इस बार कई महत्वपूर्ण शुभ संयोग के साथ 30 अगस्त को संपूर्ण भारतवर्ष में मनाई जाएगा श्री कृष्ण जन्माष्टमी
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर कई वर्षों बाद पड़ता है ऐसा दुर्लभ शुभ संयोग,इस बार सन् 2021 में पढ़ रहे हैं कई महत्वपूर्ण शुभ संयोग दिनांक 30 अगस्त सन 2021 को संपूर्ण भारतवर्ष में श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। पिछले कई वर्षों तक वैष्णव व स्मार्ट दोनों संप्रदाय इस महान पर्व को अलग-अलग दिन मनाया करते थे। परंतु इस बार दोनों संप्रदाय इस महान पर्व को एक साथ मनाएंगे। भगवान श्री कृष्ण का जन्म आज से 5247 वर्ष पूर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार भी अष्टमी तिथि एवं रोहिणी नक्षत्र एक साथ पड रहे हैं इसे ज्योतिषी की भाषा में जयंती योग कहते हैं। द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ उस दिन भी जयंती योग पड़ा था। ज्योतिष गणना के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का अवतरण इस धरती पर आज से 3226 वर्ष ईसा पूर्व हुआ था वर्तमान में ईसवी के 2021 वर्ष चल रहे हैं। अतः 3226 धन 2021 बराबर 5247 अतः इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण का 5247 वां जन्मदिन होगा। यदि बात करें अष्टमी तिथि की तो इसका आरंभ रविवार दिनांक 29 अगस्त सन 2021 को रात्रि 11:25 पर होगा और तिथि 30 अगस्त रात 1:59 तक रहेगी। अतः उदया तिथि के अनुसार दिनांक 30 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं अनंत हैं। किंतु प्रमुख रूप से उनकी 3 लीलाएं विशेष प्रसिद्ध है। इन तीनों लीलाओं में इसका आरंभ होता है बृज लीला से तदनंतर आती है माथुर लीला और अंत में द्वारका लीला। एक ही व्यक्ति ने इन तीन लीलाओं का प्रदर्शन अपने जीवन के विभिन्न भागों में किया था। अतः श्री कृष्ण की एकता में किसी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति श्री कृष्ण के व्यक्तित्व में भेद मानता है उसका चिंतन सर्वथा निराधार है। श्री कृष्ण का गोपियों के साथ लीला विलास का संबंध जीवन के आरंभ से लेकर अंत तक रहता है। उन्होंने उस समय अपने जेष्ठ भ्राता को गोकुल में नंद के घर में रोहिणी माता के गर्भ में योग माया के आश्रय से सनी बिष्ट करा दिया था। जो संकर्षण नाम से विख्यात हुए। शिशु के प्रभाव से देवकी तथा वसुदेव को कारागार में रखने पर भी उनके जीवन में अद्भुत लीला दृष्टिगोचर हुई थी। रक्षक लोगों को निद्रा आ गई थी तथा उनके बंधन मुक्त हो गए थे। कृष्ण जब अपने जीवन के आरंभ में गोकुल आए तब यशोदा को कन्या की प्राप्ति हुई थी। यह भी कृष्ण के जीवन के आरंभिक काल का लीला विलास था। श्री कृष्ण के आरंभिक जीवन में गोपियों के साथ नाना प्रकार की लीलाओं का विन्यास दृष्टिगोचर होता है। कंस द्वारा कृष्ण को मारने के अनेक उपायों में उनकी लीला का विलास दृष्टिगोचर होता है। कृष्ण की जीवन लीला को समाप्त करने के लिए कंस ने विविध चेष्टा की थी और इनमें कृष्ण के जीवन का विलास प्रचुर मात्रा में देखा जा सकता है। उन्हें मारने के लिए पूतना भेजी गई थी और बालक कृष्ण ने उसे दूध पीते ही मार डाला। यह भी उनके आरंभिक जीवन का विलास ही था। यमुना जी में काली नाग की नाना प्रकार की केस हटाएं दिखती है। जिनके कारण यमुना का जल विश मिश्रित हो गया था। कृष्ण ने काली नाग के सिर पर नृत्य कर उसके दोष को दूर करने का प्रयास किया था।। यह उनकी नृत्य लीला का विलास था। गोपियों के चीर हरण के प्रसंग में लीला का विलास स्फुरित होता है। इस लीला के द्वारा उन्होंने नग्न स्नान के दोष को सदा के लिए व्रज से दूर कर दिया था। नदी की पवित्रता की रक्षा की थी और साथ ही उन्होंने यह प्रदर्शित किया था कि भगवान सानिध्य प्राप्त करने के लिए मनुष्य को ऊपरी दोस्तों को हटाना पड़ेगा। तभी उनके साथ उसका सर्वथा मिलन संभव होगा। गोवर्धन धारण लीला का महत्व सबके सामने भगवान श्री कृष्ण ने दिखाया था। ब्रज के लोग इंद्र की पूजा करते थे। कृष्ण ने इसका अनौचित्य सिद्ध किया और इंद्र के महत्व को कम करने की दृष्टि से यह लीला प्रदर्शित की थी। भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्म का गर्व चूर्ण करने के लिए अपने संकल्प से गोप ग्वाल बाल तथा अन्य जीवो को छिपा रखा था तथा 1 वर्ष के अनंतर उन सबको उसी रूप में प्रकट किया। किसी को भी इस अंतरंग लीला की गंभीरता का रहस्य पता नहीं चला और ब्रह्मा के गर्व को भी चूर्ण कर दिया। भगवान श्री कृष्ण की लीला का अनुकरण उनके जीवनकाल में ही होने लगा था। यह विशेष रूप है लीला का।रास के समय गोपियों के गर्व को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण स्वयं अंतर हित हो गए। तब गोपियों ने उनके जीवन की समस्त घटनाओं का स्वयं अनुकरण किया था। भगवान श्री कृष्ण की जितनी लीलाएं पहले हो चुकी थी उन सब का अनुकरण कर गोपियों ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया था। कोई पूतना बनी थी तो कोई यमला अर्जुन। इसी प्रकार कृष्ण द्वारा संपादित लीलाओं को गोपियों ने पूर्णतया अनुकरण के द्वारा दिखलाया था। यह विचित्र घटना है। इसी प्रसंग में सुदामा जी की छोटी कुटिया हटाकर भगवान ने वहां महल खड़ा कर दिया था। गुरु के यहां पढ़ने गए तो उन्होंने सांदीपनि गुरु के मृतक पुत्र को पुनः जीवित करके गुरु दक्षिणा के रूप में उन्हें समर्पित कर दिया था। श्री कृष्ण के जीवन की यह लीलाएं सर्वदा स्मरणीय रहेंगी। इनका विस्मरण कोई नहीं कर सकता। भगवान श्री कृष्ण राधिका के विषय में स्वयं कहते हैं – कृष्णं वदन्ति मां लोकास्त्वयैव रहितं यदा । श्री कृष्णं च तथा तेअ्पि त्वयैव सहितंपरम् ।। लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल।