बेनीताल बुग्याल पर भू-माफिया का कब्जा

ख़बर शेयर करें

बेनीताल बुग्याल पर भू-माफिया का कब्जा
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
देहरादून, उत्तराखंड
बेनीताल को पर्यटन के नक्शे पर स्थापित करने और गैरसैंण को प्रदेश की राजधानी बनाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी की मांग आज तक पूरी नहीं हो पाई। बाबा की स्मृति में बेनीताल में स्मारक और नैनीताल हाईवे से बेनीताल के लिए जाने वाले मोटर मार्ग पर स्मृति द्वार बनाकर इतिश्री कर ली गई। वर्ष 1993 में राज्य आंदोलन के लिए सेना की नौकरी छोड़ने वाले मोहन सिंह पौड़ी जिले के बठोली गांव के रहने वाले थे। 2 जुलाई 2004 से बेनीताल में आंदोलन शुरू करने वाले मोहन सिंह ने राज्य की विभिन्न समस्याओं के लिए करीब नौ से अधिक बार आंदोलन किया। इसके लिए मोहन सिंह को बाबा की उपाधि मिली। दसवीं बार बेनीताल के टोपरी उड्यार में बेनीताल को पर्यटक स्थल घोषित करने और गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग के लिए बाबा भूखहड़ताल पर बैठे थे। बाबा मोहन उत्तरखंडी ने कहा था कि राज्य आंदोलन जिस भावना के लिए हुआ, वह भावना गैरसैंण में बसी है। मांग के समर्थन में 37 दिनों तक भूख हड़ताल के बाद आठ अगस्त 2004 को प्रशासन ने बाबा मोहन उत्तराखंडी को उठाकर अस्पताल में भर्ती करा दिया, लेकिन अस्पताल में बाबा की मौत हो गई। नौ अगस्त को यहां तेज आंदोलन हुआ और कई दिनों तक गैरसैंण, बेनीताल और बाबा की शहादत पर आंदोलन होते रहे, लेकिन बाबा की मांग सरकार की फाइलों से बाहर नहीं निकली बेनीताल बुग्याल पर निजी संपत्ति का बोर्ड देखकर राज्य भर के लोगों के मन में प्रश्न उठने लगे हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि पूरा का पूरा घास का मैदान और ताल किसी ने पाने कब्जे में कर यहां निजी संपत्ति का बोर्ड लगा दिया है आदि बदरी से 6 किमी की दूरी पर स्थित बेनीताल जैवविविधता से भरा हुआ क्षेत्र इस मामले के बारे में चमोली की जिलाधिकारी स्वाति भदौरिया ने टाइम्स और इण्डिया से कहा कि अभी तक कोई भी जिला प्रशासन के पास भूमि कब्जे की शिकायत लेकर नहीं आया है यदि हम देखते हैं कि सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया है तो कानूनी करवाई करेंगे.टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में शिवानी आजाद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस भूमि से जुड़ा विवाद लम्बे समय से कोर्ट में चल रहा है. 2011 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अनुसार रिजर्व फारेस्ट घोषित यह 650 एकड़ भूमि, राजस्व विभाग को वन विभाग को सौंपनी है जो कि अब तक नहीं सौंपी गयी है. प्रकृति की अनेक सुंदरता को संजोए हुए हैं, उत्तराखंड में स्थित बेनीताल बुग़्याल। जनपद चमोली के गैरसैंण ब्लाक के आदिबदरी क्षेत्र में स्थित बेनीताल प्रकृति की नेमतों का खजाना समेटे हुए है। बुग्याली क्षेत्र और ढलवां हरी-भरी पहाड़ी यहां लोगों को बरबस अपनी ओर खींच लाती है। बेनी पर्वत पर स्थित प्रकृति की इस सुंदर सौगात वाले ढलवा क्षेत्र में प्राकृतिक झील पर्यटकों का बरबस मन मोह लेती है। यह क्षेत्र प्राकृतिक सुंदररता के लिए हीं नहीं वरन, राज्य निर्माण और गैरसैंण राजधानी की मांग के लिए आंदोलनों का प्रमुख स्थल भी रहा है। उत्तराखंड का एक अति खूबसूरत ताल और सौंदर्य लिए बुग्याल। मेरे संज्ञान में यह बात लाई गई थी के बेनीताल में पानी सूख गया है। “वृक्षाबंधन अभियान“ के तहत बेनीताल के रिवाइवल के लिए “आरटीआई लोक सेवा“ सरकार को क्या सुझा सकती है यह जानने बेनीताल में पहुंचा। वहाँ जो देखा वह उत्तराखंड के लोगों के लिए चिंतित करने वाला कारण है। बेनीताल को बचाने के लिए बेनीताल संघर्ष समिति गठित भी है परंतु वह सब निराश से दिखे। समिति के अध्यक्ष मगन सिंह जी से मेरी गंभीर वार्ता हुई है। उनसे वार्ता में यह स्पष्ट हुआ कि कर्णप्रयाग विधानसभा के पूर्व विधायक स्व. डॉ अनसुया प्रसाद मैखुरी और वर्तमान विधायक सुरेन्द्र सिंह नेगी – दोनों के संज्ञान में विषय भलीभांति रहा था। दोनों की ही बेनीताल संघर्ष समिति के कार्यक्रम में भागीदारी भी रही थी और उनके द्वारा आश्वासन भी दिए गए। परंतु बेनीताल -बुग्याल का निजी सम्पत्ति का दावा करने पर सभी की गंभीर चुप्पी संदेहास्पद स्थिति को जन्म दे रही है। इधर प्रदेश की राजनीती गर्त में जा रही है, उधर प्राकृतिक अनुपमा लिए इस ताल -बुग्याल पर अवांछित निजी कब्जा हो चुका है। कब्जाधारी इतने बुलंद हैँ कि उन्होंने सरकारी सड़क तक को खोदकर बुग्याल में आगे जाने का रास्ता बंद कर दिया है। जिस ताल और बुग्याल को उत्तराखंड सरकार के वन विभाग अथवा पर्यटन विभाग अथवा वहाँ की ग्राम पंचायत की सम्पत्ति होनी चाहिए थी, वह निजी हाथों में कैसे चली गई है, यह गंभीर जाँच और कार्यवाही का विषय है। क्षेत्रीय ताकतों को स्मरण कराना चाहूंगा के बेनीताल में ही गैरसैण को राजधानी बनाने के लिए प्राण त्यागने वाले बाबा मोहन उत्तराखंडी आमरण अनशन पर बैठे थे व वहाँ पर उनकी स्मृति में जनस्मारक भी बना हुआ है। उत्तराखंड की अवाम को जल्दी से जल्दी चेतने की आवश्यकता है। अन्यथा आपके हाथ में झुनझुना बजाने के अलावा कुछ भी नहीं रहेगा। सत्ता में आने वाले तो उन्हें भुलाना ही बेहतर समझते हैं। बुग्याल की इसी वेदना से दिल भर आया। बेदनी झील में बहुमूल्य औषधि “वच” उगी हुई है। जिसे स्थानीय लोग बाजू कहते हैं। यह बाजू जल संरक्षण और वाटर प्योरिफिकेशन तो करता ही है साथ ही हाक डाक पेट और चर्म रोगों की औषधि भी थी। बसर्ते किसी व्यापारी की नजर लगे गई है,

You cannot copy content of this page