दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का शीर्षक “कला का चहुंमुखी विकास”किया आयोजन

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नैनीताल में 24 एवं 25 सितम्बर को दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का शीर्षक “कला का चहुंमुखी विकास” (प्रागैतिहासिक से आधुनिक काल तक) का आयोजन प्रो0 एम0एस0 मावड़ी संकायाध्यक्ष दृश्यकला संकाय डी0एस0बी0 परिसर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल के संयोजक एवं समन्वयक के कुशल नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि प्रो0 एन0 के0 जोशी कुलपति कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल ने अपने उद्बोधन में कला के विकास पर प्रागैतिहासिक से आधुनिक काल तक विस्तृत रूप से प्रकाश डाला। विशिष्ट अतिथि प्रो0 डी0 एस0 पोखरिया पूर्व संकायाध्यक्ष कला, पूर्व निदेशक महादेवी वर्मा रामगढ़,
पूर्व अधिष्ठाता छात्र कल्याण एवं पूर्व प्राक्टर एस0एस0जे0 परिसर अल्मोड़ा का उद्बोधन कला के सांस्कृतिक सम्बन्ध पर सारगर्भित वक्तव्य रहा। उनके उद्बोधन से संगोष्ठी के
समस्त सहभागी अभिभूत हुए। विषय विशेषज्ञ प्रो0 हेमन्त द्विवेदी एम0एल0 सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर (राजस्थान) ने संगोष्ठी पर विषयगत मूलभूत आवश्यकताओं पर अपना व्याख्यान दिया। मुख्य वक्ता प्रो0 अनूपा पाण्डे प्रति कुलपति राष्ट्रीय संग्रहालय संस्थान नई दिल्ली ने कला के विकास को मानव सभ्यता के विकास की संरचनात्मक
विकास के साथ जोड़ा। गुफा चित्रों में अजन्ता, ऐलोरा एवं ऐलिफेन्टा की विषयवस्तु पर वृहद् प्रकाश डाला है। मुख्य वक्ता में प्रो0 मामून नोमानी दृश्यकला संकाय जामिया मिलिया
ईस्लामिया नई दिल्ली ने आधुनिक काल की कला में योगदान एवं वर्तमान में कला साधकों की समस्याओं पर विस्तृत चर्चा की। कलाकारों को देश की संस्कृति की मुख्य धारा से
जोड़ने पर जोर देते हुए उद्बोधन दिया। राष्ट्रीय बेबिनार का संचालन करते हुए प्रो० एम0एस0 मावड़ी संकायाध्यक्ष दृश्यकला विभागाध्यक्ष चित्रकला विभाग डी0एस0बी0 परिसर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल ने “कला का चहुंमुखी विकास (प्रागैतिहासिक से आधुनिक काल तक) को अपने विस्तृत उद्बोधन में प्रकाश डाला। राष्ट्रीय वेबिनार में डॉ0 गीता अग्रवाल, बरेली ने वर्ली चित्रकला एक दृष्टि पर वर्ली कला के विषयगत बिन्दुओं पर एवं उनकी चित्रण सामग्री पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् डॉ0 ईशु यादव ने कला और धर्म का विकास पर कला में सृजन प्रवृत्ति एवं धर्म के साथ कला का विकास हुआ पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया।
डॉ0 रेनू शर्मा जोधपुर ने अजन्ता के चित्रों में विशिष्टता एवं कला संस्कृति पर प्रकाश डाला। डॉ0 रामकृष्ण घोष अलीगढ़ ने कला को समय क्रम में उसकी सृजनात्मक पहलू पर विस्तृत प्रकाश डाला। डॉ0 भावना जोशी कपकोट (बागेश्वर) ने भारतीय कला में बंगाल शैली की भूमिका पर विस्तृत चर्चा की। ममता सुयाल कपकोट (बागेश्वर) ने आधुनिक मूर्तिकला में प्रयोगधर्मिता के नये आयाम पर अपने सृजनात्मक विचारों से कला के विकास के बारे में अपना व्याख्यान दिया। डॉ0 रीना सिंह ने सृजनशील सौन्दर्यात्मक समकालीन भारतीय चित्रकला पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। हरिनाम सिंह ने जैन चित्रशैली में नारी अंकन पर अपने शोध पत्र के माध्यम से नारी सौन्दर्य के चित्र संयोजन में महत्व को बताया। अजहर खान ने एम0एफ0 हुसैन के चित्रों में नारी के चित्रण पर अध्ययन करके अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। प्रमोद कुमार ने आधुनिक कला के विकास में बंगाल शैली का महत्व पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया। मनीष ने अपने शोध पत्र में हस्तशिल्पीय कला पर आधुनिक चित्रकला का प्रभाव पर विचार व्यक्त किये। प्रियदर्शी
व्यास ने कला के संसार में उद्गम पर अपने शोध पत्र में सृजनशीलता पर विचार व्यक्त किये। विनीता देओरा ने जोधपुर में चूना पत्थर की उपयोगिता भवन निर्माण में प्रकृति की
देन पर अपने पुरातत्विक विचार प्रस्तुत किये। आकांक्षा ने अपने शोध पत्र में भारतीय चित्रकला में विषयगत रूपांकन और रूपान्तरण का विकास पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
कृष्णा सिंह बिष्ट ने कला में शरीर सौष्ठव पर टैटू चित्रण पर अपने विचार व्यक्त किये। सोमदेव ने कला का आर्थिक महत्व पर अपने कला विषयक विकास पर अपने विचार से आर्थिक महत्व पर विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया।

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