कि आप हिन्दू धर्म के हिन्दू पंचाग पर अधिक विश्वास कीजिए । यदि किसी हिंदू धर्म के धार्मिक प्रवृत्ति वाले सिर्फ अंग्रेजी कैलेंडर को देखने वाले व्यक्ति से पूछा जाए कि सन 2020 में पौष मास की संकष्टी चतुर्थी या सफला एकादशी कब मनाई तो उसके पास कोई उत्तर नहीं होगा । अतः हिन्दू पंचाग के अनुसार ही जन्म दिवश आदि उत्सव मनाने चाहिए । दिनांक 23 दिसंबर 2021 को चतुर्थी तिथि शाम 6:29 तक है। इस दिन वैधृति नामक योग दोपहर 12:09 तक है तदुपरांत विष्कुंभ नामक योग है। बालव नामक करण शाम 6:29 तक तदुपरांत तैतिल नामक करण प्रारंभ होगा। इस दिन अश्लेषा नामक नक्षत्र है। यदि चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण कर्क राशि में होंगे।
हमारे सनातन धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार संकष्टी चतुर्थी पर जो भक्त सच्चे मन से भगवान गणेश जी का व्रत रखते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
पूजा विधि- संकष्टी चतुर्थी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत हो उसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। एक चौकी में गंगाजल छिड़क कर उसे शुद्ध करें। चौकी पर साफ पीला वस्त्र बिछाए। चौकी पर गणेश जी की प्रतिमा विराजमान करें। भगवान गणपति के सामने धूप एवं दीप प्रज्वलित करें। मंत्रोच्चारण से उन्हें स्नान कराएं तत्पश्चात उन्हें तिलक करें। इस दिन भगवान गणेश जी को पीले फूल की माला अर्पित करें। तदुपरांत दुर्वांकुर पूजा करें अर्थात गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें। गणेश जी को बेसन के लड्डू का भोग लगाएं। गणेश जी की आरती के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत को पूर्ण करें।
संकष्टी चतुर्थी व्रत का महत्व- संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। भगवान गणेश जी की कृपा से कार्यों में आने वाली कई बाधाएं दूर होती हैं। अनेकों प्रकार की सफलताएं प्राप्त होती हैं। भगवान गणेश जी अपने सभी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। पौष मास की संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा- एक समय की बात है रावण ने स्वर्ग के सभी देवताओं को जीत लिया संध्या करते हुए वाली को पीछे से जाकर पकड़ लिया। वानर राज बाली रावण को अपनी बगल अर्थात कांख में दबाकर किष्किंधा नगरी ले आए और अपने पुत्र अंगद को खेलने के लिए खिलौना दे दिया अंगद रावण को खिलौना समझ कर रस्सी से बांधकर इधर-उधर घूमाते थे । इसी से रावण को बहुत कष्ट और दुख प्राप्त हुआ रावण ने दुखी मन से अपने पितामह पुलस्त्य जी को याद किया। रावण की इस दशा को देखकर उन्होंने विचारा कि रावण की यह दशा क्यों हुई? अभिमान हो जाने पर देव मनुष्य असुर सभी की यही गति होती है। ऋषि ने रावण से पूछा तुमने मुझे क्यों याद किया है? रावण बोला पितामह मैं बहुत दुखी हूं। यह नगरवासी मुझे धिक्कार ते हैं। अब आप मेरी रक्षा करें। रावण के मुख से ऐसे वचनों को सुन कर ऋषि बोले रावण तुम डरो नहीं तुम इस बंधन से जल्दी मुक्त हो जाओगे। तुम विघ्न विनाशक गणेश जी का व्रत करो। पूर्वकाल में वृत्रासुर की हत्या से छुटकारा पाने के लिए इंद्र ने इस व्रत को किया था। इसलिए तुम भी इस व्रत को करो। रावण ने भक्ति पूर्वक इस व्रत को किया और बंधन रहित हो अपने राज्य को प्राप्त किया। जो कोई भी व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करता है उसे सफलता अवश्य प्राप्त होती है।
ओम सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक: ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक: ।।
धूम्रकेतुगर्णाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामानि य: पठेच्छुणुयादपि ।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
विघ्नवल्लीकुठाराय श्री गणाधिपतये नम:।

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