कुमाऊँ के चम्पावत और पिथौरागढ़ जनपद के कुछ हिस्सों में चैत्वाल त्योहार का महत्व

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चैत्वाल या चैत्वाल त्योहार कुमाऊँ के चम्पावत और पिथोरागढ जनपद के कुछ हिस्सों में यह त्योहार मनाया जाता है, चम्पावत जिले के गुम देश क्षेत्र के चमदेवल नामक स्थान में चैत्र नवरात्रि में चैत्वाल का मेला लगता है, यह ऐतिहासिक चामूदेवता का मन्दिर इस युग का नहीं वरन द्वापरयुग में पांडवकालीन है, इस मन्दिर का निर्माण पांडवों ने अज्ञात वाश के दौरान किया था, चैत्र नवरात्र के दौरान मन्दिर में पूजा अर्चना करने वालौ का तांता लगा रहता है, ऐसा माना जाता है कि श्रद्धा भाव से मांगी हर मुराद चामूदेवता पूरी करते हैं, मन्दिर के अन्दर शिवलिंग व दिवारों पर विराजमान पांडवकालीन मूर्तियों इसके प्रमाण है, कहाजाता है कि उस समय शक्ति शाली दैत्य बकासुर ने क्षेत्र में आतंक मचाया हुआ था, जिससेे परेशान एक बुडिसेसनी अर्थात एक व्रद्ध महिला ने दैत्य के आतंक से रक्षा करने की गुहार लगाई थी कि क्वे छौ द्यापतौ ये दैत्य रणका खन मार क्याहन न रैया, अर्थात कोई है देवताओं इस दैत्य का वध क्यूँ नहीं करते हैं, भक्त की करुण पुकार सुनकर चमूदेवता ने बकासुर का वध कर यहाँ के वाशिंदों को दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाई तब से प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र में लोहाघाट के तोली जूला मड शिलिंग चौ पता जाख जिंडी बसकुनी व सिरकोट के जत्थे चमूदेवता मन्दिर पंहुचते है, दूसरे दिन पुल्ला एवं मडलक गुरेली के जत्थे पंहुचते है, ठाकुर धौनी लोगों के चार गांव बसकुनी न्योल टुकरा चौ पता एवं धौनी शिलिंग तथा तोली जत्थे दोनों दिन सामिल होतेहैं, अब बात करैं पिथोरागढ जिले की पिथोरागढ जिले के विण क्षेत्र में देवल समेत देवता भगवान शिव के रूप में माने जाते हैं, देवल समेत देवता का संबंध मूलतः नेपाल से माना जाता है, किवदंती है कि इन्हें नेपाल से स्थापना के लिए काली कुमाऊँ लाया गया किन्हीं कारणवश देवल समेत देवता की स्थापना काली कुमाऊँ में नहीं की जासकी , तब सोर घाटी में इनकी स्थापना कीगई सोर घाटी के बाईस गाँव में भगवती स्वरूप बहिनों से होती है भैंट सबसे पहले देवल समेत बाबा की छात यानि छतरी व डोला तैयार किया जाता है, चतुर्दशी के दिन देवल समेत देवता का डोला बाईस गांवो में घुमाया जाता है, गाँव की अपनी यात्रा के दौरान देवल समेत द्वारा सभी गाँव की देवियों की आराधना की जाती है, इस भ्रमण के दौरान देवल समेत के द्वारा भिटौली की रस्म अदायगी की जाती है, प्रचलित जनश्रुति के अनुसार चार बहिनों की बाईस बहिनै हुआ करतीं थीं, जिन्हें उन्हीं बाईस गाँव में व्याहा गया था अत भिटौली के महिने देवल समेत देवता अपनी बहिनों को भिटौली देने इन बाईस गाँव में जाया करते है, इन बाईस गाँव में मुख्य विण मखन गांव कुटौली बरड़ सिमखोला रिखाई चैंसर कुमडार दल्ल्गांव बसते नैनीसैनी ऊर्ण उडमाया जामड घुंसेरा भडकटिया मढ सिंतौली कासनी कुसौली रुइना और जाखनी आदि गाँव आते है, लेखक पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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