चौथे नवरात्र को मां कुष्मांडा की होती है पूजा,जानिए क्यों कहते हैं कुम्हड़े को कुष्मांडा

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चौथे नवरात्र को मां कुष्मांडा की पूजा होती है।कुष्मांडा कुम्हड़े को कहते हैं (कुमाऊनी में इसे कुमिल या भुज) कहते हैं।मां कुष्मांडा को कुम्हड़े की बलि दी जाती है।

शुभ मुहूर्त –
दिनांक 18 अक्टूबर 2023 दिन बुधवार को मां कुष्मांडा की पूजा होगी ।इस दिन चतुर्थी तिथि 47 घड़ी 15 पल अर्थात मध्य रात्रि 1:12 बजे तक है। अनुराधा नामक नक्षत्र छत्तीस घड़ी 38 पल अर्थात रात्रि 8:57 बजे तक है। इस दिन आयुष्मान नामक योग चार घड़ी 48 पल अर्थात प्रातः 8:13 बजे तक है। वणिज नामक करण 17 घड़ी 42 पल अर्थात दोपहर 1:30 बजे तक है। सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन चंद्र देव वृश्चिक राशि में विराजमान रहेंगे।

चार महत्वपूर्ण योग हैं इस दिन।
आयुष्मान योग- 18 अक्टूबर,सुबह 9.22- 19 अक्टूबर, सुबह 8.19 तक।
सर्वार्थ सिद्धि – सुबह 6.23 – रात 9.01तक।
रवि योग- सुबह 6.23 – रात 9.01तक।
अमृत सिद्धि योग – सुबह 6.23 – रात 9.01तक।

कुष्मांडा देवी की कथा

नवरात्र के चौथे दिन दुर्गाजी के चतुर्थ स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा और आर्चना की जाती
है। माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति से पूर्व जब चारों ओर अंधकार था और कोई भी
जीव जंतु नहीं था तो मां दुर्गा ने इस अंड यानी ब्रह्मांड की रचना की थी। इसी कारण उन्हें कूष्मांडा कहा जाता है। सृष्टि की
उत्पत्ति करने के कारण इन्हें आदिशक्ति नाम से भी अभिहित किया जाता है। इनके स्वरूप
का वर्णन करते हुए शास्त्रों में कहा गया है कि इनकी आठ भुजाएं हैं और ये सिंह पर सवार
हैं। मां कृष्मांडा के सात हाथों में चक्र, गदा,धनुष, कमण्डल, अमृत से भरा हुआ कलश,बाण और कमल का फूल है तथा आठवें हाथ में जपमाला है जो सभी प्रकार की सिद्धियों
से युक्त है। इस देवी का वाहन सिंह है । और इन्हें कुम्हड़े (जिसे कुमाऊनी में कुमिल या भुज कहते हैं) की बलि प्रिय है। संस्कृत में कुम्हड़े को कुष्मांड कहते हैं। (कुम्हड़े की सब्जी के अलावा पेठा भी बनाया जाता है)।इसलिए इस देवी को कुष्मांडा कहते हैं। इस दिन मां कुष्मांडा को कुम्हड़े से बना पेठा जिसे कुमाऊनी में (कुमिल की मिठाई कहते हैं)भी अर्पित करना चाहिए।इस देवी का वास सूर्य मंडल के भीतर लोक में है। सूर्य लोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसलिए उनके शरीर की क्रांति और प्रभाव सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है । उनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित है । ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है।मां दुर्गा के इस कूष्मांडा स्वरूप की पूजा
अर्चना निम्न मंत्र से करनी चाहिये।
सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव चादधाना

हस्तपद्याभ्यां,कूष्मांडा शुभदास्तु मे।

अर्थात् अमृत से परिपूरित कलश को धारण
करने वाली और कमलपुष्प से युक्त तेजोमय
मां कूष्मांडा हमें सब कार्यों में शुभदायी सिद्ध
हो।।

मां कुष्मांडा महामंत्र
वन्दे वाछित कामर्थेचन्द्रार्कृतशेखराम्।
सिंहरूढा अष्टभुजा कुष्माण्डायशस्वीनाम्।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कुष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।

देवी कुष्मांडायै नमः ।
सूरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपझ्माभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु में।।

मां कुष्मांडा की सही पूजा विधि

मां कुष्मांडा की पूजा में पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
पूजा के समय देवी को पीला चंदन लगाएं. कुमकुम,
मौली, अक्षत चढ़ाएं. अब एक पान के पत्ते में थोड़ा
सा केसर लें, और ओम बूं बृहस्पते नमः मंत्र बोलते
हुए देवी को अर्पित करें। अब ॐ कूष्माण्डायै नमः मंत्र
का एक माला जाप करें, और दुर्गा सप्तशती या फिर
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें।

मां कुष्मांडा की आरती
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी मॉँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे।
भक्त कई मतवाले तेरे।
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥।
सबकी सुन्ती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा।
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो मोाँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा।
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥

मां कुष्मांडा की कृपा आप और हम सभी पर बनी रहे।
।।जै जै माता दी।।

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