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वट सावित्री अमावस्या व्रत। बहुत महत्वपूर्ण है यह व्रत भगवान भोले शंकर ने माता पार्वती जी को सुनाई थी वट सावित्री अमावस्या व्रत की कथा।
शुभ मुहूर्त,,,,,,,,, इस बार वट सावित्री अमावस व्रत दिनांक 29 मई 2022 दिन रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन 24 घड़ी सात पल अर्थात दोपहर 2:55 बजे तक चतुर्दशी तिथि तदुपरांत अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन कृतिका नामक नक्षत्र अहो रात्रि तक है। यदि इस दिन चंद्रमा की स्थिति जाने तो चंद्रदेव दिन में 11:15 बजे तक मेष राशि में रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे।
वट सावित्री व्रत का महत्व।, ,,,,,,, प्रतिवर्ष जेष्ठ मास की अमावस्या को उत्तर भारत में सुहागिनों द्वारा तथा जेष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि को दक्षिण भारत की सुहागिन महिलाओं द्वारा वट सावित्री व्रत का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा तने में भगवान विष्णु एवं डालियों में व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। तथा सती सावित्री की कथा सुनते वह वाचन करते से सौभाग्यवती महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूर्ण होती है।
वट सावित्री व्रत कथा।, ,,,,,,, पौराणिक प्रामाणिक एवं प्रचलित वट सावित्री कथा के अनुसार प्राचीन समय में राजर्शी अश्वपति की एकमात्र संतान थी सावित्री। सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना। लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु है तो भी सावित्री अपने निर्णय से डिगी नहीं। वह समस्त राज वैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उसके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगी। जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए। वहां मूर्छित होकर गिर पड़े। उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने को आए। 3 दिन के उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थी। अतः बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न देने की प्रार्थना की। लेकिन यमराज नहीं माने। तब सावित्री उनके पीछे पीछे जाने लगी। यमराज नहीं माने तब सावित्री कई बार मना करने पर भी नहीं मानी तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा। सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी। उनका छीना हुआ राज्य मांगा। और अपने लिए सौ पुत्रों का वरदान मांगा। तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं होगा। इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए। उस समय सावित्री अपने पति को लेकर वट वृक्ष के नीचे ही बैठी थी। इसलिए इस दिन महिलाएं अपने परिवार और जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना करते हुए वट वृक्ष को भोग अर्पण करती हैं। उस पर रक्षा का धागा लपेट कर पूजा करती हैं।
लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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